Ramadan 2021: माह-ए-पाक में बांटे जकात और निकालें फितरा, 70 गुना हो जाता है रमजान में नेकी का शवाब
ईद की नमाज से पहले फितरा निकालने का नियम है। हदीस में अल्लाह के रसूल ने फरमाया है कि बंदा जो अमल इबादत रमजान शरीफ के महीने में करता है। उसकी इबादत जमीन व आमसान के बीच में लटकी रहती है। फितरा अदा करने के बाद वह कबूल होती है।
प्रयागराज, जेएनएन। पाक महीने रमजान में जकात का काफी महत्व है। माहे मुबारक में जकात के रूप में दान देकर गरीबों व जरूरतमंदों की मदद की जाती है। दान के पैसे से वह ईद की खुशियां मनाते हैं। रमजान में एक नेकी का सवाब 70 गुना हो जाता है। इसी कारण इस पाक महीने में मुसलमान जकात व फितरा के रूप में दान करते हैं। सालभर में जमा की गई जायदाद का 40वां हिस्सा जकात के रूप में अदा करना फर्ज है।
जकात अदा करने से साफ सुथरी हो जाती है जायदाद
इस्लाम की मान्यता के अनुसार जकात अदा करने से जायदाद साफ-सुथरी हो जाती है। हटिया शीशेवाली मस्जिद के मौलाना नादिर हुसैन बताते हैं कि साढ़े सात तोला सोना या साढ़े 52 तोला चांदी है सिर्फ वही जकात निकालने के दायरे में आते हैं। हदीस में लिखा है-अल्लाह के रसूल ने फरमाया है कि जकात न निकालने वाले की संपत्ति अथवा सामान सूखा व बरसात के मौसम में बर्बाद हो जाती है। जबकि फितरा रमजान में की गई इबादत की कबूलियत के लिए निकाला जाता है। इसमें दो किलो 45 ग्राम गेहूं के दाम के बराबर दाम फितरा में देने की परंपरा है। ईद की नमाज से पहले फितरा निकालने का नियम है। मौलाना नादिर बताते हैं कि हदीस में अल्लाह के रसूल ने फरमाया है कि बंदा जो अमल इबादत रमजान शरीफ के महीने में करता है। उसकी इबादत जमीन व आमसान के बीच में लटकी रहती है। फितरा अदा करने के बाद वह कबूल होती है।
गरीबों को देने की है परंपरा
जकात उन लोगों को दी जाती है, जो गरीब, जरूरतमंद, मुसाफिर और बेसहारा हैं। जकात अपने गरीब व जरूरतमंद रिश्तेदारों में भी दी जा सकती है। इसमें असल और नसल को जकात जायज नहीं है। असल का अर्थ जिनसे जकात देने वाला पैदा हुआ और नसल का अर्थ जकात देने वाले के औलाद और उसके पोते-नवासे हैं।