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Special Story: ​​​​​6746 मौतों का गवाह है प्रयागराज का अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क

इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि पूर्ववर्ती इलाहाबाद में जून 1857 में हिंदुस्तानी सिपाहियों ने अंग्रेजी हुकूमत के आदेशों की नाफरमानी शुरू कर दिया। बंदूक और तोप के गोले का मुंह अंग्रेजों की ओर मोड़ दिया। किले में भी खजाना लूट लिया था

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 12 Aug 2021 11:44 AM (IST)Updated: Thu, 12 Aug 2021 11:44 AM (IST)
Special Story: ​​​​​6746 मौतों का गवाह है प्रयागराज का अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क
अंग्रेजों ने अल्फ्रेड पार्क की नींव रखी थी जहां आज अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क स्थित है।

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। 1857 में भारत के स्वतंत्रता संग्राम का सर्वप्रथम युद्ध इतिहास में अत्यंत उल्लेखनीय है। प्रयागराज भी इससे अछूता नहीं रहा। 10 मई 1857 को मेरठ में मंगल पांडेय ने अंग्रेजों के खिलाफ जब युद्ध की घोषणा कर दी तो उसकी ज्वाला पूरे भारत में फैलने लगी। इस ज्वाला ने तत्कालीन भारत के तकरीबन हर क्षेत्र को जद में लिया था।

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हिंदुस्तानी सिपाहियों ने अंग्रेजी हुकूमत के आदेशों की नाफरमानी शुरू कर दी

इतिहासकार प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि पूर्ववर्ती इलाहाबाद में जून 1857 में हिंदुस्तानी सिपाहियों ने अंग्रेजी हुकूमत के आदेशों की नाफरमानी शुरू कर दिया। बंदूक और तोप के गोले का मुंह अंग्रेजों की ओर मोड़ दिया। प्रयागराज किले पर धावा बोलकर उस पर कब्जा कर वहां रखा खजाना भी लूट लिया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाही और अफसर इससे तिलमिला गए। बनारस से कर्नल नील के नेतृत्व में एक गोरी पलटन हिंदुस्तानी सिपाहियों का मुकाबला करने को भेजी गई। 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रहे भारतीय सैनिकों के साथ यहां के पंडे और समदाबाद और छीतपुर, जहां बाद में अंग्रेजों ने अल्फ्रेड पार्क की नींव रखी। वहां आज अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद पार्क स्थित है। पहले वह मेवातियों का गांव हुआ करता था। इन मेवातियों ने अंग्रेजों से जमकर लोहा लिया और इनका दमन करने के लिए अंग्रेजी फौज ने इस गांव के औरत, बूढ़े, नौजवान और बच्चों पर बेतहाशा जुल्म किए। अंग्रेजी गजिटियर में यह बात दर्ज है कि कर्नल नील ने तीन घंटे 40 मिनट में 640 मासूम मेवातियों को फांसी पर लटका दिया। उनके खौफ और आतंक का साया इतना प्रबल और भयावह हो चला कि अंग्रेज सैनिकों को देखकर यह मेवाती अपने गले में फंदा डालकर अंग्रेजों के जुल्म और सितम से बचने के लिए स्वत: फंदे पर झूल जाते थे। उस वक्त 6746 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। उनके लाशों को ठिकाने लगाने के लिए तीन माह तक आठ बैलगाडिय़ां सूर्योदय से सूर्यास्त तक कार्य करती रहीं। कर्नल नील की वह क्रूरता इतिहास में दर्ज है और साथ ही आजादी के दीवानों का बलिदान भी।


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