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Coronavirus संकट के हालात बयां करने वाली पुस्तक लॉकडाउन के 55 दिन का विमोचन

वरिष्ठ शायर शकील ग़ाज़ीपुरी ने कहा कि यह किताब आज इतिहास में दर्ज़ हो गई है। इम्तियाज़ ग़ाज़ी ने टीम बनाकर बारी-बारी से सबकी रचना पर परिचर्चा कराई इस परिचर्चा के साथ देश के हालात को मिलाकर यह किताब तैयार की गई है जो कई मायने में बेहद ख़़ास है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 08 Nov 2020 05:15 PM (IST)Updated: Sun, 08 Nov 2020 05:15 PM (IST)
Coronavirus संकट के हालात बयां करने वाली पुस्तक लॉकडाउन के 55 दिन का विमोचन
गुफ्तगू की ओर से करैली स्थित अदब घर में विमोचन समारोह आयोजित किया गया।

प्रयागराज, जेएनएन। लाॅकडाउन के दौरान देश सहित पूरी दुनिया ने बहुत खराब दौर देखा है। गरीब और मज़दूर तबका कुछ ज़्यादा ही परेशान था। लोग सड़कों और रेल की पटरियों के रास्ते पैदल अपने घर जाने को मजबूर हुए थे। ऐसे माहौल में कुछ रचनाकारों ने एकत्र होकर काम किया, जिसका नतीज़ा हुआ कि लाॅकडाउन के 55 दिन पुस्तक तैयार हुई। इम्तियाज़ ग़ाज़ी ने लाॅकडाउन की हक़ीक़त को एकत्र कर दस्तावेज तैयार किया है, जो किताब की शक्ल मेें सामने आ गई है। यह किताब एक ऐतिहासिक दस्तावेज बनकर सामने आई है। यह बात पूर्व अपर महाधिवक्ता क़मरुल हसन सिद्दीक़ी रविवार को गुफ़्तगू की ओर से करैली स्थित अदब घर में आयोजित विमोचन समारोह में कही।

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लॉकडाउन के दौरान काव्य परिचर्चा और समीक्षा लेखन

बकौल मुख्य अतिथि बोल रहे कमरुल ने कहा कि गुफ़्तगू और इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने अपने काम से एक ख़ास पहचान बना ली है। प्रयागराज जैसे शहर से ही ऐसे काम होते रहे हैं, यह शहर साहित्य की राजधानी रहा है। इम्तियाज़ अहमद ग़ाज़ी ने कहा कि लाॅकडाउन के दौरान हमने काव्य परिचर्चा शुरू किया, जिसमें देशभर के रचनाकार शामिल हुए थे। इनमें तमाम लोग ऐसे थे, जिन्होंने कविता तो लिखी थी, लेकिन कभी समीक्षा नहीं लिखी थी। परिचर्चा के दौरान लोगों ने समीक्षा लिखना शुरू कर दिया। दो दर्जन से अधिक लोगों ने आलोचना लिखना शुरू दिया और अब बहुत अच्छा लिखने लगे हैं।

मुशायरे में पेश किए बेहतरीन कलाम

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ शायर शकील ग़ाज़ीपुरी ने कहा कि यह किताब आज इतिहास में दर्ज़ हो गई है। इम्तियाज़ ग़ाज़ी ने एक टीम बनाकर बारी-बारी से सबकी रचना पर परिचर्चा कराई, इस परिचर्चा के साथ देश के हालात को मिलाकर यह किताब तैयार की गई है, जो कई मायने में बेहद ख़़ास है। नरेश महरानी ने गुफ़्तगू के कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि आज ऐसे ही कार्य की आवश्यकता है। काव्य परिचर्चा में शामिल रहे सभी लोगों को गुफ़्तगू की तरफ से प्रशस्ति प्रदान किया गया। संचालन शैलेंद्र जय ने किया। दूसरे दौर में मुशायरे का आयोजन किया गया। रमोला रुथ लाल आरजू, शिवाजी यादव, दयाशंकर प्रसाद, प्रभाशंकर शर्मा, संजय सक्सेना, अनिल मानव, फ़रमूद इलाहाबादी, डाॅ. नीलिमा मिश्रा, अर्चना जायसवाल, हसनैन मुस्तफ़ाबादी, डाॅ. क़मरी आब्दी, असद ग़ाज़ीपुरी, अशरफ़ ख़्याल, डाॅ. हसीन जीलानी, प्रकाश सिंह अर्श और शाहिद इलाहाबादी ने कलाम पेश किया।


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