Birthday Anniversary of Maithili Sharan Gupt : सरस्वती पत्रिका से 'दद्दा' को मिला साहित्यिक शिखर
Birthday Anniversary of Maithili Sharan Gupt सरस्वती पत्रिका के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से मैथिलीशरण गुप्त ने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया।
प्रयागराज, जेएनएन। कहते हैं कि त्रिवेणी के जल में डुबकी लगाने से इंसान को जीते जी मोक्ष की प्राप्ति होती है, लेकिन तीर्थराज में अदृश्य के बजाय कभी साक्षात 'सरस्वती' की धारा बहती थी। इसमें गोता लगाने वाले रचनाकारों को अपरोक्ष रूप से अमरत्व की प्राप्ति हो गई। हम बात कर रहे हैं संगम नगरी से प्रकाशित होने वाली 'सरस्वती' पत्रिका की। इसी पत्रिका ने समकालीन रचनाकारों के बीच दद्दा के नाम से मशहूर मैथिलीशरण गुप्त को साहित्य के शिखर पर पहुंचाया। एक तरह से प्रयागराज व सरस्वती पत्रिका मैथिलीशरण के लिए साहित्यक ऊर्जा का केंद्र थे।
झांसी में हुआ था मैथिलीशरण गुप्त का जन्म
झांसी में तीन अगस्त 1886 को रामचरण कनकने व काशी बाई के घर जन्मे मैथिलीशरण गुप्त का अक्सर प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) आना होता था। सरस्वती पत्रिका के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा से मैथिलीशरण गुप्त ने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय संबंधों की रक्षा उनके काव्य का प्रथम गुण था। उनकी पहली कविता 'हेमंत' 1907 में सरस्वती में प्रकाशित हुई। पंचवटी, यशोधरा, साकेत, भारत-भारती जैसी रचनाओं ने भी उन्हें ख्याति दिलाई। हिंदी साहित्य के उत्थान व साहित्यकारों की मदद के लिए महादेवी वर्मा ने 'साहित्यकार संसद' का गठन किया था। मैथिलीशरण गुप्त उसमें काफी सक्रिय थे। हर बैठक में शामिल होते थे।
...और नेहरू को आना पड़ा साहित्यकार संसद
बात 1950 के आस-पास की है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त 'साहित्यकार संसद' की बैठक में हिस्सा लेने प्रयागराज आए थे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी शहर में थे। उन्होंने साहित्यकारों को आनंद भवन आमंत्रित किया, लेकिन मैथिलीशरण ने वहां जाने से इन्कार कर दिया। कहा कि अगर नेहरू को हमसे मिलना है तो वह साहित्यकार संसद आएं। इसके बाद नेहरू जी साहित्यकार संसद गए। कवि यश मालवीय बताते हैं कि मैथिलीशरण जहां बैठे थे उस कमरे में प्रवेश से पहले नेहरू जी ने अपनी टोपी उतारकर हाथ में ले ली। नेहरू के आने पर गुप्त ने उन्हें गले लगाया और बोले, जवाहर लाल मुझे खुशी है कि तुम कुर्सी पर बैठे हो, कुर्सी तुम्हारे ऊपर नहीं।'
कवि दिवस मनाने की पहल जगदीश गुप्त की थी
मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि की उपाधि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने दी थी। उनकी जन्म तिथि को कवि दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हिंदुस्तानी एकेडमी प्रयागराज के पूर्व अध्यक्ष स्व. जगदीश गुप्त ने की थी। कहते थे कि कवियों के लिए साल में एक दिन निश्चित होना चाहिए, जिस दिन वह आत्मीयता से एकत्र हो सकें।