Bharat Ratna : देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान में संगम नगरी की रही बड़ी हिस्सेदारी Prayagraj News
Bharat Ratna देश का यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रयागराज से जुड़ी चार हस्तियों को मिल चुका है जिनमें से तीन का संबंध तो सीधे प्रयागराज से है यानी यहां पैदा हुए थे जबकि एक यहां पैदा तो नहीं हुए थे लेकिन उनका यहां से गहरा जुड़ाव रहा है।
प्रयागराज, जेएनएन। धर्म, कर्म और शिक्षा के क्षेत्र में हमेशा अग्रणी रहने वाले प्रयागराज की देश की राजनीति के साथ ब्यूरोक्रेसी में भी खासी धमक रही है। यहां से कई राजनीतिज्ञ, ब्यूरोक्रेट्स निकले जिन्होंने प्रदेश ही नहीं पूरे देश की राजनीति और प्रशासनिक क्षेत्र को प्रभावित किया और सफलता के झंडे गाड़े। तीर्थराज प्रयाग की माटी में कई लाल हुए जो अपने असाधारण कार्यों के चलते देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' से अलंकृत हुए।
दो जनवरी 1954 में शुरू हुआ था भारत रत्न सम्मान
देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' को देने की शुरूआत दो जनवरी 1954 को हुई थी। तब देश की तीन हस्तियों डा.सर्वपल्ली राधाकृष्णन, सी.राजागोपालाचारी व डा. सीवी रमन को यह सम्मान दिया गया था। यह सम्मान सार्वजनिक सेवा, कला, खेल, संगीत, राजनीति तथा अन्य क्षेत्रों से जुड़े ऐसे विशिष्ट लोगों को दिया जाता है जिन्होंने अपने क्षेत्र में असाधारण कार्य किया हो जिससे देश का मान सम्मान बढ़ा हो।
प्रयागराज से जुड़ी चार हस्तियों को मिला है सर्वोच्च सम्मान
देश का यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान प्रयागराज से जुड़ी चार हस्तियों को मिल चुका है जिनमें से तीन का संबंध तो सीधे प्रयागराज से है यानी यहां पैदा हुए थे जबकि एक यहां पैदा तो नहीं हुए थे लेकिन उनका यहां से गहरा जुड़ाव रहा है। इन हस्तियों में देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व राजर्षि पुरुषोत्तमदास टंडन प्रयागराज में पैदा हुए जबकि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की प्रयागराज कर्मभूमि रही है। वे यहां से विधायक रहे और दो बार चुनकर संसद में भी पहुंचे थे।
पं. जवाहरलाल नेहरू को 1955 में मिला था सम्मान
देश के पहले प्रधानमंत्री रहे पंडित जवाहरलाल नेहरू को वर्ष 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। पंडित नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 को प्रयागराज (तबके इलाहाबाद) में हुआ था। स्वतंत्रता संग्राम और आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री के रूप में पं. नेहरू ने देश को विकास के पथ पर ले जाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। दुनियां में भारत की धाक बनाई। अपने जीवन काल में वह भारतीय राजनीति के केंद्र बिंदु बने रहे। 27 मई 1964 में पंडित नेहरू का नई दिल्ली में निधन हो गया।
आयरन लेडी इंदिरा गांधी को भी मिला है भारत रत्न
आयरन लेडी के नाम से विख्यात पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी उनके विशिष्ट कार्यों के लिए 1971 में भारत रत्न सम्मान से नवाजा गया था। इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को प्रयागराज में हुआ था। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री होने के अलावा वे बचपन से स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी रहीं। पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू की तरह उन्होंने भी देश को विकास पथ पर ले जाने का काम किया। राजनीतिज्ञ के रूप में उस दौर में दुनिया में उनकी तूती बोलती थी। देश की राजनीति में भी वह लंबे समय तक सिरमौर रहीं। उनका प्रयागराज से गहरा लगाव था। राजनीतिक दौरों व बैठकों के सिलसिले में वे अक्सर आनंद भवन आती थीं और यहां प्रवास कर लोगों से मिलती थीं।
राजर्षि पीडी टंडन को मिला था 1961 में सर्वोच्च सम्मान
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पुरुषोत्तम दास टंडन का जन्म एक अगस्त 1882 में प्रयागराज में हुआ था। देश के बंटवारे के मुखर विरोध के लिए उनको जाना जाता है। हिंदी को देश की अधिकारिक भाषा घोषित करने के लिए वे आजीवन प्रयासरत रहे जिसके लिए उनको राजर्षि की उपाधि दी गई। उन्हें यूपी के गांधी के नाम से संबोधित किया जाता था। राजर्षि टंडन ने म्योर सेंट्रल कॉलेज इलाहाबाद से उच्च शिक्षा हासिल की थी। म्योर सेंट्रल कॉलेज को बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में मर्ज कर दिया गया। राजर्षि टंडन को 1961 में भारत रत्न से विभूषित किया गया। एक जुलाई 1962 में राजर्षि की मृत्यु हो गई। टंडन के नाम पर प्रयागराज में राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय के अलावा पार्क और सड़क आदि हैं।
पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री की कर्मभूमि रहा है प्रयागराज
देश को 'जय जवान जय जवान' का नारा देने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से 1966 मेें नवाजा गया। शास्त्री जी पैदा तो हुए थे मुगलसराय में लेकिन प्रयागराज उनकी कर्मभूमि रहा। अपने जीवन का अधिक समय उन्होंने यहीं गुजारा। दो अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में उनका जन्म हुआ। प्रयागराज के सोरांव विधानसभा से विधायक चुने जाने के साथ ही वे प्रदेश सरकार में मंत्री रहे। वर्ष 1957 और 1962 में वे दो बार लोकसभा का चुनाव जीत संसद में पहुंचे। 1965 में वे प्रधानमंत्री बने लेकिन 18 माह ही रह पाए क्योंकि 11 जनवरी 1966 को ताशकंत में उनकी मौत हो गई। वरिष्ठ कांग्रेसी और शास्त्री परिवार से जुड़े किशोर वाष्र्णेय बताते हैं कि 1965 में प्रयागराज के करछना विधानसभा के उरुवा ब्लाक में हुई एक जनसभा में शास्त्री जी ने जय जवान जय किसान का अमर नारा दिया था। वे परिवार सहित शहर के बलुआघाट मुहल्ले में किराए के मकान में रहते थे। उनके नाम पर प्रयागराज-वाराणसी राजमार्ग पर गंगा नदी पर शास्त्री पुल, फाफामऊ में होम्योपैथिक मेडिकल कालेज, मांडा में इंटरमीडिएट कालेज, पालीटेक्निक और अंग्रेजी माध्यम का एक प्राइमरी स्कूल भी संचालित है।