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Health News: बदलते मौसम में निमोनिया से बच्चों और बुजुर्गों का रखना होगा सुरक्षित

निमोनिया खतरनाक है तो समय पर उपचार मिलने से काफी राहत भी मिलती है। आरोग्य भारती और विश्व आयुर्वेद मिशन ने आनलाइन स्वास्थ्य संवाद किया। इसमें निमोनिया के लक्षण कारण और उपचार के बारे में जानकारी दी गई। निमोनिया के प्रति लापरवाही बरतना घातक साबित हो सकता है

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sun, 14 Nov 2021 12:09 PM (IST)Updated: Sun, 14 Nov 2021 12:09 PM (IST)
Health News: बदलते मौसम में निमोनिया से बच्चों और बुजुर्गों का रखना होगा सुरक्षित
यह बीमारी खतरनाक है तो समय पर उपचार मिलने से काफी राहत भी मिलती है

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। आजकल के इस सर्द मौसम में जरा सी लापरवाही बरतने पर लोगों को निमोनिया होना स्वाभाविक है। यह बीमारी खतरनाक है तो समय पर उपचार मिलने से काफी राहत भी मिलती है। आरोग्य भारती और विश्व आयुर्वेद मिशन ने आनलाइन स्वास्थ्य संवाद किया। इसमें निमोनिया के लक्षण, कारण और उपचार के बारे में जानकारी दी गई। सलाह दी गई कि निमोनिया के प्रति लापरवाही बरतना घातक साबित हो सकता है इसलिए इससे जुड़े लक्षण दिखते ही इलाज शुरू कर देना चाहिए।

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बच्चों और बुजुर्गों के लिए घातक

आरोग्य भारती के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य एवं वरिष्ठ चिकित्सक डा. जी एस तोमर ने कहा कि निमोनिया बैक्टीरिया के संक्रमण से होता है। यह पांच साल तक के बच्चों और 65 वर्ष से अधिक वृद्धों के लिए जानलेवा है। कहा कि गाय के दूध से बने देशी घी में कपूर तथा सेंधा नमक मिलाकर सीने पर मालिस और फिर सेकाई करने और सितोपलादि चूर्ण को तुलसी पत्र स्वरस एवं आर्द्रक स्वरस से सेवन करने पर लाभ मिलता है।

सांस फूले और भूख न लगे तो कराएं टेस्ट

चेस्ट फिजीशियन डा. आशीष टंडन ने कहा कि निमोनिया के रोगियों को पीले या हरे रंग के थूक के साथ खांसी होती है। सांस फूल सकती है। कुछ रोगियों को सीने में दर्द, खून की खांसी या भूख न लगने का भी अहसास हो सकता है। ऐसे लक्षण होने पर चिकित्सक से परामर्श अवश्य लेना चाहिए।

छह माह तक जरूर पिलाएं नवजात को दूध

मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज की पूर्व रिसर्च अधिकारी डा. शांति चौधरी ने कहा कि बच्चों में पोषक तत्वों की कमी, घर या कार्यस्थल पर रोशनदान न होना, आटोइम्यून डिसऑर्डर के लिए स्टेरॉयड या अन्य इम्यूनोसप्रेशेन्ट दवाओं का प्रयोग, पर्यावरण प्रदूषण निमोनिया के प्रमुख कारण हैं। कहा कि इससे बचने के लिए छह माह तक शिशु को मां का दूध अवश्य पिलाना चाहिए। एपेक्स इंस्टीट्यूट आफ आयुर्वेदिक मेडिसिन चुनार मिर्जापुर के प्रोफेसर वीरेंद्र कुमार विभागाध्यक्ष कौमारभृत्य और आयुर्वेद चिकित्साधिकारी डा. अवनीश पांडेय ने भी बीमारी के कारण व उपचार की जानकारी दी।


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