प्रतापगढ़ में क्रिकेट की प्रतिभाओं को तराश रहे डॉ शफीक
वर्ष 1984 में उन्हें जुनून सवार हुआ कि जो बच्चे गली और पगडंडियों में क्रिकेट खेल रहे हैं क्यों न उन्हें तराश कर जिले से लेकर प्रदेश की टीम तक पहुंचाएं। फिर क्या था उन्होंने एलआइसी के अभिकर्ता का काम छोड़ दिया और क्रिकेट में लीन हो गए।
प्रयागराज,जेएनएन। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर, विराट कोहली जैसे क्रिकेटर यूपी के प्रतापगढ़ जिले में द्रोणाचार्य डा.शफीक तराश रहे हैं। इनसे ट्रेनिंग लेने वाले देवेंद्र सिंह, तनवीर अख्तर जहां जूनियर टीम इंडिया में स्थान बनाने में कामयाब रहे थे, वहीं कई खिलाड़ी रणजी ट्राफी में जिले का नाम रोशन कर चुके हैं।
अभिकर्ता का काम छोड़कर देने लगे क्रिकेट की ट्रेनिंग
शहर के दहिलामऊ मोहल्ला निवासी डा.शफीक और क्रिकेट एक दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। बचपन से ही उनकी क्रिकेट में बहुत रुचि थी। पहले वह खुद क्रिकेट खेलते थे। वर्ष 1984 में उन्हें जुनून सवार हुआ कि जो बच्चे गली और पगडंडियों में क्रिकेट खेल रहे हैं क्यों न उन्हें तराश कर जिले से लेकर प्रदेश की टीम तक पहुंचाएं। फिर क्या था, उन्होंने एलआइसी के अभिकर्ता का काम छोड़ दिया और क्रिकेट में लीन हो गए। शुरुआत में दो साल उन्होंने ट्रेनिंग देने के लिए पुलिस लाइन मैदान को चुना। वर्ष 1987 में स्टेडियम बनकर तैयार हुआ तो वहां बच्चों को ट्रेनिंग देने लगे।
कई खिलाड़ी अंडर 19 टीम का बन चुके हैं हिस्सा
जिन खिलाडिय़ों में क्रिकेट के प्रति लगन थी, वह रोजाना सुबह शाम तीन से चार घंटे तक डा.शफीक के मार्गदर्शन में पसीना बहाने लगे। डा.शफीक और खिलाडिय़ों की मेहनत वर्ष 1995 में तब रंग लाई, जब आलराउंडर खिलाड़ी तनवीर अख्तर ने अंडर 19 टीम इंडिया से वेस्टइंडीज में मैच खेला। फिर तो डा.शफीक की नर्सरी से दनादन पौध तैयार होने लगी। वर्ष 1997 में स्पिनर गेंदबाज आदित्य शुक्ला व वर्ष 2000 में धनंजय सिंह, कुमार गौरव, सुनील शुक्ला त्रिपुरा और अंबा प्रसाद, दीपक यादव ने यूपी टीम से रणजी ट्राफी में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। विशाल शुक्ला ने अंडर 14 यूपी टीम से प्रतिभाग किया। आलराउंडर देवेंद्र सिंह ने वर्ष 2001 में अंडर 19 टीम इंडिया से बांग्लादेश में एशिया कप खेला।
अंतिम सांस तक रहेगा बैट और बाल का साथ
बाल और बल्ले को अपने जीवन का हिस्सा बना चुके डा.शफीक को 35 साल बाद भी वही जुनून सवार है। अभी भी वह नई पौध तैयार करने में तल्लीन है। वह पुलिस लाइन मैदान में सुबह शाम दोनों पाली में खिलाडिय़ों को कोचिंग दे रहे हैं। उन्होंने यह ठान लिया है कि जिंदगी की अंतिम सांस तक उनके हाथ से बाल और बल्ला नहीं छूटेगा। अपने शागिर्दों को यूपी और टीम इंडिया का हिस्सा बनते देखने में उन्हें बहुत सकून मिलता है।