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World Hindi Day : हिंदी प्रेम में मॉरीशस से प्रयागराज खिंची चली आईं दिया लक्ष्मी, इविवि से कर रही हैं शोध

प्रो. डॉ. सूर्यनारायण सिंह के निर्देशन में शोध कर रहीं दिया बताती हैं कि बचपन से हिंदी और संस्कृत से लगाव रहा है। यह जुड़ाव मॉरीशस में आर्यसमाज की तरफ से प्रत्येक सप्ताह होने वाली बैठकों में जाने हुआ। मॉरीशस में स्नातक तक वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी पढ़ी।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sun, 10 Jan 2021 03:00 PM (IST)Updated: Sun, 10 Jan 2021 03:00 PM (IST)
World Hindi Day :  हिंदी प्रेम में मॉरीशस से प्रयागराज खिंची चली आईं दिया लक्ष्मी, इविवि से कर रही हैं शोध
शोध में उनका विषय अभिमन्यु अनत के उपन्यासों का मूल्यांकन प्रवास व विस्थापन के संदर्भ में है।

प्रयागराज, अमलेंदु त्रिपाठी।  'पडऩे लगती है पीयूष की सिर पर धारा। हो जाता है रुचिर ज्योतिमय लोचन तारा। बर बिनोद की लहर हृदय में है लहराती। कुछ बिजली सी दौड़ सब नसों में है जाती। आते ही मुख पर अति सुखद जिसका पावन नाम ही। इक्कीस कोटि जन पूजिता हिंदी भाषा है वही...। हिंदी का बखान करती अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध की यह पंक्तियां मॉरीशस की दिया लक्ष्मी बंधन के लिए भी प्रेरणा स्रोत बनीं। क्रियोल, फ्रेंच और अंग्रेजी से इतर हिंदी को उन्होंने मूल भाषा के रूप में अपनाया और अब इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में हिंदी में शोध कर रही हैं। मकसद यही है कि हिंदी की ध्वज पताका दुनिया में फहराए। 

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बचपन से ही हिंदी और संस्कृत से लगाव 

इविवि के प्रो. डॉ. सूर्यनारायण सिंह के निर्देशन में शोध कर रहीं दिया बताती हैं कि बचपन से ही हिंदी और संस्कृत से लगाव रहा है। यह जुड़ाव मॉरीशस में आर्यसमाज की तरफ से प्रत्येक सप्ताह होने वाली बैठकों में जाने हुआ। मॉरीशस में प्राथमिक से स्नातक तक वैकल्पिक विषय के रूप में हिंदी पढ़ी। वर्ष 2013 में हिंदी से एमए करने के लिए इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय आ गईं। उन्हें आइसीसीआर की छात्रवृत्ति भी मिल चुकी है। शोध में उनका विषय अभिमन्यु अनत के उपन्यासों का मूल्यांकन प्रवास व विस्थापन के संदर्भ में है। बकौल दिया, अनत को मॉरीशस का प्रेमचंद कहा जाता है। उन्होंने प्रवासियों और विस्थापितों के दर्द को अपनी रचनाओं के जरिए बखूबी उभारा है। उनका साहित्य मॉरीशस के लोगों को भारत से जोडऩे वाला भी है।  

वतन लौटकर हिंदी, संस्कृत के लिए करेंगी काम

शोध पूरा कर मॉरीशस लौटने पर दिया हिंदी व संस्कृत के लिए कार्य करेंगी। अध्यापन के साथ ही लेखन में सक्रिय होंगी। वह उष्णवारी गुरुकुलम में सेवाएं देंगी। बताती हैैं कि 80 वर्षीय गुरु ब्रह्म्देव दुर्ग इस आश्रम के संचालक हैं। 

दीपावली के दिन हुआ था जन्म 

दिया नाम कैसे ?  इस पर बताती हैं कि दीपावली के दिन जन्म हुआ था। परिवार में उन्हें लक्ष्मी के आगमन का प्रतीक माना गया। और नाम मिल गया-दियालक्ष्मी। बंधन परिवार की तरफ से मिला उपनाम है। भारतीय तीज त्योहार और संस्कार बचपन से ही उन्हें आकर्षित करते थे। 


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