अमेरिका जाने के लिए घर से भागे थे प्रयागराज के बाबू मंगला प्रसाद, जानिए बाद में उन्हें क्यों वापस आना पड़ा
प्रयागराज के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की लिस्ट काफी लंबी है। आजादी के आंदोलन में यहां के क्रांतिवीरों ने अंग्रेजों के पैर उखाड़ दिए थे। गदर की चिंगारी प्रयागराज पहुंचने पर यहां काफी बवाल हुआ था। उसी समय अंग्रेजी हुकूमत ने प्रयागराज को उत्तर पश्चिम प्रांत की राजधानी बना दिया था।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की लिस्ट काफी लंबी है। आजादी के आंदोलन में यहां के क्रांतिवीरों ने अंग्रेजों के पैर उखाड़ दिए थे। गदर की चिंगारी प्रयागराज पहुंचने पर यहां भी काफी बवाल हुआ था। उसी समय अंग्रेजी हुकूमत ने प्रयागराज को उत्तर पश्चिम प्रांत की राजधानी बना दिया था। उसी दौर में एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी बाबू मंगला प्रसाद भी थे। उनकी गणना प्रयागराज के सर्वाधिक प्रभावशाली नेताओं में की जाती थी। कांग्रेस ने उन्हें संगठन और सरकार में जो भी दायित्व सौंपा उसे उन्होंने बखूबी निभाया। मंगला प्रसाद ने बाल्यकाल अवस्था में उन्होंने काफी परेशानी झेली थी। मैट्रिकुलेशन परीक्षा पास करने के बाद वे अमेरिका जाने के लिए घर से भाग गए थे।
म्यामार से पड़ा था लौटना
इतिहासकार प्रो.विमल चंद्र शुक्ला बताते हैं कि बाबू मंगला प्रसाद का जन्म 30 नवंबर 1896 को वाराणसी के चकिया गांव में हुआ था। 1908 में पिता मुंशी बनवारी लाल का निधन हो गया। 1919 में मैट्रिकुलेशन परीक्षा पास करने के बाद अमेरिका जाने के लिए वे घर से भाग गए थे। वे वर्मा (अब म्यामार) तक पहुंच गए थे। पर ऐसी स्थितियां बनी कि उन्हें वहां से वापस आना पड़ा। प्रयागराज आने पर उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई की। इसीबीच होमरूल आंदोलन में भाग लिया। असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण 1920-21 में सबसे पहले जो छात्र पकड़े गए थे उनमें मंगला प्रसाद पहले और प्रमुख थे।
नेहरू के साथ गए थे रायबरेली
प्रो.शुक्ला बताते हैं कि मंगला प्रसाद किसानों और ग्रामीणों के बहुत बड़े हिमायती थे। 1920 में रायबरेली के मुंशीगंज में जब किसानों पर गोली चलाई गई थी तो स्थिति को संभालने के लिए जवाहर लाल नेहरू के साथ वे भी गए थे। उन्होंने प्रतापगढ़ में भी किसानों के बीच रहकर कार्य किया था। मंगला प्रसाद ने खादी के प्रचार प्रसार के लिए भी काम किया था। एक खद्दर भंडार भी खोला था।
वकालत का पेशा भी अपनाया
प्रो.विमल चंद्र बताते हैं कि बाबू मंगला प्रसाद ने वकालत का पेशा अपनाया था। वे भरवरिया कांड तथा जवाहरलाल नेहरू के कुछ मुकदमों में बतौर वकील पेश हुए थे। बाद में उन्होंने वकालत छोड़ दी और पूरे समय कांग्रेस को संगठित करने में लग गए।