मॉडरेशन की सीढ़ी से मेधावियों ने छुआ अंकों का आसमान, शिक्षा बोर्डों में बढ़ी अंक लुटाने की प्रतिस्पर्धा
Board Exams Result 2020 एकेडमिक परीक्षाओं में उम्दा अंक हासिल करने वाले मेधावियों की मेधा पर किसी को शक नहीं है बल्कि मिले अंकों से वह खुद हैरत में हैं।
प्रयागराज [धर्मेश अवस्थी]। मेधा किसी की मोहताज नहीं होती, वह परीक्षाओं की तपिश में कुंदन जैसा निखरती रही है। यह बातें शिक्षा बोर्डों पर अब लागू नहीं होती, क्योंकि वहां अंक लुटाने की प्रतिस्पर्धा चल रही है। यूपी बोर्ड ने 27 जून को इंटर का रिजल्ट दिया उसमें बागपत के अनुराग मलिक को 97 फीसद अंक हासिल हुए तो सीबीएसई इंटर परीक्षा में लखनऊ की दिव्यांशी व बुलंदशहर के तुषार को 100 फीसद अंक मिले हैं। ऐसे ही यूपी बोर्ड की 10वीं में रिया जैन 96.67 फीसद अंक हासिल कर चुकी हैं तो सीबीएसई के 10वीं रिजल्ट का इंतजार है।
एकेडमिक परीक्षाओं में उम्दा अंक हासिल करने वाले मेधावियों की मेधा पर किसी को शक नहीं है, बल्कि मिले अंकों से वह खुद हैरत में हैं। दिव्यांशी को ले लें, उसने कहा कि उसे बेहतर परिणाम की अपेक्षा थी लेकिन, शत-प्रतिशत अंक मिलेंगे यह अनुमान नहीं था। यह सब इसलिए संभव हो सका कि केंद्र से लेकर राज्य शिक्षा बोर्ड तक मॉडरेशन नीति पर चल रहे हैं। इसमें परीक्षा में कम अंक पाने वालों का तो भला होता ही है वहीं अधिक अंक वालों का सफलता प्रतिशत और बढ़ जाता है। शिक्षा बोर्ड दबी जुबान मॉडरेशन को स्वीकार करते हैं लेकिन, कितने अंकों का किया गया यह खुलकर नहीं बताते।
क्या है मॉडरेशन नीति : 10वीं और 12वीं की परीक्षा में सभी परीक्षार्थियों को विषय विशेष में अतिरिक्त अंक देना ही मॉडरेशन है। मसलन, 12वीं विज्ञान वर्ग में गणित, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, हिंदी व अंग्रेजी की परीक्षा हुई। परीक्षार्थियों को चार विषयों में अच्छे अंक मिल रहे हैं और हिंदी में अधिकांश के अंक औसत से कम हैं तो बोर्ड के जिम्मेदार अफसर एक फार्मूले के तहत सभी को अतिरिक्त अंक देते हैं।
2017 में सीबीएसई कर रहा था खत्म : सीबीएसई ने मॉडरेशन अंक प्रणाली खत्म करने की पहल 2017 में की थी। यह निर्णय परीक्षा के बाद लिया गया, इसलिए कोर्ट ने बदलाव पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि इस तरह के नियम परीक्षा के पहले ही तय होने चाहिए। सीबीएसई समेत अन्य शिक्षा बोर्ड ने कोर्ट के आदेश को माना। उसके बाद से यह प्रणाली ज्यों की त्यों लागू है।
यूपी बोर्ड ने 2011 में अपनाया : यूपी बोर्ड ने सीबीएसई, आईसीएसई बोर्ड की तर्ज पर परीक्षार्थियों को अंक देने के लिए मॉडरेशन प्रणाली 2011 में अपनाया। उसके पहले टॉपर व अन्य अधिक अंकों से उत्तीर्ण नहीं होते थे। इसकी वजह जहां मेरिट के आधार पर नियुक्ति या दाखिला मिलना होता था, वहां यूपी बोर्ड के परीक्षार्थी पिछड़ते थे।
2018 में एवार्ड ब्लैंक हुआ वायरल : यूपी बोर्ड में अंक बांटने का खेल किस तरह से चल रहा था, इसका राजफाश 2018 की परीक्षा में हुआ। सोशल मीडिया में गोपनीय एवार्ड ब्लैंक ओएमआर शीट वायरल हुईं। उसमें जिन परीक्षार्थियों को कॉपी पर गिने-चुने अंक मिले थे, अंकपत्र में नंबर काफी अधिक थे। इसे दैनिक जागरण ने उजागर किया, तब बोर्ड ने दो कॉपी जांचने वाले परीक्षकों को चिन्हित करके उन्हें आजीवन डिबार किया था।
दोनों बोर्ड में बढ़े मेधावी : सीबीएसई इंटर में 95 प्रतिशत से अधिक अंक पाने वालों की संख्या करीब 120 प्रतिशत से अधिक बढ़ी है, वहीं यूपी बोर्ड में 2020 में सम्मान सहित उत्तीर्ण होने वालों की संख्या 63,193 रही, जबकि 2019 में ऐसे परीक्षार्थी 57 हजार ही थे।
मेधावियों की कॉपियां अपलोड नहीं : यूपी बोर्ड ने हाईस्कूल व इंटर के टॉपरों की कॉपियां वेबसाइट पर डालने की तैयारी की थी, इसे 2018 की परीक्षा से लागू करना था लेकिन, 2020 के बाद भी अफसर इस पर बोलने को तैयार नहीं हैं। वे सिर्फ इतना ही कहते हैं कि परिणाम गोपनीय कार्य है यह सब परीक्षा समिति करती है। उसे सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।