स्लोवानिया के दयानंद पत्नी व बेटे को छोड़ लिया संन्यास
स्लोवानिया के दयानंद को गुरु का सानिध्य मिलने पर मन की शांति मिली। पत्नी व बच्चों को छोड़ उन्हाेंने संन्यास ग्रहण किया।
प्रयागराज : 'कुछ साल पहले तक मैं समझता था कि पैसे से सारी खुशियां, सुख व शांति खरीदी जा सकती है। मैंने कड़ी मेहनत करके खूब धन कमाया। इस धन से सुख-सुविधाओं के साथ अन्य जरूरत की सभी वस्तुएं भी इकट्ठा कर ली, लेकिन मन अशांत ही रहा। इधर-उधर काफी काफी भटकने के बाद भी कोई फायदा नहीं हुआ, मन की शांति बिल्कुल नहीं मिली। गुरु का सानिध्य मिलने के बाद मुझे शांति मिली। यह भाव हैं यूरोप के स्लोवानिया निवासी पेशे से इंजीनियर रहे दयानंद के।
महामंडलेश्वर दयानंद के सानिध्य में आए
1989 में महामंडलेश्वर दयानंद के सानिध्य में आए। दयानंद गर्व से कहते हैं कि गुरु जी ने मुझे अपना नाम दिया, यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। दयानंद अपना पुराना नाम बताने से हिचकते हुए बताते हैं कि वह गुरु के विचारों से इतना प्रभावित हुए कि दस साल पहले पत्नी नादा और बेटे वासिया को छोड़कर संन्यास ग्रहण कर लिया। पत्नी को गुरुजी ने रूपा नाम दिया है।
हिंदू धर्म अपनाने पर शुरू किया योग
दयानंद बताते हैं कि ङ्क्षहदू धर्म अपनाने के बाद उन्होंने मंत्रों का जप, ध्यान व योग करना शुरू किया। इससे मन का भटकाव दूर हुआ। गुरु के सानिध्य में रहकर उन्होंने अपनी दिनचर्या, खानपान, बातचीत में बदलाव अपने जीवन में दयानंद लाए। इससे जीवन में चमत्कारिक परिवर्तन हुआ। बताया कि अपने देश में भी वह संन्यासी के वेष में ही रहते हैं। प्रयाग कुंभ में चौथी बार आए दयानंद बताते हैं कि यहां की रेती में अद्भुत शक्ति है, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।