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कोरोना पॉजीटिव असिस्टेंट प्रोफेसर नम्रता ने पति की तीमारदारी से प्रयागराज में परिवार सहित दी महामारी को मात

पहले तो मैं डर ही गई थी। क्योंकि घर में नौ साल की बेटी और बुजुर्ग माता-पिता हैं। मां को डायबिटीज है। पति आगरा में एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं। उन्हेंं जैसे ही पता चला मैं संक्रमित हो गई हूं तो अगली ही सुबह वह प्रयागराज आ गए

By Ankur TripathiEdited By: Published: Wed, 28 Apr 2021 06:30 PM (IST)Updated: Wed, 28 Apr 2021 06:30 PM (IST)
कोरोना पॉजीटिव असिस्टेंट प्रोफेसर नम्रता ने पति की तीमारदारी से प्रयागराज में परिवार सहित दी महामारी को मात
नम्रता का कहना है कि पति की तीमारदारी की मदद से उन्होंने परिवार सहित महामारी को मात दे दी।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) के संघटक जगत तारन गर्ल्स पीजी कॉलेज में संगीत विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर नम्रता देब छह अप्रैल को कोरोना संक्रमित हुईं। बाद में नौ साल की बेटी सरगम पॉल और मां नीलिमा देब व पिता अरुण चंद्र देब भी संक्रमित हो गए। सबकी तीमारदारी डॉक्टर नम्रता के पति मनीष कांति पॉल ने की। और बड़ी खास बात यह कि नम्रता का कहना है कि पति की तीमारदारी की मदद से उन्होंने परिवार सहित महामारी को मात दे दी।

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तीमारदारी के लिए पति आ गए आगरा से फिर की देखभाल

नम्रता बताती हैं कि मुझे लगा कि अतिरिक्त काम के बोझ के कारण मुझे कमजोरी महसूस हो रही है। अपना शरीर गरम महसूस हो रहा था लेकिन थर्मामीटर में तापमान सामान्य था। अनजाने में अपने सभी कार्य सभी दिशानिर्देशों का पालन करते रही। धीरे-धीरे समय के साथ स्वयं को स्वस्थ महसूस करने लगी। फिर भी संदेह हुआ क्योंकि मेरी सूंघने की शक्ति चली गई थी, जो कोविड के ही लक्षणों में से एक है। ऐसे में टेस्ट करवाया और रिपोर्ट पॉजिटिव आई। वह कहती हैं जाहिर है जो कुछ भी आजकल सुनने को मिल रहा है उससे पहले तो मैं डर ही गई थी। क्योंकि मेरे घर में मेरी नौ साल की बेटी और बुजुर्ग माता-पिता हैं। मां को डायबिटीज है। पति आगरा में एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं। उन्हेंं जैसे ही पता चला मैं संक्रमित हो गई हूं तो अगली ही सुबह वह आगरा से प्रयागराज आ गए और तीमारदारी में जुट गए। हम अब काफी राहत महसूस कर रहे थे और सभी निर्देशों का यथासंभव पालन भी कर रहे थे। लेकिन कुछ लोगों को पता क्या चल गया कि मैं कोविड पॉजिटिव हो गई हूं तो मेरे वॉट्सएप पर मैसेज की बाढ़ सी आ गई। काढ़ा पियो, भाप लो, ये सूंघो वो सूंघो, ये खाओ गरम पानी पियो। ये जानते हुए की मैं किचन तक तो क्या? अपने कमरे की लक्ष्मण रेखा तक पार नहीं कर सकती। न हमारी मदद करने बाहर का कोई व्यक्ति आ सकता है। मेरे पति आ चुके हैं लेकिन घर में एक नहीं चार कोरोना मरीज थे। वो अकेले भला क्या-क्या संभालेंगे।

मन में थे तमाम सवाल लेकिन हिम्मत बनाए रखी

एक खौफ ने दिल में घर करना शुरू कर दिया। पति को इतना तजुर्बा जो नहीं रसोई का। तो क्या मैं ठीक नहीं हो पाऊंगी?  क्या मैं मर जाऊंगी, मेरे घरवालों का क्या होगा? इसी उधेड़बुन में थी की मेरे अंतर्मन ने मुझे समझाया। देखो इस बुरे वक्त ने भी कितना अ'छा समय तुमको दिखाया है, तुम चाहती थी न कुछ पल रसोई से छुटकारा, आलू, प्याज टमाटर घर पर है की नहीं इन चिंताओं से छुटकारा, कॉलेज के कामों के तनाव से छुटकारा, और तो और कभी सोचा था की तुम्हारे पति तुम्हारे लिए प्यार से खाना बनाएंगे? सिर्फ तुम्हारी नहीं बिटिया, और तुम्हारे मां बाप का, जितना उनसे बन पड़ता है, ख्याल रखेंगे। यही सोचते-सोचते देखा अब कोई भी लक्षण नहीं रह गए हैं। क्योंकि सबसे अ'छी और कारगर दवा बाहर नहीं बल्कि आपके अंदर है। वह रातों में उठकर भी काढ़ा और अन्य आवश्यक दवाएं देते रहे।


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