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Death anniversary of Firaq Gorakhpuri : तब गुस्से से उबल पड़े वह, बोले नेहरू से कहना- मैं फिराक हूं, 8/4 बैंक रोड पर रहता हूं

गुस्से से लाल-पीले फिराक साहब की तेज आवाज नेहरू जी ने पहचान ली थी। फिराक चलने को हुए पंडित नेहरू बाहर आए और बोले कि रघुपति तुम यहां क्यों खड़े हो अंदर क्यों नहीं आ गए तब फिराक फट पड़े घंटों पहले मेरे नाम की पर्ची आपको भेजी गई थी

By Ankur TripathiEdited By: Published: Wed, 03 Mar 2021 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 03 Mar 2021 07:55 AM (IST)
Death anniversary of Firaq Gorakhpuri : तब गुस्से से उबल पड़े वह, बोले नेहरू से कहना- मैं फिराक हूं, 8/4 बैंक रोड पर रहता हूं
उन्हें बीसवीं सदी की उर्दू शायरी के सबसे बड़े हस्ताक्षरों में एक माना जाता है।

प्रयागराज, जेएनएन। अजीम शायर और लेखक फिराक गोरखपुरी का असली नाम रघुपति सहाय था। उन्हें बीसवीं सदी की उर्दू शायरी के सबसे बड़े हस्ताक्षरों में एक माना जाता है। वह जितनी अपनी शायरी के लिए जाने जाते हैं उतने ही उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से भी मशहूर हैं। उनका जन्म 28 अगस्त सन् 1896 में गोरखपुर में हुआ था और तीन मार्च 1982 में मृत्यु हो गई थी। बुधवार तीन मार्च को उन्हें देश के तमाम हिस्सों के साहित्यकारों व शायरों के साथ प्रयागराज के फनकार भी खिराजे अकीदत पेश कर रहे है। तो आइये जानते हैं फिराक के जीवन से जुड़े कुछ किस्से।

पंडित नेहरू से मिलने में देरी पर तमतमा उठे थे फिराक
पंडित जवाहरलाल नेहरू को फिराक बहुत सम्मान देते थे। प्रधानमंत्री बनने के बाद सन् 1948 में जब पंडित नेहरू इलाहाबाद (अब प्रयागराज) आए तो उन्होंने फिराक साहब को मिलने के लिए आनंद भवन बुलवा भेजा। 'फिराक गोरखपुरी-ए पोएट ऑफ पेन एंड एक्सटेसीज में फिराक के भांजे अजयमान सिंह लिखते हैं कि फिराक साहब पंडित नेहरू से मिलने आनंद भवन पहुंचे तो वहां रिसेप्शनिस्ट ने उनको रोक लिया, कहा कि आप कुर्सी पर बैठ जाएं और अपना नाम पर्ची पर लिखकर दे दें। बुलावा आएगा तो आपको भेजा जाएगा। तब फिराक साहब को गुस्सा तो बहुुत आया लेकिन एक पर्ची पर अपना नाम रघुपति सहाय लिखकर रिसेप्शनिस्ट को दे दिया। उसने दूसरी स्लिप पर आर सहाय लिखकर अंदर भिजवा दिया। पंद्रह मिनट इंतजार करने के बाद भी जब बुलावा नहीं आया तो उनके सब्र का बांध टूट गया और वो रिसेप्शेनिस्ट पर भड़क उठे। चिल्लाकर कहा कि मैं यहां जवाहरलाल के निमंत्रण पर आया हूं। आज तक मुझे इस घर में कभी नहीं रोका गया, बहरहाल जब नेहरू को फुर्सत मिले तो उन्हेंं बता दीजिएगा...। मैं 8/4 बैंक रोड पर रहता हूं।

नेहरू बोले मैं तुम्हें रघुपति नाम से जानता हूं, आर सहाय कबसे हो गए
गुस्से से लाल-पीले फिराक साहब की तेज आवाज नेहरू जी ने पहचान ली थी। जैसे ही फिराक कुर्सी से उठकर चलने को हुए पंडित नेहरू बाहर आए और बोले कि रघुपति तुम यहां क्यों खड़े हो, अंदर क्यों नहीं आ गए तब फिराक फट पड़े, घंटों पहले मेरे नाम की पर्ची आपके पास भेजी गई थी तब नेहरू जी ने कहा कि पिछले 30 सालों से मैं तुम्हें रघुपति के नाम से जानता हूं, तुम आर सहाय कब से हो गए। बताओ मैं कैसे समझता कि रघुपति आया है। उसके बाद नेहरू ही उन्हें अंदर ले गए और पुराने दिनों को याद करने लगे थे।

नेहरू के भाषण में नुक्स निकालने पर ईश्वरी प्रसाद को लगाई थी डांट
फिराक साहब के दोस्त रमेश चंद्र द्विवेदी ने अपनी किताब मैंने फिराक को देखा था में एक मजेदार वाकये का जिक्र किया है कि एक बार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में पंडित जवाहरलाल नेहरू का संबोधन चल रहा था जिसमें उन्होंने विश्व इतिहास की किसी घटना का जिक्र किया, उनका भाषण पूरा होते ही इतिहासकार डा. ईश्वरी प्रसाद उठे और पं. नेहरू से कहने लगे कि आपको गलत जानकारी है। फला वाकया इस सन में नहीं दूसरे सन में हुआ था। तभी फिराक उठे, चीखते हुए बोले कि 'सिट डाउन ईश्वरी, यू आर ए क्रैमर आफ हिस्ट्री एंड ही इज ए क्रियेटर ऑफ़ हिस्ट्री।

हिंदी के साहित्यकारों में निराला जी से उनकी खूब बनती थी
हिंदी के साहित्यकारों में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से उनकी खूब बनती थी। रमेश चंद्र द्विवेदी ने मैंने फिराक को देखा था, में लिखा है कि फिराक की पत्नी बताती थीं कि फिराक व निराला में गहरी दोस्ती थी, लेकिन कई मुद्दों पर उनमें जमकर कहासुनी भी होती थी। जब निराला उनके घर से जाते तो फिराक साहब ही नौकर से निराला के लिए रिक्शा मंगवाते और गेट तक उन्हेंं छोडऩे भी जाते थे। रिक्शेवाले को पैसा पहले ही दे देते थे। वे खुद ही निराला से कविता सुनाने के लिए कहते और फिर उनकी कविता में खामियां निकालते थे। निरालाजी पहले तो सुनते और जब उनसे न रहा जाता तो बरस पड़ते और फिर दोनों में खूब झगड़ा होता था।

काफी हाउस में फिराक को सुनने जुटते थे बुद्धिजीवी और साहित्यकार
इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी कहते हैं कि फिराक साहब तकरीबन रोज ही काफी हाउस जाया करते थे। वे दोपहर एक बजे के आसपास वहां पहुंचते थे। वहां पर लोग पहले से ही उनका इंतजार करते रहते थे जिसमें बुद्धिजीवी, शायर, साहित्यकार होते थे। जैसे ही वे पहुंचते लोग कुर्सियां खींच कर उनकी मेज के आसपास पहुंच जाते। फिर तो शुरू हो जाते थे फिराक, देश और दुनिया के हर विषय पर अपने विचार रखते थे। बुद्धिजीवियों से विचार-विमर्श करते कभी-कभी उनका झगड़ा भी हो जाता था।

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