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बिरजू महाराज की एक आस रह गई अधूरी, प्रयागराज के अपने गांव में चाहते थे कुछ खास

कथक केंद्र की संचालिका बिरजू महाराज की शिष्या उर्मिला शर्मा बताती हैं कि गुरुजी ने 2002 में पैतृक गांव में कथक विश्वविद्यालय बनने की इच्छा व्यक्त किया था। प्रशासनिक कवायद भी हुई लेकिन बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी। बिरजू महाराज 1983 में पहली बार किचकिला गए थे।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 10:20 AM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 10:22 AM (IST)
बिरजू महाराज की एक आस रह गई अधूरी, प्रयागराज के अपने गांव में चाहते थे कुछ खास
प्रयागराज के हंडिया में पूर्वजों की भूमि पर छलकी थी बिरजू महाराज की आंखें

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। तीर्थराज प्रयागराज की हंडिया तहसील क्षेत्र का किचकिला (रिखीपुर) गांव बिरजू महाराज के निधन की सूचना पाकर उदास हो गया है। आखिरी बार 11 वर्ष पूर्व 2011 में बिरजू महाराज किचकिला में आयोजित कथक माटी महोत्सव में शामिल होने के लिए गए थे। पांच दिवसीय महोत्सव में तीन दिन बिरजू महाराज शामिल रहे, उन्होंने प्रस्तुति भी दी थी। पं. अच्छन महाराज व महादेवी के संतान बिरजू महाराज पूर्वजों की थाती संजोने के लिए किचकिला में कथक विश्वविद्यालय बनवाना चाहते थे, जो पूरा नहीं हुआ।

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कथक केंद्र की संचालिका व बिरजू महाराज की शिष्या उर्मिला शर्मा बताती हैं कि गुरुजी ने 2002 में अपने पैतृक गांव में कथक विश्वविद्यालय बनने की इच्छा व्यक्त किया था। इस संबंध में प्रशासनिक कवायद भी हुई, लेकिन बात ज्यादा आगे नहीं बढ़ सकी। बिरजू महाराज 1983 में पहली बार किचकिला गए थे। तब गांव के बीच में एक मिट्टी का टीला था। वो गांववासियों की आस्था का केंद्र था। हर शुभ मौके व मन्नत पूरी होने पर लोग टीला की पूजा करते थे। बताया जाता है कि उसी टीले के बैठकर बिरजू महाराज के पूर्व व कथक नृत्य के जन्मदाता पं. ईश्वरीय प्रसाद गायन व नृत्य करते थे। कई सदी बाद भी उसके सुरक्षित होने पर बिरजू महाराज आश्चर्यचकित थे। उन्होंने टीले पर मत्था टेका तो उनकी आंखें छलक उठी थी। उन्होंने टीले का पूजन किया। तब गांव वालों ने कहा था कि ''महाराज जी आप यहां के लिए कोई बड़ा संकल्प लीजिए।

बताशा खिलाकर गांव के लोगों ने किया था स्वागत

तब बिरजू महाराज ने उस टीले पर देवी मंदिर बनवाने का संकल्प लिया था। उर्मिला बताती हैं कि बिरजू महाराज के गांव पहुंचने पर लोग भावविभोर से थे। बताशा खिलाकर स्वागत किया गया था। इसके बाद 1993, 1996 व 2011 में बिरजू महाराज किचकिला गए तो हर बार पुष्पवर्षा से उनका स्वागत हुआ। बिरजू महाराज ने जिस टीले पर मंदिर बनवाने का संकल्प लिया था, वहां उसके वंश वृक्ष का पत्थर लगाकर है 18 बाई 19 फिट का चबूतरा बना गया है।

बोले थे उसमें छत बनवा देना

एक सप्ताह पहले बिरजू महाराज से उर्मिला शर्मा की बात हुई थी। उर्मिला बताती हैं गुरुजी ने चबूतरा के ऊपर छत बनवाने को कहा था, जिससे उसके अंदर बैठकर भजन-कीर्तन हो सके।

छिपकली से डर गए महाराज जी

उर्मिला शर्मा बताती हैं कि कथक केंद्र दिल्ली में बिरजू महाराज से सीखना मेरे जीवन का बड़ा सपना था। महाराज जी मुझे ''तुलसीदास और कभी-कभी ''इलाहाबादी कहकर पुकारते थे। बताती हैं कि अगस्त 1983 में महाराज जी मेरे घर में रुके थे। रात को महाराज जी सोने के लिए अपने कमरे में चले गए। करीब 12.30 बजे वो बाहर आकर मेरे कमरे का दरवाजा जोर-जोर से खटखटाने लगे। बाहर आकर मैंने पूछा क्या हुआ? महाराज जी तो एकदम घबराए हुए थे। फिर उन्होंने एक कोने में छिपकली की ओर इशारा करके बताया कि इसे हटाओ। इतने महान कलाकार को बच्चों की तरह डरा हुआ देखकर हम सभी को हंसी आ गई। फिर महाराज जी भी हंसने लगे।

कह दूंगा पद्मविभूषण हूं बिरजू महाराज हूं

बिरजू महाराज 2006 में एक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए प्रयागराज आए थे। वापसी में ट्रेन का टिकट भूलवश शिष्या शाश्वती सेन दिल्ली लेकर चली गईं। तब उनके करीबी हरिनारायण मिश्र बोले, चिंता न करिए मैं दूसरा टिकट लेकर आता हूं। यह सुनकर बिरजू महाराज ने कहा, ''परेशान मत होईए। मैं बता दूंगा कि पद्मविभूषण पं. बिरजू महाराज हूं। इससे कोई टिकट नहीं मांगेगा।


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