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ये हैं सरिता, पैर की उंगली में ब्रश फंसाकर कैनवास पर भरती हैं रंग, पूर्व राष्‍ट्रपति कलाम भी कायल थे

दिव्यांगता को मात देने वाली सरिता को 16 वर्ष की उम्र में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बालश्री’ से नवाजा था। वर्ष 2008 में उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने इन्हें इम्पावरमेंट आफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज अवार्ड से नवाजा।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 07 Sep 2021 10:18 AM (IST)Updated: Tue, 07 Sep 2021 05:47 PM (IST)
ये हैं सरिता, पैर की उंगली में ब्रश फंसाकर कैनवास पर भरती हैं रंग, पूर्व राष्‍ट्रपति कलाम भी कायल थे
सरिता द्विवेदी ने बचपन में दोनों हाथ व एक पैर गंवा दिया था। फिर भी गजब की चित्रकारी करती हैं।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। मंजिलें वही पाते हैं, जिनके सपनों में जान होती है। सपने तो सभी देखते हैं लेकिन पूरा उन्‍हीं का होता है, जिसमें जज्‍बा है। एक और बात, पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। जी हां, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है प्रयागराज की सरिता द्विवेदी ने। सरिता की कहानी महिला सशक्तिकरण का एक सशक्त उदाहरण है। चार वर्ष की उम्र में दोनों हाथ व एक पैर गवां चुकी सरिता ने जिंदगी की जंग में हार नहीं मानी। मुंह में ब्रश को दबाकर दाहिने पैर की अंगुलियों के सहारे कैनवास पर रंग भरना शुरू किया तो उनके हुनर को देख लोगों ने दांतों तले उंगलियां दबा ली।

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राष्‍ट्रपति कलाम ने राष्‍ट्रीय पुरस्‍कार 'बालश्री' से नवाजा था

दिव्यांगता को मात देने वाली सरिता को 16 वर्ष की उम्र में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बालश्री’ से नवाजा था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएफए की डिग्री हासिल कर चुकी सरिता शिक्षा से लेकर कला क्षेत्र में कई राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। वर्तमान में सरिता भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (एलिम्को) में नौकरी करती हैं। यह दुनिया के सामने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का लोहा मनवा चुकी हैं।

सरिता ने कभी हौसला नहीं पस्‍त किया

प्रयागराज मंडल के फतेहपुर जनपद की रहने वाली सरिता के पिता विजयकांत द्विवेदी भूतपूर्व सैनिक थे। उनकी  माता विमला द्विवेदी हैं। उनकी शिक्षा प्रयागराज जनपद के केंद्रीय विद्यालय ओल्ड कैंट से हुई। सरिता ने कभी खुद को दिव्यांग नहीं समझा। उसके इसी हौसले ने उसकी जिंदगी में भी रंग भर दिए।

मौत को भी दे चुकी हैं मात

सरिता जब वह चार वर्ष की थीं तभी हाईटेंशन तार की चपेट में आने से उनका आधा शरीर बुरी तरह झुलस गया था। कई सर्जरी से गुजरने के बाद जान बची लेकिन इस हादसे ने उसके दोनों हाथ व एक पैर हमेशा के लिए छीन लिए। सरिता ने बताया कि ‘मेरे माता-पिता ने उम्मीद व हौसलों के रंग मेरी जिंदगी में भरे। मां ने मुझे एक सामान्य बच्चे की तरह ही पाला व हमेशा आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा दी। पिता सेना के उन वीरों की अक्सर सच्ची कहानियां सुनाते थे। उससे विपरीत परिस्थितियों में भी अपने धैर्य व हिम्मत को बनाए रखा। बीएफए करते समय उनके अध्यापक रहे अजय दीक्षित को वे सच्चा मार्गदर्शक मानती हैं।

उप राष्‍ट्रपति हामिद अंसारी ने भी अवार्ड दिया था

सरिता को पहला राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बालश्री’ वर्ष 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने दिया था। वर्ष 2008 में उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने इन्हें इम्पावरमेंट आफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज अवार्ड से नवाजा। वर्ष 2009 में मिनिस्ट्री आफ इजिप्ट ने इंटरनेशनल अवार्ड व जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला व देश की पहली महिला जस्टिस लीला सेठ ने सरिता को गाडफ्रे फिलिप्स नेशनल ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित किया है।

देश के अधिकांश धार्मिक स्थलों पर झुका चुकी हैं शीश

सरिता बताती हैं कि वह देश के अधिकांश धार्मिक स्थलों पर जा चुकी हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि उनको अपनी विरासत, संस्कृति एवं परंपरा से रूबरू होने के साथ ही पेंटिंग, फोटोग्राफी, हस्त एवं शिल्प कला बहुत पसंद है।


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