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शिव स्तुति में हुआ भक्तों का जमघट

इलाहाबाद : श्रावण मास में चल रही शिव स्तुति का सिलसिला थमने लगा है। महीनेभर हुए अभिषेक, पू

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Aug 2018 01:18 PM (IST)Updated: Tue, 28 Aug 2018 01:18 PM (IST)
शिव स्तुति में हुआ भक्तों का जमघट
शिव स्तुति में हुआ भक्तों का जमघट

इलाहाबाद : श्रावण मास में चल रही शिव स्तुति का सिलसिला थमने लगा है। महीनेभर हुए अभिषेक, पूजन व भजन के समापन पर भक्तों ने भंडारा का आयोजन किया। इसके मद्देनजर नैतिक विकास शोध संस्थान सेवा ट्रस्ट द्वारा त्रिवेणी बाध स्थित सिद्धपीठ हंडिया बाबा योगालय पर हवन व भंडारा का आयोजन हुआ, जिसमें सैकड़ों भक्त शिव की स्तुति करने जुटे। संस्था की ओर से श्रावण मास में जनकल्याण को लाखों पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करके अभिषेक कराया गया। महायज्ञ कराया जा रहा है। हर दिन भोलेनाथ के अलग-अलग स्वरूपों का श्रृंगार कर मंत्रोच्चार के बीच अभिषेक हुआ। इसकी पूर्णाहुति पर मंत्रोच्चार के बीच यज्ञ करके भंडारा हुआ, जिसमें सैकड़ों भक्त शामिल हुए। संयोजन श्यामसूरत पांडेय ने कहा कि शिवलिंग की पूजा सदियों से हो रही है। शिवलिंग की पूजा करने वाले भक्तों को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके चलते जनकल्याण की संकल्पना को साकार करने के लिए एक माह तक पार्थिव शिवलिंग का निर्माण कराया गया। इस दौरान फूलचंद्र दुबे, नागेंद्र सिंह, राजनाथ तिवारी, ओपी सिंह, गुड्डू शास्त्री, रामबाबू तिवारी, विजय तिवारी, काति पांडेय मौजूद रहे। -------

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वेदों का बताया महत्व :

आर्य समाज के प्रवर्तक महर्षि दयानंद सरस्वती ने रंग व देश के आधार पर भेदभाव को खत्म करने का संदेश दिया था, क्योंकि यह वेदों की शिक्षा के सर्वथा विपरीत है। आर्य समाज चौक प्रयाग के वेद प्रचार सप्ताह यजुर्वेद परायण के तहत आयोजित कार्यक्रम में आचार्य दिनेश आर्य ने यह बातें कही। कहा कि मनुष्य में भेद गुण, कर्म व स्वभाव के अनुसार होता है। जन्म या स्थान विशेष से किसी में कोई भेद नहीं होता। हर देश में अच्छे व बुरे लोग होते हैं, आर्य समाज इस सिद्धांत को नहीं मानता कि ब्राह्माण का बेटा ब्राह्माण या शूद्र का लड़का शूद्र ही होगा। भारतवासियों में जन्मपरक भेदभाव की बीमारी को महर्षि दयानंद ने अपनी विद्वता से दूर किया था। आर्य समाज समान व्यवहार का पक्षपाती है। अध्यक्षता रवींद्र जायसवाल व संचालन पीएन मिश्र ने किया। यज्ञ में विष्णु गुप्त, विवेक गुप्त, राकेश गुप्त, सत्यदेव शास्त्री शामिल हुए।


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