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1978 में गंगा-यमुना के बाढ़ का रौद्र रूप देख सहम गए थे लोग Prayagraj News

उस समय प्रशासनिक व्यवस्था इतनी चाक-चौबंद नहीं थी। लोग घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर शरण लिए हुए थे। उस समय आमजन ने बाढ़ पीडि़तों की खुले दिल से मदद की थी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Mon, 16 Sep 2019 11:53 AM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 12:19 PM (IST)
1978 में गंगा-यमुना के बाढ़ का रौद्र रूप देख सहम गए थे लोग Prayagraj News
1978 में गंगा-यमुना के बाढ़ का रौद्र रूप देख सहम गए थे लोग Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज जिले में खतरे के निशान को पार करने के बाद उफनाती गंगा-यमुना को देखकर लोगों को 1978 में आई बाढ़ की याद आने लगी है। पुरनियों के बीच यह चर्चा छिड़ गई है कि क्या दोनों नदियां पुराना रिकार्ड तोड़ेंगी या फिर इससे पहले ही लौट जाएंगी। लोगों की मानें तो चार दशक पहले आई बाढ़ ने जिले में व्यापक रूप से तबाही मचाई थी। लाखों लोग बेघर हो गए थे। बाढ़ के पानी से खेती भी बर्बाद हो गई थी। इस बार भी स्थिति उसी ओर जाती नजर आ रही है।

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गंगा का जलस्तर 88.390 और यमुना का 87.990 मीटर तक पहुंच गया था

इतिहास पर नजर डालें तो संगम नगरी में 1978 में अब तक की सबसे बड़ी बाढ़ आई थी। उस समय गंगा का जलस्तर 88.390 मीटर और यमुना का 87.990 मीटर तक पहुंच गया था। कछारी गांव तो पूरी तरह जलमग्न हो गए थे। बाग-बगीचों में नावें चल रहीं थीं। 1075 गांव बाढ़ से प्रभावित हुए थे। 6,85,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल पानी में डूब गया था। आजादी के बाद 1948, 1956, 1967, 1971, 1983, 2001, 2003 और 2016 में बाढ़ ने अपना प्रकोप दिखाया था। अनुमान लगाया जा रहा है कि तीन साल बाद गंगा और यमुना का जलस्तर खतरे के निशान 84.73 मीटर को पार कर जाएगा।

आमजन ने बाढ़ पीडि़तों की खुले दिल से मदद की थी

महेवा गांव के रहने वाले डॉ. राधेमोहन बताते हैं कि उस समय प्रशासनिक व्यवस्था इतनी चाक-चौबंद नहीं थी। लोग घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों पर शरण लिए हुए थे। उस समय आमजन ने बाढ़ पीडि़तों की खुले दिल से मदद की थी। मोहब्बतगंज गांव के पूर्व बीडीसी डॉ. उपेंद्र निषाद कहते हैं कि 1978 की बाढ़ ने व्यापक रूप से तबाही मचाई थी। फसल बर्बाद हो गई थी। इसका असर काफी समय तक दिखाई पड़ा था।


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