...और बकुलाही फिर बन गई जीवनधारा, खेतों को मिलने लगा पानी, सुधरा प्रतापगढ़ में जलस्तर
देसी हैंडपंप जल दे रहे हैं। बंजर भूमि में हरियाली लौट रही है। पशु-पक्षी व सभी जीव जंतुओं सहित दक्षिणांचल के जनजीवन को नवजीवन मिल रहा है। बकुलाही पुनरोद्धार अभियान के संयोजक समाज शेखर की देखरेख में 28 अगस्त को पुनरोद्धार दिवस को यादगार के रूप में मनाया जाता है
प्रतापगढ़, जागरण संवाददाता। दक्षिणांचल में बकुलाही नदी की प्राचीन धारा को फिर से मूल स्वरूप मिल गया है। एक दशक तक चलाए गए जनअभियान का सुखद परिणाम यह रहा कि प्राचीन धारा में नदी फिर से लबालब बह चली। लूप कटिंग के कारण जो नदी खेतों से रूठ गई थी, वह फिर से उनकी प्यास बुझाने लगी है। यह जलधारा हजारों लोगों की जीवनधारा बन गई है। लोग भी नदी को फिर से लबालब देखकर खासे प्रसन्न हैं।
प्राचीन धारा के पुनरोद्धार का प्रयास शुरू किया गया
बात करीब 30 बरस पुरानी है। बरसात की बाढ़ से ऊबकर सरकार की मदद से बकुलाही नदी की धारा के 21.4 मीटर दायरे को लूप कटिंग कर एक किमी नाला खोदकर अलग कर दिया गया था। जलधारा से हुई यह छेड़छाड़ धीरे-धीरे घोर पेयजल संकट के साथ भूजल जल स्तर के लिए खतरा बन गई। बाढ़ से तो कुछ राहत मिली, पर बाकी के महीनों में खेत सूखे रहने लगे। कुएं व हैंडपंपों का दम निकलने लगा। पानी के लिए हाहाकार मचने पर 28 अगस्त 2011 को सामाजिक कार्यकर्ता समाज शेखर की अगुवाई में जन आंदोलन की रूपरेखा बनी। प्राचीन धारा के पुनरोद्धार का प्रयास शुरू किया गया। इससे लोग जुड़ते गए। जून 2015 तक नदी मार्ग से अतिक्रमण हटाने में सफलता मिली। 2013 में तत्कालीन डीएम विद्या भूषण ने मनरेगा से कार्य कराया। प्राचीन धारा में जल प्रवाह के लिए जरूरी खोदाई व सफाई होने से नदी खिलखिला उठी। भयहरण नाथ धाम, पूरे तोरई, पूरे बैष्णव, हिंदूपुर, बाबूपुर, जमुआ, सराय देव राय, छतौना, शिवरा, शोभीपुर, सराय भीमसेन, मनेहू, गौरा, रामनगर, भट्ट पुरवा आदि गांवों में जलस्तर ऊपर आ गया।
देसी हैंडपंप देने लगे पानी
देसी हैंडपंप भी जल दे रहे हैं। हजारों बीघे बंजर भूमि में हरियाली भी लौट रही है। पशु-पक्षी व सभी जीव जंतुओं सहित दक्षिणांचल के जनजीवन को नवजीवन मिल रहा है। बकुलाही पुनरोद्धार अभियान के संयोजक समाज शेखर की देखरेख में 28 अगस्त को पुनरोद्धार दिवस को यादगार के रूप में मनाया जाता है। भयहरण नाथ महादेव का जलाभिषेक बकुलाही मैया के जल से किया जाता है। अभी कुछ कार्य बाकी है, जिसे पूरा करने के लिए राज-समाज से बराबर संवाद हो रहा है।
बूंद-बूंद के यह भी सारथी
नदी को पुराना गौरव व प्रवाह लौटाने में अनगिनत लोग सारथी बने। इनमें मुख्य रूप से सामाजिक नेता राम लखन, मोती लाल चौधरी, लालजी सिंह, अभय सिंह, फूल चंद्र पटेल, राम सजीवन पटेल समेत कई मौजूद रहे।