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सिविल विवाद में दर्ज आपराधिक केस रद्द, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सिविल विवाद में एफआइआर दर्ज करने का निर्देश जारी करने पर आश्चर्य व्यक्त किया है। कोर्ट ने कहा है कि इस आदेश का असर नियमानुसार कायम सिविल या राजस्व कार्यवाही पर नहीं पड़ेगा।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sat, 24 Jul 2021 06:40 AM (IST)Updated: Sat, 24 Jul 2021 06:40 AM (IST)
सिविल विवाद में दर्ज आपराधिक केस रद्द, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, यह न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग
कहा कि न्याय हित में कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए आपराधिक केस रद्द किया जाना जरूरी

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल प्रकृति के विवाद के मामले में दर्ज एफआइआर को रद्द कर दिया है और कहा है कि न्याय हित में कानूनी प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए आपराधिक केस रद्द किया जाना जरूरी है। कोर्ट ने न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा सिविल विवाद में एफआइआर दर्ज करने का निर्देश जारी करने पर आश्चर्य व्यक्त किया है। कोर्ट ने कहा है कि इस आदेश का असर नियमानुसार कायम सिविल या राजस्व कार्यवाही पर नहीं पड़ेगा।

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गोदनामे और वरासत का विवाद

यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति पीयूष अग्रवाल की खंडपीठ ने गोविन्द उर्फ राधे लाल की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याची के खिलाफ कपट, धोखाधड़ी के आरोप में कन्नौज की छिबरामऊ कोतवाली में सुमेर शाक्य (बाद में मृत) ने एफआइआर दर्ज कराई थी। यह प्राथमिकी मजिस्ट्रेट के आदेश पर दर्ज हुई जिसे चुनौती दी गई थी। याची का कहना था कि शिकायत कर्ता की पत्नी रामवती,लाल सहाय की पुत्री है। लाल सहाय के चाचा छिद्दन ने 5 दिसंबर 1959 को याची को गोद लिया और गोदनामा पंजीकृत करा लिया। 9सितंबर 1960 को याची के नाम तहसीलदार छिबरामऊ ने वरासत दर्ज कर दी। चकबंदी के समय रामवती ने गोदनामे पर आपत्ति की जो खारिज हो गई। अपील और पुनरीक्षण भी खारिज हो गई। मुंसिफ मजिस्ट्रेट की अदालत में सिविल वाद दायर किया। उसमें हुए समझौते में गोदनामा स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद एफआइआर दर्ज कराई गई।जिसे कोर्ट ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करार देते हुए रद्द कर दिया है।


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