Allahabad High Court : अभियुक्त से सहानुभूति न्यायतंत्र को बना सकती है कमजोर
Allahabad High Court याची का कहना था ऐसे ही आरोप में सह अभियुक्त को जमानत दी गई है इसलिए उसे भी जमानत पर रिहा किया जाय। कोर्ट ने कहा एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 की शर्तों की कसौटी पर खरा उतरने पर ही जमानत दी जा सकती है।
प्रयागराज,जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक न्याय व्यवस्था का काम अभियुक्त और अभियोजन के अधिकारों में संतुलन बनाए रखना है। नि:संदेह अभियुक्त के अधिकार महत्वपूर्ण है किंतु यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि अपराधी जेल में हों, ताकि समाज में सही संदेश जाय। कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त के प्रति सहानुभूति आपराधिक न्याय तंत्र को कमजोर बना सकती है, ऐसा होने से कानून के शासन के प्रति जनविश्वास में कमी आ सकती है। यह टिप्पणी करते हुए न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने प्रयागराज के झूंसी थाने में गांजा तस्करी के आरोपित धीरज कुमार शुक्ल की जमानत अर्जी खारिज कर दी है।
अदालत ने कहा मादक पदार्थों की तस्करी करने वाले सामान्य मानव नहीं रह जाते। इसलिए न्यायिक विवेक का इस्तेमाल न्यायिक तरीके से किया जाना चाहिए। कोर्ट का कहना था कि सह अभियुक्त को जमानत मिलने की पैरिटी (समानता) उस दशा में दूसरे अभियुक्त को नहीं दी जा सकती जब गलतबयानी कर जमानत हासिल की गई हो। कोर्ट ने दो वाहनों से 157.570 किग्रा गांजा के साथ पकड़े गए याची को जमानत पर रिहा करने से इन्कार कर दिया है। पुलिस की स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने स्विफ्ट डिजायर तथा हांडा सिटी कार से अवैध रूप से भारी मात्रा में गांजा तस्करी के आरोप में चार लोगों को पकड़ा था और एफआइआर दर्ज कराई थी।
याची का कहना था ऐसे ही आरोप में सह अभियुक्त को जमानत दी गई है इसलिए उसे भी जमानत पर रिहा किया जाय। कोर्ट ने कहा एनडीपीएस एक्ट की धारा 37 की शर्तों की कसौटी पर खरा उतरने पर ही जमानत दी जा सकती है। मादक पदार्थ की कब्जे से बरामदगी पर उपधारणा यही होगी कि तस्करी का माल है। कब्जे से बरामदगी नहीं हुई, यह साबित करने का भार आरोपित पर होता है।
पुलिस द्वारा दुर्भावना से फंसाने के आरोप को भी आरोपी को साबित करना होगा। प्रश्नगत मामले में ग्रुप में संगठित अपराध किया गया है, अपराध का गवाह इसलिए मिलना कठिन होता है, क्योंकि अपराधियों के साथ राजनैतिक, वित्तीय संरक्षण व मसल पावर रहती है। गवाह डर के कारण सामने नहीं आते। कोर्ट ने कहा कि जमानत मिलने के बाद यह नहीं कह सकते कि वह अपराध की पुनरावृत्ति नहीं करेगा। ऐसे में जमानत मंजूर नहीं की जा सकती।