Move to Jagran APP

जनसंघ प्रत्‍याशी पं. ठाकुरदत्त मिश्र के पास नामांकन शुल्‍क के पैसे नहीं थे, तब बेटे ने निभाई पितृभक्ति

पं. ठाकुरदत्त मिश्र आगे आकर नवाबगंज से प्रत्याशी बनने को तैयार हुए हालांकि उनकी उम्र अधिक थी बीमार भी रहते थे लेकिन पार्टी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे। एक दिन बाद ही नामांकन होने थे। समस्या थी नामांकन शुल्क की।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 02 Mar 2021 09:47 AM (IST)Updated: Tue, 02 Mar 2021 09:47 AM (IST)
जनसंघ प्रत्‍याशी पं. ठाकुरदत्त मिश्र के पास नामांकन शुल्‍क के पैसे नहीं थे, तब बेटे ने निभाई पितृभक्ति
1962 में विधानसभा चुनाव में जनसंघ (भाजपा) प्रत्‍याशी के पास नामांकन कराने का भी पैसा नहीं था।

प्रयागराज, जेएनएन। आज के समय में भारतीय जनता पार्टी बड़ी राजनीतिक पार्टी है जो सन् 1980 के पूर्व जनसंघ हुआ करती थी। आज पार्टी के टिकट से चुनाव लडऩे को हजारों लोग कतार में रहते हैं किंतु एक दौर था जब पार्टी को प्रत्याशी नहीं मिलते थे। नामांकन के लिए पैसे नहीं होते थे। ऐसा ही एक वाकया नवाबगंज विधानसभा सीट पर घटित हुआ था जब जनसंघ प्रत्याशी ने रातोंरात पाला बदल लिया था, जिससे पार्टी के समक्ष कंडीडेट का संकट उठ खड़ा हुआ था। आनन-फानन में ठाकुर दत्त मिश्र को प्रत्याशी बनाया गया था लेकिन नामांकन के लिए पैसे तक नहीं थे तब उनके बेटे ने बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन कराने को रखे ढाई सौ रुपये पिता को नामांकन के लिए दे दिए थे। आइए जानते हैं क्या थी पूरी कहानी।

loksabha election banner

प्रो. संगमलाल ने नामांकन के एक दिन पहले बदल लिया था पाला

भारतीय जनता पार्टी के जिलाध्यक्ष रहे पंडित राघवेंद्र मिश्र बताते हैं कि 1962 में विधानसभा चुनाव थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के दर्शन शास्त्र विभाग के प्रो. संगमलाल पांडेय को भारतीय जनसंघ से नवाबगंज विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया गया था। वह उसी क्षेत्र के होलागढ़ के रहने वाले थे। वर्ष 1999 से पहले भाजपा के जिलाध्यक्ष रहे पंडित श्रीनाथ द्विवेदी तब जनसंघ के क्षेत्रीय प्रचारक थे। वह प्रो. संगम लाल को लेकर क्षेत्र में प्रचार कर रहे थे लेकिन नामांकन के एक दिन पहले प्रो. संगमलाल ने पाला बदल लिया तो पार्टी संकट में पड़ गई।

रूपनाथ सिंह यादव के कहने पर सोशलिस्ट पार्टी से लड़ा चुनाव

राघवेंद्र मिश्र बताते हैं कि न्यायमूर्ति सखाराम यादव के पिता रुपनाथ सिंह यादव उस समय सोशलिस्ट पार्टी के बड़े नेता थे। उन्होंने प्रो. संगमलाल को समझाया था कि जनसंघ सांप्रदायिक पार्टी है, केवल सीमित वोट मिलेगा। सोशलिस्ट पार्टी से लड़ जाओ तो पिछड़ा वर्ग के साथ ही मुस्लिम वोट भी मिल जाएंगे और चुनाव जीत जाओगे। रुपनाथ जी की उक्त बातें उन्हें अच्छी लगी थी और सोशलिस्ट पार्टी में जाने का मन बना लिया था हालांकि घोषणा नहीं की थी।

जनसंघ को भलाबुरा कहने से रुआंसे हो गए थे श्रीनाथ द्विवेदी

सामाजिक कार्यकर्ता व्रतशील शर्मा बताते हैं कि प्रो. संगमलाल पांडेय के पार्टी बदलने की आशंका के चलते इलाके के मानिंद और जनसंघ से जुड़े एडवोकेट भगवती प्रसाद शुक्ल ने तब पार्टीजनों की एक बैठक बुलाई जिसमें श्रीनाथ द्विवेदी, ठाकुरदत्त मिश्र के साथ प्रो. संगमलाल पांडेय भी थे। दूसरे ही दिन नामांकन दाखिल होना था। बैठक में प्रो. संगमलाल ने जनसंघ की जमकर आलोचना की और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए पार्टी छोडऩे की बात कही। यह सुनकर पार्टी के प्रचारक रहे श्रीनाथ द्विवेदी रुआंसे हो गए। उनका कहना था कि पार्टी हम सबके पिता के समान है ऐसे में उसकी आलोचना ठीक नहीं है। 

तब जनसंघ के सामने खड़ा हो गया था प्रत्याशी का संकट

सन् 1962 में जनसंघ से जुड़े राघवेंद्र मिश्र बताते हैं कि जब प्रो. संगमलाल ने जनसंघ छोडऩे की घोषणा कर दी तो पार्टी के सामने प्रत्याशी का संकट खड़ा हो गया था। तब मेरे पिता पं. ठाकुरदत्त मिश्र आगे आकर नवाबगंज से प्रत्याशी बनने को तैयार हुए हालांकि उनकी उम्र अधिक थी, बीमार भी रहते थे लेकिन पार्टी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे। एक दिन बाद ही नामांकन होने थे। समस्या थी नामांकन शुल्क की। मैंने एलएलबी उत्तीर्ण कर लिया था, बार काउंसिल में रजिस्टे्रशन कराने के लिए ढाई सौ रुपये रखे थे उसको पिता को दे दिया कि अपना नामांकन कराइए तब जाकर जनसंघ प्रत्याशी के तौर पर उनका नामांकन हो सका था। चुनाव में खर्च का इंतजाम उस समय इलाहाबाद के प्रचारक रहे डा. मुरली मनोहर जोशी ने किया था। तब वह फटफटिया से चलते थे। बताया कि मेरे पिता पंडित ठाकुरदत्त मिश्र साहित्यकार थे और सरस्वती पत्रिका के संपादन से भी जुड़े हुए थे। नवाबगंज के लाल का पूरा ग्राम के रहने वाले थे। तब शहर के पुराना कटरा मुहल्ले में रहते थे।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.