Flood Effect on Floriculture: यमुना नदी की बाढ़ में समा गया लाखों रुपये के फूलों का व्यवसाय
Flood Effect on Floriculture खेतों में पांच फिट से अधिक पानी भर जाने के बाद अब कोई उधर जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा। फूल का आवक कम होने से सोमवार की सुबह फूल विक्रेताओं की संख्या भी काफी कम रहा।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज में गंगा-यमुना की बाढ़ न सिर्फ लोगों को प्रभावित कर रही है, बल्कि इससे लाखों का फूल कारोबार भी ठप पड़ गया है। बता दें कि यमुना नदी पर बने पुराने और नए पुल के बीच सैकड़ों बीघे जमीन पर फूलों की खेती होती है। नैनी क्षेत्र में यह स्थल है। यमुना नदी का जलस्तर बढ़ा तो इन सैकड़ों बीघे भूमि पर बाढ़ का पानी घुस गया है। क्षेत्र पूरी तरह से जलमग्न हो चुका है। इससे फूलों की खेती खराब हो चुकी है।
प्रतिदिन 70 लाख रुपये का कारोबार प्रभावित
नैनी इलाके इस स्थल पर काफी संख्या में सफेदा, गेंदा, और गुलाब का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। यहां के फूल प्रयागराज ही नहीं आसपास के कई जिलों में अपनी महक बिखेरतें हैं। पुराने पुल के समीप लगने वाली फूलों की मंडी में प्रति दिन करीब 70 लाख रुपये का कारोबार होता है। करीब एक किलोमीटर के दायरें में सजने वाली यह मंडी भोर होते ही गुलजार होने लगती है। सूरज निकलने के साथ ही मंडी पूरे शबाब पर होती है। मीरजापुर, भदोही, प्रतापगढ़, फतेहपुर, कौशांबी, मध्य प्रदेश के रीवा, मनगवां समेत कई जिलों में सुबह वाहनों से फूल भेजे जाते हैं।
फूलों के बाग में पांच फीट यमुना का पानी भरा
पिछले गुरुवार से फूल के खेतों में यमुना का पानी घुसने लगा था। सोमवार तक सैकड़ों बीघे खेत पानी से जलमग्न हो गए। गेंदा और गुलाब की खेती पूरी तरह से बर्बाद हो गई। शनिवार और रविवार की शाम लोगों ने बचे खुचे फूल तोड़ लिया था। खेतों में पांच फिट से अधिक पानी भर जाने के बाद अब कोई उधर जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा। फूल का आवक कम होने से सोमवार की सुबह फूल विक्रेताओं की संख्या भी काफी कम रहा।
सावन सोमवार पर आज फूलों की आवक आधी
भट्ठा गांव निवासी गुड़िया का कहना है कि यहां प्रति दिन करीब 60-70 लाख रुपये का व्यवसाय होता है। पिछले दिनों से इसमें गिरावट दर्ज की जा रही। सोमवार को गुलाब के फूल का आवक आधे से भी कम रहा। प्रेम कुमार का कहना है कि वह पिछले तीन दशक से यहां धंधा कर रहे। बाढ़ के दौरान अक्सर उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है। बाढ़ के एक माह बाद से धंधे में रफ्तार आती है। इस दौरान धंधे में पचास फीसद की कमी रहती है। महेंद्र कुमार का कहना है कि बाढ़ के दौरान हर साल उन्हें इस मुसिबत का सामना करना पड़ता है।