इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गोली मारकर हत्या के दो आरोपितों की बरकरार रखी आजीवन कारावास की सजा
अभियोजन के संदेह से परे साक्ष्य व चश्मदीद गवाहों के बयान मेडिकल जांच रिपोर्ट अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त है। विवेचक की गलती से इसे झुठलाया नहीं जा सकता। घटना 10 नवंबर 2007 सुबह साढ़े दस बजे की है। एक घंटे में एफआइआर दर्ज करा दी गई।
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नवंबर 2007 में दिनदहाड़े मथुरा के हाईवे थाना क्षेत्र में कमल सिंह की गोली मारकर हत्या करने के आरोपितों को दोषी करार दिया है और सत्र न्यायालय मथुरा द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को सही करार देते हुए पुष्टि कर दी है। हाईकोर्ट ने अपने 58 पृष्ठ के फैसले में कहा कि अभियोजन बिना संदेह के अपराध साबित करने में कामयाब रहा है। घटना के समय दो चश्मदीद गवाहों की मौजूदगी और उनके विश्वसनीय बयान आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त हैं। अपीलार्थियों की तरफ से इन गवाहों से सवाल भी नहीं पूछे गए। हत्या के आरोप साबित करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य है। दो आरोपितों को सत्र न्यायालय द्वारा बरी करने के आधार पर इन्हें भी बरी करने की मांग भारत में स्वीकार्य नहीं है। दोनों के रोल में भिन्नता है। इसलिए इसका लाभ नहीं दिया जा सकता।
अभियोजन की कहानी गलत नहीं मानी जा सकती
कोर्ट ने कहा कि विवेचना में कुछ छूट जाने मात्र से अभियोजन की कहानी गलत नहीं मानी जा सकती, यदि घटना के अन्य साक्ष्य मौजूद हों। कोर्ट ने सजा के खिलाफ अपील खारिज कर दी है। यह फैसला न्यायमूॢर्ति बच्चूलाल तथा न्यायमूर्ति एसके पचौरी की खंडपीठ ने जगदीश व मनोज कुमार की आपराधिक अपीलों पर दिया है। मालूम हो कि मंगल सिंह का बेटा कमल खेत सींच कर वापस आ रहा था कि आरोपितों ने उसे घेर लिया और गोली मारकर हत्या कर दी। प्रेम के ट््यूबवेल पर मौजूद पिता मंगल व लखन गोली की आवाज सुनकर दौड़े तो आरोपित भाग गए थे। अपीलार्थियों के अधिवक्ता का कहना था कि मौके से खाली कारतूस बरामद नहीं किया गया। जो असलहा बरामद किया, उसका प्रयोग हत्या में नहीं हुआ था।
विवेचक की गलती से अपराध को झुठलाया नहीं जा सकता
कोर्ट ने कहा अभियोजन के संदेह से परे साक्ष्य व चश्मदीद गवाहों के बयान, मेडिकल जांच रिपोर्ट अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त है। विवेचक की गलती से इसे झुठलाया नहीं जा सकता। घटना 10 नवंबर 2007 सुबह साढ़े दस बजे की है। एक घंटे में एफआइआर दर्ज करा दी गई। सत्र न्यायालय ने अपीलार्थियों को हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास व बीस हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी। हाईकोर्ट ने सजा को सही ठहराया है।