Birth Anniversary of Nirala : क्या जानते हैं आप, महाकवि ने राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद से प्रयागराज में मिलने से कर दिया था इंकार
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपना जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही माना था। वे कहते थे कि उनका जन्म वसंत के दिन ही हुआ था। इस बार मंगलवार 16 फरवरी को वसंत पंचमी को पड़ रही है। निराला को चाहने वाले मंगलवार को उनका जन्म दिन मनाएंगे और उन्हें याद करेंगे।
प्रयागराज, जेएनएन। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने अपना जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही माना था। वे कहते थे कि उनका जन्म वसंत के दिन ही हुआ था। इस बार मंगलवार 16 फरवरी को वसंत पंचमी को पड़ रही है। निराला को चाहने वाले मंगलवार को उनका जन्म दिन मनाएंगे और उन्हें याद करेंगे। निराला के कई किस्से प्रचलित हैं। एक बार राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद इलाहाबाद (अब प्रयागराज) आए थे। उन्होंने निराला से मिलने की इच्छा व्यक्त की। मगर निराला ने उन्हें निराश कर दिया था।
निराला को लेने के लिए भेजी थी मोटर
दारागंज निवासी जयकिशन गुप्ता बताते हैं कि एक बार राष्ट्रपति डॉ.राजेंद्र प्रसाद प्रयागराज आए थे। राष्ट्रपति सरकारी बंगले में ठहरे थे। राष्ट्रपति महोदय महाकवि निराला से मिलना चाहते थे। उन्होंने अपने पीए को निरालाजी को साथ लाने के लिए भेजा। पीए को निराला के स्वभाव के बारे में जब पता चला तो उसने महादेवी वर्मा की सहायता ली। उन्हेंं विश्वास था कि महादेवी की बात निरालाजी नहीं टालेंगे। वे महादेवी के साथ निराला को लेने दारागंज पहुंचे। महादेवी ने अवसर के अनुकूल देखकर बात की और राष्ट्रपति के आग्रह के बारे में बताया और कहा कि आपको लेने मोटर आयी हुई है।
वह राष्ट्रपति तो मैं साहित्यपति
जयकिशन बताते हैं कि राष्ट्रपति के पीए से निराला ने कहा कि मैं वहां क्या करने जाऊं। अगर वे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद हैं तो वे भी यहां आ सकते हैं, जैसे निराला उनके पास जा सकता है। और अगर राष्ट्रपति की हैसियत से मुझे बुला रहे हैं तो मुझे राष्ट्रपति से कुछ नहीं लेना देना। वे राष्ट्रपति हैं तो मैं साहित्यपति हूं। अब महादेवी जी के पास भी कोई चारा नहीं था। सभी लोग वापस चले गए।
बापू से मिलने स्वराज भवन पहुंच गए थे निराला
साहित्यकार रविनंदन सिंह बताते हैं कि महात्मा गांधी आंदोलन के लिए देश भर में घूमते तो थे ही खूब लिखते और पढ़ते भी थे। बापू ने लिख दिया कि हिंदी में कोई रविंद्र नाथ टैगोर नहीं है। बापू का यह कथन पढ़कर निराला से रहा नहीं गया। वह बापू से मिलने पहुंच गए। बापू स्वराज भवन में ठहरे थे। निराला जी स्वराज भवन पैदल जा रहे थे। रास्ते में एक तांगे पर बकरी जाती दिखी। निराला जी ने साथ चल रही महादेवी से कहा- हिंदी का कवि पैदल जा रहा है और बकरी तांगे पर। जरूर यह बापू की बकरी होगी। था भी ऐसा ही। बापू बकरी का दूध पीते थे और वाकई में तांगे पर वह बकरी बापू के लिए ही ले जाई जा रही थी। 'बापू की बकरी के नाम से निराला जी का यह संस्मरण काफी चर्चित भी हुआ।