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Ayodhya Shriram Mandir : कारसेवकों के लिए बने थे 'हनुमान', इन्‍होंने लड़ी थी कानूनी लड़ाई Prayagraj News

राघवेंद्र बताते हैं कि श्रीराम मंदिर आंदोलन के लिए 1990 व 1992 में हुई कारसेवा ऐतिहासिक थी। हर व्यक्ति में श्रीराम लिए कुछ करने की भावना थी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 09:41 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jul 2020 09:41 AM (IST)
Ayodhya Shriram Mandir : कारसेवकों के लिए बने थे 'हनुमान', इन्‍होंने लड़ी थी कानूनी लड़ाई Prayagraj News
Ayodhya Shriram Mandir : कारसेवकों के लिए बने थे 'हनुमान', इन्‍होंने लड़ी थी कानूनी लड़ाई Prayagraj News

प्रयागराज, [शरद द्विवेदी]। श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में मंदिर निर्माण का सपना जल्द साकार होगा। हर सनातनी प्रभु श्रीराम को भव्य मंदिर में विराजमान होते देखना चाहता है। मंदिर निर्माण होते देखना उन लोगों को सौभाग्य की अनुभूति करा रहा है, जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से आंदोलन से जुड़े थे। उन्हीं लोगों में 86 वर्षीय वरिष्ठ अधिवक्ता राघवेंद्र प्रसाद मिश्र भी हैं। उन्होंने रामभक्त कारसेवकों की सेवा 'हनुमान जी' की तरह की थी। कारसेवकों के लिए अपने घर को आश्रय स्थल बनाया था। खाने-पीने का प्रबंध करने के साथ जेल गए लोगों को छुड़ाने के लिए मुफ्त में केस लड़े। 

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हर व्यक्ति में श्रीराम लिए कुछ करने की भावना थी : राघवेंद्र

राघवेंद्र बताते हैं कि 'श्रीराम मंदिर आंदोलन के लिए 1990 व 1992 में हुई कारसेवा ऐतिहासिक थी। हर व्यक्ति में श्रीराम लिए कुछ करने की भावना थी। मैं वकील था तो कारसेवकों को कानूनी सुरक्षा देने की जिम्मेदारी ले ली। जेल में बंद कारसेवकों को छुड़ाने की जिम्मेदारी भी उठाई। 565 कारसेवकों को जेल से छुड़ाकर घर जाने के लिए किराया भी दिया था।' आज राम मंदिर निर्माण का सपना साकार होता देख मन प्रफुल्लित हैं। क्या-क्या बताऊं, सिर्फ यही कहूंगा कि सौभाग्यशाली हूं कि ऐसा होता देख रहा हूं...।' 

जैसे श्रीराम के सैनिक सड़कों पर उतरे हों : सूर्यकांत

कारसेवा का हिस्सा रहे सूर्यकांत तिवारी भी सुखद स्मृतियों को संजोये हैं। बताते हैं कि कारसेवा में शामिल लोगों का जुनून, उत्साह चरम पर था। नंगे-पांव 'जय श्रीराम' का उद्घोष करते हुए लोग चल रहे थे। जगद्गुरु स्वामी वासुदेवानंद के नेतृत्व में निकली यात्रा का हिस्सा मैं भी था। जगह-जगह लोग पूड़ी-कचौड़ी, गुड़, बतासा व पानी वितरित कर रहे थे। कारसेवकों का पांव छूकर लोग श्रद्धाभाव से खिला रहे थे। लग रहा था कि जैसे श्रीराम के सैनिक सड़कों पर उतर गए हों। इससे मेरे मन में भी कारसेवकों की सेवा करने का भाव आया। उसके बाद फाफामऊ से वापस आकर कारसेवकों की सेवा में जुट गया था।


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