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प्रयागराज के ​​​​​गोधाम में गोमूत्र से बन रहा गोफिन आपके घर को करेगा कीटाणुओं से मुक्त

विहिप के गोरक्षा प्रांत के महामंत्री लालमणि तिवारी ने बताया कि झूंसी स्थित गोधाम का संचालन विहिप की देखरेख में हो रहा है। विहिप के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष स्व. अशोक सिंहल और केंद्रीय मंत्री ठाकुर गुरुजन सिंह ने इसकी स्थापना की थी। यहां देसी गाय रखी जाती हैं।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sun, 05 Sep 2021 02:39 PM (IST)Updated: Sun, 05 Sep 2021 02:39 PM (IST)
प्रयागराज के ​​​​​गोधाम में गोमूत्र से बन रहा गोफिन आपके घर को करेगा कीटाणुओं से मुक्त
झूंसी स्थित विहिप की गोशाला में हैं 125 गोवंश, गो तस्करों से छुड़ाकर रखा गया है यहां

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। सनातन धर्मियों के लिए गाय मां हैं। दूध से लेकर, गोबर व मूत्र तक में औषधीय गुण हैं। इसकी बानगी देखनी हो तो झूंसी स्थित गोधाम जरूर जाएं। यहां करीब 125 गोवंश हैं। इनके गोबर से गोखंड, गो मूत्र से गो अर्क और गोफिन अर्थात फिनायल बनाया जाता है। इनकी सप्लाई शहर के कुछ निजी अस्पतालों में भी की जाती है। आसपास के लोग भी गोशाला पहुंचकर गोफिन लेते रहते हैं। जल्द ही कुछ अन्य उत्पाद भी गोशाला में तैयार किए जाएंगे।

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विहिप के गोरक्षा प्रांत के महामंत्री लालमणि तिवारी ने बताया कि झूंसी स्थित गोधाम का संचालन विहिप की देखरेख में हो रहा है। विहिप के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष स्व. अशोक सिंहल और केंद्रीय मंत्री ठाकुर गुरुजन सिंह ने इसकी स्थापना की थी। यहां देसी गाय रखी जाती हैं। यह वह गोवंश होते हैं जिन्हें तस्करों से छुड़ाया गया होता है या फिर बेसहारा होते हैं। इनकी देखरेख के लिए गो धाम में छह लोग हैं। इनके चारा पानी का इंतजाम समाज के लोगों से सहयोग लेकर किया जाता है।

गोमूत्र और नीम से बन रहा गोफिन

गोशाला के सचिव राजू पांडेय ने बताया कि यहां गो मूत्र, नीम की पत्ती, बेल, तुलसी जैसी वनस्पतियों को मिलाकर गोफिन अर्थात फिनायल बनाया जाता है। यह कीटाणुनाशक होता है। हालांकि अभी इसका उत्पादन सीमित है। जनवरी से जुलाई तक ही इसे बनाने का काम होता है। शहर के करीब छह निजी अस्पतालों में यहां का गोफिन सप्लाई हो रहा है। इससे ढाई से तीन लाख रुपये की आय होती है जो गोवंश के चारा पानी की जरूरतों को पूरा करने में मदद देती है।

बाढ़ की वजह से गोखंड व जैविक खाद बनाने का काम ठप

पिछले दिनो आई बाढ़ से गोशाला भी प्रभावित हुई। यहां गोखंड अर्थात कंडी के साथ जैविक खाद भी बनाई जाती थी, वह अब नहीं बन रही है। जो कुछ भी था वह पानी के साथ बह गया। उम्मीद है जल्द ही यहां अन्य उत्पाद भी बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। गोशाला के सचिव ने बताया कि जितनी भी गाय यहां हैं वह देसी हैं। बहुत अधिक दूध नहीं देती फिर भी करीब 30 लीटर दूध सुबह और इतना ही शाम को मिलता है। उसे भी आसपास के लोगों को बेंचा जाता है। गोशाला के संचालन में समाज के लोगों से आर्थिक रूप से सहयोग की जरूरत है। यदि ऐसा हो सके तो गोवंश के संरक्षण में मदद मिलेगी।

पंच गव्य के प्रयोग से कैंसर व चर्मरोग का इलाज संभव

गाय के दूध, घी, दही, गोबर और मूत्र से पंच गव्य बनता है। इसमें बहुत से औषधीय गुण होते हैं। विश्व आयुर्वेद मिशन के अध्यक्ष डा. जीएस तोमर ने बताया कि पंच गव्य के प्रयोग से कैंसर व चर्मरोग का इलाज संभव है। चर्मरोग के इलाज में गो मूत्र भी लाभकारी होता है। इसमें भी कैंसर को रोकने की क्षमता है। रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाने में यह सहायक है। अस्थमा व गठिया के इलाज में भी लाभकारी होता है। गोमूत्र बाजार में गो अर्क के नाम से उपलब्ध है। ग्लासगो यूनिवर्सिटी के प्रो. हरि मोहन शर्मा के शोध में पता चला है कि गाय का दूध और घी औषधीय गुण रखता है। यह कोलस्ट्राल को घटाने में भी सहायक है। हृदय रोगी इसे जरूर लें। इसके अतिरिक्त सावन के महीने में पंच गव्य का प्रयोग बहुत लाभकारी होता है। शरीर की शुद्धि के लिए इसका प्रयोग करना चाहिए। यह किसी वैक्सीन की तरह काम करता है। यदि सावन भर इसका प्रयोग करें तो पूरे वर्ष हम किसी भी बीमारी से बचे रह सकेंगे।


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