प्रतापगढ़ : बांस की खेती के हैं ये फायदे, आत्मनिर्भरता संग पर्यावरण संरक्षण
जिले के संड़वा चंद्रिका ब्लाक के रैबीरजानीपुर गांव के परीक्षित भट्ट व ललित कुमार शर्मा गांव में 40 बीघा जमीन पर बांस की खेती कर रहे हैं। जून 1018 में राच्य जैव ऊर्जा बोर्ड से लखनऊ व उन्नाव में इन्हें प्रशिक्षण दी गई थी।
प्रतापगढ़, जेएनएन। गरीबी को मात देने के लिए बांस की खेती हो रही है। यह प्रयोग जहां जल संरक्षण के लिहाज से कारगर साबित होगा, वहीं दूसरी ओर इससे अच्छी आय भी होगी। इस वजह से प्रतापगढ़ में कई किसान इस पर ध्यान दे रहे हैं।
तमाम किसान उगा रहे बांस
जिले के संड़वा चंद्रिका ब्लाक के रैबीरजानीपुर गांव के परीक्षित भट्ट व ललित कुमार शर्मा गांव में 40 बीघा जमीन पर बांस की खेती कर रहे हैं। जून 1018 में राच्य जैव ऊर्जा बोर्ड से लखनऊ व उन्नाव में इन्हें प्रशिक्षण दी गई थी। 15 हजार पौधा खरीदने के एवज में बोर्ड से तीन लाख 20 हजार रुपये अनुदान मिला था। उनके द्वारा बांस की खेती करते देख गांव के त्रिभुवन प्रसाद शर्मा, हरिकेश कुमार, शीतला प्रसाद, कमलेश कुमार, राकेश कुमार, अनीता शर्मा, अनिल कुमार भी बड़े पैमाने पर खेती कर रहे हैं।
जल संरक्षण में भी सहायक
खास बात यह है कि एक बांस करीब 55 से 70 फिट का होगा। एक बांस का वजन 45 किलो से 55 किलो तक होगा। बांस की खेती जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से कारगर साबित हो रही है। बांस की खेती से किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ जलवायु को सुदढ़ बनाने और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान मिल रहा है। साथ ही बंजर जमीन को उपजाऊ करने में मदद मिल रही है। भूमिहीनों सहित छोटे एवं मझोले किसानों और महिलाएं भी आजीविका से जुड़ रही हैं। लाखों रुपये की हो रही आय डीसी मनरेगा अजय कुमार पांडेय ने बताया जल संरक्षण के लिहाज से बांस की खेती कारगर साबित हो रही है। बांस की खेती करने पर जोर दिया जा रहा है। कुछ ग्राम पंचायतों में यह खेती हो रही है। एक ओर जहां बांस की खेती जल संरक्षण के लिहाज से कारगर साबित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर हर साल लाखों रुपये किसानों की होगी।