World Environment Day: बरगद की छांव अक्षय पुण्य के साथ देगी प्रचुर आक्सीजन, मान्यता है कि बसते हैं त्रिदेव
पौराणिक मान्यता के अनुसार वट सावित्री व्रत के दिन बरगद की पूजा करने के साथ उसका पौधा लगाने पर अश्वमेध यज्ञ जैसे पुण्य की प्राप्ति होती है। दैहिक दैविक व भौतिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। मां लक्ष्मी की कृपा बरसने के साथ पितर तर जाते हैं।
प्रयागराज, जेएनएन। महाज्ञान देने और पितरों को तारने वाले वृक्ष बरगद की पूजा चंद दिनों बाद की जाएगी। नौ जून को वट सावित्री व्रत है इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति, सुख-समृद्धि की संकल्पना को साकार करने के लिए निर्जला व्रत रखकर वट अर्थात बरगद के वृक्ष का पूजन करेंगी। कई मान्यताएं हैं बरगद से जुड़ी हुई। एक यह है कि इसमें त्रिदेव बसते हैैं। पत्ते में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव। इसकी छांव में मां लक्ष्मी का वास माना गया है। यह तो रही धार्मिक मान्यता। यह प्रचुर आक्सीजन भी देता है और समय की मांग है कि प्राणवायु को सहेजने के लिए हम सबको आगे आना चाहिए।
धर्मशास्त्रों में समस्त कामनाओं की पूर्ति वाला माना गया है वृक्ष
पौराणिक मान्यता के अनुसार वट सावित्री व्रत के दिन बरगद की पूजा करने के साथ उसका पौधा लगाने पर अश्वमेध यज्ञ जैसे पुण्य की प्राप्ति होती है। दैहिक, दैविक व भौतिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। मां लक्ष्मी की कृपा बरसने के साथ पितर तर जाते हैं। ऐसे में 'दैनिक जागरण ज्येष्ठ मास की इसी अमावस्या तिथि से अपने सामाजिक सरोकारों के तहत पर्यावरण संरक्षण के मद्देनजर 'बरगद की छांव नामक मुहिम शुरू करने जा रहा है। उम्मीद है कि हम सभी बरगद का पौधा लगवाकर पर्यावरण संरक्षित करने के साथ साल दो साल में उसी बरगद के तले पूजन करने लगेंगे। इस तरह पुण्य अक्षय (जिसका कभी क्षय न हो) हो जाएगा।
संगम पर तो सदियों से है अक्षयवट
तीर्थराज प्रयाग में तो सनातन धर्मावलंबियों की आध्यात्मिक चेतना व देवत्व से परिपूर्ण अक्षयवट (बरगद) का प्राचीन वृक्ष सदियों से है। मान्यता है कि किले के अंदर स्थित अक्षयवट सृष्टि बनने के समय से है। इसके लिए यह कहा जाता है कि अक्षयवट के पत्ते में भगवान विष्णु बाल रूप में शयन करते हैं। स्कंद पुराण, पद्म पुराण, मत्स्य पुराण में इसका वर्णन है। गोस्वामी तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में अक्षयवट की महिमा बखानी है। कालीदास के रघुवंशम् में भी वर्णन मिलता है। चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरण में भी जिक्र है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक ऋषि ने भगवान नारायण से ईश्वरीय शक्ति दिखाने का आग्रह किया। तब उन्होंने क्षणभर के लिए पूरे संसार को जलमग्न कर दिया था। सारी चीजें पानी में समा गई थी, तब भी अक्षयवट (बरगद का पेड़) का ऊपरी भाग दिखाई दे रहा था। मान्यता है कि संगम स्नान के बाद अक्षयवट का दर्शन- पूजन करने से वंश, धन-धान्य की वृद्धि होती है। यह वृक्ष महाज्ञान देने व पितरों को तारने वाला है। चित्रकूट जाने से पूर्व प्रभु श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण ने अक्षयवट के नीचे प्रवास किया था। जैन धर्मावलंबियों के आराध्य तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षयवट के नीचे तपस्या की था। मुगलकाल में इसे कई बार नष्ट करने का प्रयास हुआ। कुछ समय बाद वह पुन: अपने आकार में आ जाता था। इसी कारण उसे दीवारों के अंदर कैद कर दिया गया। कुंभ 2019 से पहले अक्षयवट को आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया।
व्रत नौ व स्नान दान की 10 को
ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि अमावस्या तिथि बुधवार दोपहर 1:19 बजे लगकर गुरुवार की दोपहर 3:16 बजे तक रहेगी। वट सावित्री व्रत के पूजन में शाम को अमावस्या जरूरी है। इसी कारण नौ जून को व्रत व बरगद का पूजन किया जाएगा। अगले दिन यानी 10 जून को स्नान-दान की अमावस्या रहेगी।
कितना फायदेमंद है बरगद
-बरगद की पूजा से लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
-बरगद के पूजन से घर में कलह और संताप खत्म होता है।
-बरगद के नीचे पूजन करने व कथा सुनने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
-बरगद की छांव पवित्र होती है। इसी कारण प्राचीनकाल में ऋषि-मुनि इसी के नीचे ध्यान लगाते थे।
-बरगद का वृक्ष ज्ञान व निर्माण का प्रतीक है।
-बरगद के नीचे समय व्यतीत करने से मानसिक व शारीरिक ऊर्जा मिलती है, आक्सीजन के रूप में भी यह प्राणवायु बन जाती है।