CAA Violence: उपद्रवियों के पोस्टर सड़कों से तत्काल हटाए सरकार, हाईकोर्ट का आदेश UP News
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सभी सार्वजनिक जगहों पर लगाए गए पोस्टर्स व होर्डिंग्स हटाने का आदेश दिया है।
प्रयागराज, जेएनएन। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ लखनऊ में प्रदर्शन के दौरान हिंसा व तोडफ़ोड़ करने वालों का सार्वजनिक स्थल पर पोस्टर लगाने के मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सोमवार को अपना फैसला दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को सभी सार्वजनिक जगहों पर लगाए गए पोस्टर्स व होर्डिंग्स हटाने का आदेश दिया है।
महाधिवक्ता राघवेंद्र प्रताप सिंह ने दलील देते हुए कहा था कि सरकार ने ऐसा इसलिए किया, ताकि आगे इस तरह का प्रयास न किया जाए। इलाहाबाद हाईकोर्ट उनकी दलील से सहमत नहीं हुआ। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने हिंसा के दौरान नामजद लोगों के नाम, पते और फोटो को भी सार्वजनिक न करने का निर्देश दिया है।
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध में हुई हिंसा के बाद आरोपियों की होर्डिंग्स लगाने के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ के डीएम और पुलिस कमिश्नर को इन पोस्टर-बैनर्स को तत्काल हटाने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने हिंसा के दौरान नामजद लोगों के नाम, पते और फोटो को भी सार्वजनिक न करने का निर्देश दिया है। साथ ही इस मामले में 16 मार्च तक अनुपालन रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 16 मार्च को होगी।
यह आदेश चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर तथा न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने दिया है। कोर्ट ने कहा है कि बिना कानूनी उपबंध के नुकसान वसूली के लिए पोस्टर मे फोटो लगाना अवैध है। यह निजता अधिकार का हनन है। बिना कानूनी प्रक्रिया अपनाये किसी की फोटो सार्वजनिक स्थानों पर प्रदर्शित करना गलत है।
रविवार को सरकार की ओर से महाधिवक्ता ने हाईकोर्ट में पक्ष रखा। इसके बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। महाधिवक्ता ने कहा लोक व निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों को हतोत्साहित करने के लिए यह कार्रवाई की गई है।
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रविवार का अवकाश होने के बावजूद इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर व न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा की खंडपीठ ने इस प्रकरण पर सुनवाई की। लखनऊ प्रशासन की ओर से सार्वजनिक स्थलों पर होर्डिंग व पोस्टर में प्रदर्शनकारियों के चित्र लगाने को निजता के अधिकार का हनन मानते हुए हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका कायम की है। कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किस कानून के तहत सार्वजनिक स्थल पर प्रदर्शनकारियों की फोटो लगाई गई है? क्या सरकार बिना कानूनी उपबंध के निजता के अधिकार का हनन कर सकती है?
महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने बताया कि सड़क के किनारे उन लोगों के पोस्टर व होर्डिंग लगाए गए हैं, जिन्होंने कानून का उल्लंघन किया है। इन लोगों ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है। पूरी प्रक्रिया कानून के मुताबिक अपनाई गई। उन्हें अदालत से नोटिस जारी किया गया। अदालत में उपस्थित न होने पर पोस्टर लगाने पड़े।
कोर्ट ने जानना चाहा कि ऐसा कौन सा कानून है जिसके तहत ऐसे लोगों के पोस्टर सार्वजनिक तौर पर लगाए जा सकते हैं? महाधिवक्ता ने कहा कि ये कानून तोडऩे वाले लोग हैं और कानूनी प्रक्रिया से बच रहे हैं, इसलिए सार्वजनिक रूप से इस तरह खुलासा किया गया। ये सभी लोग कानून के मुजरिम हैं। महाधिवक्ता ने याचिका की पोषणीयता का सवाल भी उठाया। कहा कि प्रदर्शनकारी कानून के जानकार हैं, इसलिए जनहित याचिका पोषणीय नहीं है। इसके पहले विशेष खंडपीठ ने सुबह 10 बजे सुनवाई शुरू की, लेकिन तब तक महाधिवक्ता कोर्ट नहीं पहुंच पाए। इससे सुनवाई तीन बजे तक के लिए टाल दी गई। फिर तीन बजे पुन: सुनवाई शुरू हुई। सरकार की तरफ से महाधिवक्ता के अलावा अपर महाधिवक्ता नीरज त्रिपाठी, अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता शशांक शेखर सिंह व अपर शासकीय अधिवक्ता मुर्तजा अली ने पक्ष रखा।
गौरतलब है कि सीएए के खिलाफ दिसंबर 2019 में लखनऊ में हिंसक प्रदर्शन हुआ था। पुलिस व प्रशासन ने जांच के बाद दोषी पाए गए लोगों की पहचान करने के लिए सार्वजनिक स्थानों पर उनकी फोटो सहित पोस्टर व होर्डिंग लगवा दिया, जिसकी सुनवाई हाईकोर्ट में चल रही थी।
पूर्व आईपीएस अफसर एसआर दारापुरी ने किया स्वागत
इन होर्डिंग्स में 53 लोगों के नाम, उनकी तस्वीर और पता दर्ज है। पूर्व आईपीएस अफसर एसआर दारापुरी और सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जफर का भी इसमें नाम है। लखनऊ में CAA का विरोध करने वालों में पूर्व आईपीएस अफसर एसआर दारापुरी का नाम भी प्रमुखता से लिया जा रहा है। उन्होंने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा होर्डिंग मामले का स्वतः संज्ञान लेने का स्वागत किया है। दारापुरी ने कहा कि शहर में होर्डिंग लगाया जाना उनकी निजता, सम्मान और नागरिकों की आजादी के अधिकार का हनन है। उन्होंने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा की गई कार्यवाही का मैं स्वागत करता हूं। जिस तरह का व्यवहार राज्य सरकार कर रही है और हमारे होर्डिंग लगा रही है, न्यायपालिका द्वारा इसका संज्ञान लिया जाना एक स्वागत योग्य कदम है। उन्होंने आगे कहा कि हमारे केस में हमारी फोटोग्राफ ली गई है। मुझे नहीं पता तस्वीरें कहां से ली गई हैं। ये गैरकानूनी है और उन्होंने इसे होर्डिंग्स पर लगा दिया। ये हमारी निजता का उल्लंघन है और इससे हमारी जिंदगी और हमारी स्वतंत्रता को खतरा है। मैं इसके लिए राज्य को जिम्मेदार मानता हूं।
Shalabh Mani Tripathi, Media Advisor to UP CM: It is true that the Court is above all, there are many options. Govt will decide what option to go for. But it is a fact that none of the people, who damaged public properties, will be spared. (2/2)— ANI UP (@ANINewsUP) March 9, 2020
नुकसान पहुंचाने वाले बख्शे नहीं जाएंगे : शलभ मणि त्रिपाठी
यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार शलभ मणि त्रिपाठी ने हाई कोर्ट के फैसले पर कहा कि यह सच है कि न्यायालय सभी से ऊपर है। अभी कई विकल्प हैं, सरकार तय करेगी कि किस विकल्प के लिए जाना है, लेकिन यह एक सच्चाई है कि सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने वाले लोगों में से किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा। उन्होंने कहा कि अभी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश की जांच की जा रही है। इस बात की भी जांच की जा रही है कि पोस्टरों को हटाने के लिए किस आधार पर आदेश पारित किया गया है। हमारे विशेषज्ञ इसकी जांच कर रहे हैं। अंतिम फैसला मुख्यमंत्री लेंगे।