Ayodhya Ram Mandir :... तय कर लिया था कि सुलझा देंगे अयोध्या विवाद Prayagraj News
जस्टिस (रिटा.) सुधीर अग्रवाल इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की उस तीन सदस्यीय पीठ में शामिल थे जिसने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या मसले में फैसला सुनाया था।
प्रयागराज, जेएनएन। ... बात सितंबर 2008 के शुरुआत की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंच का समय था। कई न्यायाधीश थे, तभी तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एचएल गोखले मेरे पास आए और बोले, आपको अयोध्या मामले की बेंच में शामिल कर रहे हैं, कैसा रहेगा? मैैंने सहजता से कहा, ठीक रहेगा। मैं इस केस को फाइनल कर दूंगा। उन्हें आश्चर्य हुआ। बोले, मामला पेचीदा है और दो दशक से अब तक किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है। मैंने उन्हें आश्वस्त किया कि यह कोई मुश्किल नहीं। उसी दिन ठान लिया कि इसे सुलझा देना है। फिर प्रक्रिया शुरू कर दी।
मुकदमे से जुड़े दस्तावेज से भरे हैं हाईकोर्ट के दो कमरे
लखनऊ में 29 सितंबर 2008 से सुनवाई शुरू की। जस्टिस रफत आलम और जस्टिस डीवी शर्मा साथ थे। कुछ महीनों बाद जस्टिस रफत आलम रिटायर हुए तो जस्टिस एसयू खान बेंच में शामिल किए गए। दो साल तक लगातार सुनवाई चली। मुझे याद है कि इस दौरान कुल 160 बहस हुई। मामला दो समुदायों से जुड़ा था और दशकों से लंबित था, इसलिए किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना आसान नहीं था। यह इतना कितना जटिल था, इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि हाईकोर्ट के दो कमरे मुकदमे से जुड़े दस्तावेज से भरे हैं। गवाहों के बयान 18 हजार से अधिक पेजों में दर्ज हुए। केस के हर पहलू को समझने के लिए रोजाना 18 से 20 घंटे पढ़ाई करनी पड़ी। करीब आठ हजार पेज का फैसला था। 5093 पेज में तो मेरा फैसला लिखा गया था।
सरकारें नहीं चाहती थीं कि इसका फैसला आए
उस समय केंद्र में कांग्रेस और प्रदेश में बसपा की सरकार थी। दोनों ही सरकारें नहीं चाहती थीं कि इसका फैसला आए, लेकिन हम अपनी जिद पर अड़े थे। एक बार एक सीनियर लॉ अफसर मेरे पास आए गए और केस को लंबित करने का आग्रह करने लगे। मैैंने उनको भगा दिया। फैसले की घड़ी नजदीक आई तो तमाम अफवाह उडऩे लगी। मुझ पर खतरा भी मंडराने लगा। मेरी मां डर गई थी। मैैंने अपने बच्चों को दिल्ली और नोएडा से 29 सितंबर को ही प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) बुलवा लिया। एक गोपनीय रिपोर्ट आई कि मामला लंबित करवाने के लिए खाते में करोड़ों रुपये डाले जाएंगे। जैसे ही मुझे पता चला रातोंरात मैैंने अपना खाता सीज करवा दिया। फैसले के दिन स्टेट प्लेन से लखनऊ गए। वहां अफवाह उड़ी कि फैसला सुनाने के बाद जज साहब विमान से दिल्ली और फिर दुबई चले जाएंगे। इनके खाते में करोड़ों रुपये पहुंच गए हैैं। प्रोटोकाल अफसर ने पूछा- क्या आप विमान से दिल्ली जाएंगे? उससे पहले एक अफसर यह बात पूछ चुके थे। मै नाराज हो गया और चीफ जस्टिस के पास गया और नाराजगी जाहिर की।
दो साल तक किसी मंदिर में नहीं गया
इन सब पड़ावों से होते हुए हमारी बेंच ने फैसला सुनाया कि अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित जमीन सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला और निर्मोही अखाड़ा में एक समान तीन हिस्से में बांट दी जाए। उसके बाद में मैं प्रयागराज आ गया। यह फैसला अयोध्या मामले में मील का पत्थर साबित हुआ। अब आज वहां पर मंदिर बनता देख मन प्रफुल्लित है। वैसे एक बात बताऊं ... इस केस की सुनवाई के दौरान दो साल तक किसी मंदिर में नहीं गया, लेकिन हर मंगलवार को व्रत रखा और ईमानदारी से काम करता रहा। जिस दिन फैसला सुनाकर लौटा, शाम को सपरिवार सिविल लाइंस में हनुमत निकेतन और बंधवा स्थित हनुमान मंदिर में दर्शन पूजन के लिए गया।
(जस्टिस (रिटा.) सुधीर अग्रवाल इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच की उस तीन सदस्यीय पीठ में शामिल थे, जिसने 30 सितंबर 2010 को अयोध्या मसले में फैसला सुनाया था।)