यह हैं फैयाज और मुंशी रजा जिन्होंने गढ़ी भागवत तथा राम रसायन, राम-रहीम में नहीं मानते फर्क
सामाजिक सद्भाव और समरसता की बात केवल मंच या भाषणों तक सीमित न रहे। इसे आचरण में भी उतारा जाए। लोगों को संकीर्ण सोच से उबारा जाए। कुछ ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं प्रतापगढ़ के शेख मुंशी रजा अनीस देहाती और फैय्याज अहमद परवाना।
प्रयागराज, जेएनएन। हिंदू-मुस्लिम एकता, सामाजिक सद्भाव और समरसता की बात केवल मंच या भाषणों तक सीमित न रहे। इसे आचरण में भी उतारा जाए। लोगों को संकीर्ण सोच से उबारा जाए। कुछ ऐसा ही प्रयास कर रहे हैं प्रतापगढ़ के शेख मुंशी रजा अनीस देहाती और फैय्याज अहमद परवाना।
अनीस देहाती संस्कृत भाषा के आचार्य और प्रमुख कवि हैं। उनकी अवधी भाषा की रचना माटी इविवि के एमए द्वितीय वर्ष में पढ़ाई जाती है। यही नहीं सबसे बड़ी खासियत यह है वह श्रीमद्भागवत का ज्ञान रखते हैं। उसका खड़ी बोली में अनुवाद करके नया सरल ग्रंथ लिख रहे हैं, ताकि कम पढ़े-लिखे या अनपढ़ लोग भी गीता का मर्म समझें। जीवन को धन्य कर सकें। इससे उनकी व्यापक सोच का पता चलता है। जिले के रानीगंज कैथौला इंटर कालेज के प्रधानाचार्य रहे मुंशी रजा सामाजिक सद्भावना के मंचों के वक्ता होते हैं। वह कहते हैं कि राम-रहीम सब एक हैं। ईद-होली का मकसद एक है। यह बात सबको समझाने का प्रयास कर रहे हैं, ताकि आपसी समझ बढ़े। अजान और आरती एक हो। वह देश का सुर बने।
फैयाज कर रहे गोस्वमी जी रचित रामचरित मानस को राम रसायन ग्रंथ में परिवर्तित
ऐसे ही लालगंज के फैयाज अहमद परवाना भी हैं। वह गोस्वामी जी द्वारा रचित रामचरित मानस को राम रसायन ग्रंथ के रूप में परिवर्तित करने में लगे हैं। साधारण परिवार के परवाना की सामाजिक समरसता की सोच ही उनकी पहचान है। उनके काव्य ग्रंथ में बाल कांड से लेकर उत्तरकांड के प्रसंग सरल रूप में लोगों को पढ़ने को मिले हैं। अब वह भगवान श्री कृष्ण के जीवन चरित्र व शिक्षाओं, लीलाओं पर ग्रंथ लिखना शुरू कर दिए हैं। वह कहते हैं कि कलम चलानी है तो प्रेम-सद्भाव पर चले, नफरत फैलाने के लिए नहीं। ऐसा ही संदेश देने के लिए परवाना सामाजिक सम्मेलनों में बुलाए जाते हैं। वहां बेबाकी से अपनी बात रखते हैं। कोरोना काल में आ रहीं चुनौतियों में वह टूटे नहीं। इस जज्बे को कायम रखते हुए समाज को एक करने में और भी मनोयोग से लगे हैं।
नात-ए-पाक वाले डा.अनुज
प्रतापगढ़ की समरसता फूलों की खुशबू की तरह लोगों के मन को महका रही है। यह जानकर सुखद अनुभूति होती है कि यहां के प्रमुख कलमकार डा. अनुज नागेंद्र की कलम नात-ए-पाक रचती है। वह इसे पढ़ते हैं तो सामाजिक सद्भाव की डोर और मजबूत हो जाती है। मजहबी दीवारें दरकने लगती हैं। इसी धरती के नाजिश प्रतापगढ़ी, हाजी रमजान अली, इम्तियाजुद्दीन खान, जुमई खां आजाद को भी उनकी कौमी एकता वाली सोच व कार्यों के लिए याद किया जाता है।