जीत तक नहीं पहुंचा सके कैडर वोट, हार की वजहों पर मंथन शुरू
लगातार 24 साल तक इलाहाबाद-झांसी स्नातक खंड सीट पर काबिज रहने वाले डॉ. यज्ञ दत्त शर्मा पांचवीं बार अपनी सीट नहीं बचा सके। उन्हें भाजपा का कैडर वोट इस बार जीत के आंकड़े तक नहीं पहुंचा पाया। जबकि नामांकन के बाद डॉ. शर्मा ने कहा कि अब तक वह भाजपा को चुनाव लड़ाते थे इस बार भाजपा उन्हें लड़ा रही है।
जागरण संवाददाता, प्रयागराज : लगातार 24 साल तक इलाहाबाद-झांसी स्नातक खंड सीट पर काबिज रहने वाले डॉ. यज्ञ दत्त शर्मा पांचवीं बार अपनी सीट नहीं बचा सके। उन्हें भाजपा का कैडर वोट इस बार जीत के आंकड़े तक नहीं पहुंचा पाया। जबकि नामांकन के बाद डॉ. शर्मा ने कहा कि अब तक वह भाजपा को चुनाव लड़ाते थे, इस बार भाजपा उन्हें लड़ा रही है। जीत और हार पार्टी के ही खाते में जाएगी। शायद यही वजह रही कि प्रचार अभियान में पार्टी के कद्दावर नेता उतरे, पर बात नहीं बनी। अब हार की वजहों को लेकर मंथन शुरू हो चुका है। जल्द ही इसे लेकर बैठक भी की जाएगी।
एमएलसी चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के प्रभारी बनाए गए राधा मोहन सिंह, प्रदेश संगठन मंत्री सुनील बंसल ने भी दौरा कर कार्यकर्ताओं में उत्साह भरा और सभी से संगठित होकर प्रचार अभियान में जुटने का आग्रह किया था। उसके बाद स्थानीय सांसद, विधायक, संगठन के पदाधिकारी लगातार मतदाताओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास करते रहे। कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह, नंद गोपाल गुप्त नंदी ने भी चुनाव में जोर लगाया। संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि जल्द ही बैठक कर हार की वजहों पर मंथन किया जाएगा। पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों का यह भी कहना है कि इस चुनाव में डॉ. शर्मा को मिलने वाले वोटों को बड़ी संख्या में इनवैलिड कर दिया गया जिससे जीत का आंकड़ा नहीं मिला। दूसरी वजह यह कि मतदाताओं ने दूसरी वरियता का वोट नहीं दिया। इसके अतिरिक्त शिक्षकों को मतदाता बनाने के अभियान में भी ढिलाई बरती गई। स्नातक मतदाताओं पर भी खास फोकस नहीं किया गया। 1991 में पहला चुनाव हारे थे डॉ. यज्ञदत्त शर्मा
इलाहाबाद झांसी स्नातक खंड के चुनाव में डॉ. यज्ञ दत्त शर्मा ने पहली बार 1991 में भाग्य आजमाया था। रमेश चंद्र श्रीवास्तव के हाथों उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उसके बाद 1996 में दोबारा मैदान में उतरे। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी रमेशचंद्र श्रीवास्तव रहे। इस बार डॉ. शर्मा को जीत हासिल हुई। उसके बाद लगातार चार साल एमएलसी रहे। दो बार रामेश चंद्र को मात दी जबकि दो बार बाबू राम तिवारी को हराया। इस बार बाबू राम तिवारी ने उन्हें समर्थन देकर चुनाव लड़ने से इन्कार कर दिया। इसकी वजह से सपा उम्मीदवार मान सिंह से सीधी टक्कर हुई और हार का सामना करना पड़ा।