सुमित्रानंद पंत की जन्मतिथि पर विशेष : पंत जी के ज्ञानपीठ से सुशोभित है म्यूजियम Prayagraj News
इलाहाबाद राष्ट्रीय संग्रहालय में उन्होंने अपनी पांडुलिपियां कुर्ता पेन चश्मा सहित ज्ञानपीठ पुरस्कार व वाचस्पति पुरस्कार खुद ही संचयन के लिए देकर एक नई वीथिका बनवाई थी।
प्रयागराज,जेएनएन। छायावादी युग के चार काव्य स्तंभों में एक सुमित्रा नंदन पंत को प्रकृति का सुकुमार कवि यूं ही नहीं कहा जाता था। प्रचलित है कि वह अपनी काव्य रचनाओं में प्रकृति के विविध रंगों को भरते थे। 20 मई को उनकी जन्मतिथि को कविताओं के संसार में शिद्धत से याद किए जाने का दिन है।
प्रयागराज की पावन धरती पर गुजारा था अधिकांश समय
मूलरूप से अल्मोड़ा (उत्तराखंड) निवासी पंत जी ने अपने जीवन का अधिकांश समय प्रयाग की पावन धरा पर गुजारा था। इलाहाबाद राष्ट्रीय संग्रहालय में उन्होंने अपनी पांडुलिपियां, कुर्ता, पेन, चश्मा सहित ज्ञानपीठ पुरस्कार व वाचस्पति पुरस्कार खुद ही संचयन के लिए देकर एक नई वीथिका बनवाई थी। इसके अलावा उनके कुछ दुर्लभ पत्र भी रखे हैं। वीथिका प्रभारी डॉ. राजेश मिश्र कहते हैं कि इस वीथिका में रखी सभी सामग्री पंत जी ने खुद ही दी थी। बाद में वे वीथिका को देखने भी आए थे। यह वीथिका इलाहाबाद संग्रहालय को देश के अन्य संग्रहालयों से अलग पहचान दिलाती है।
हाथी पार्क का नाम है सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान
सुमित्रा नंदन पंत के प्रयागराज से लगाव के चलते ही हाथी पार्क का नामकरण भी सुमित्रानंदन पंत बाल उद्यान के रूप में किया गया है। कवि यश मालवीय कहते हैं कि उन्होंने अपनी कविताओं में प्रकृति का मानवीकरण किया था।
पंत जी ने ही किया था बिग बी का नामकरण
हरिवंश राय बच्चन और सुमित्रानंदन पंत की गहरी मित्रता का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि जिला कचहरी चौराहा के समीप एक घर में पंत जी करीब चार दशक तक रहे। वहीं उनकी प्रतिमा भी लगी हुई है। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का नामकरण भी पंत जी ने ही किया था।
प्रतिमा स्थल पर न जा पाने का है मलाल
कचहरी के समीप सुमित्रानंदन पंत की प्रतिमा लगी है। हर साल 20 मई को उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते थे लेकिन इस बार लॉकडाउन में वहां नहीं जा पाएंगे। पंडित देवीदत्त शुक्ला पंडित रमादत्त शुक्ला शोध संस्थान के सचिव व्रतशील शर्मा ने बताया कि वह 2010 से पंत की प्रतिमा पर श्रद्धा-सुमन अर्पित करने जाते रहे। उन्होंने बताया कि 20 मई को सरस्वती पत्रिका के भूतपूर्व संपादक पं. देवीदत्त शुक्ल की पुण्य-तिथि भी है। इन दोनों महान विभूतियों के व्यक्तित्व कृतित्व को याद करते हुए गर्व महसूस होता है।