हाई कोर्ट ने मांगी नमामि गंगे प्रोजेक्ट के कार्य प्रगति की रिपोर्ट, पूछा- नाले का गंदा पानी सीधे कैसे जा रहा
लंबे अरसे के बाद गंगा प्रदूषण को लेकर बैठी इलाहाबाद हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने केंद्र सरकार से नमामि गंगे प्रोजेक्ट की कार्य प्रगति की जानकारी मांगी है।
प्रयागराज, जेएनएन। लंबे अरसे के बाद गंगा प्रदूषण को लेकर बैठी इलाहाबाद हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने केंद्र सरकार से नमामि गंगे प्रोजेक्ट की कार्य प्रगति की जानकारी मांगी है। कोर्ट ने पूछा कि जितने भी एसटीपी स्थापित किए गए हैं, वे ठीक से कार्य कर रहे हैं या नहीं? उनकी क्या स्थिति है? गंगा में नाले का गंदा पानी सीधे कैसे जा रहा है? उन्हें रोकने का इंतजाम क्यों नहीं किया गया है? साथ ही गंगा में न्यूनतम जल प्रवाह रखने की क्या योजना है? याचिका की अगली सुनवाई तीन जनवरी को होगी।
गंगा प्रदूषण मामले को लेकर दाखिल जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा तथा न्यायमूर्ति अशोक कुमार की पूर्णपीठ कर रही है। केंद्र सरकार के अधिवक्ता राजेश त्रिपाठी ने कहा कि इसी मुद्दे पर नमामि गंगे प्रोजेक्ट भी कार्यवाही हो रही है। इसे भी वही भेज दिया जाए, जिसे कोर्ट ने नहीं माना। त्रिपाठी ने कोर्ट की ओर से पूछे गए सवालों का जवाब देने के लिए कोर्ट से समय मांगा।
प्रयागराज में 83 नालों में से 43 नाले सीधे गंगा में गिर रहे
न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता अरुण कुमार गुप्ता ने कोर्ट को बताया कि गंगा को प्रदूषण मुक्त रखने के लिए न्यूनतम 50 फीसद पानी बनाए रखने की जरूरत है। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने इस संबंध में केंद्र सरकार से कार्य योजना की जानकारी मांगी थी, किंतु केंद्र सरकार ने अभी तक कोई जानकारी नहीं दी है। राज्य सरकार से भी गंगा में गिर रहे नालों और एसटीपी के संचालन के संबंध में जवाबी हलफनामा मांगे गए थे। उसका भी जवाब दाखिल नहीं किया गया है। गंगा में एसटीपी से शुद्ध हुए पानी में बायोकेमिकल पॉलीफॉर्म गंगा जल में मिलकर प्रदूषण फैला रहा है। ट्रीटमेंट के बाद पानी को गंगा में न गिराकर अन्यत्र ले जाया जाए। प्रयागराज में छह एसटीपी स्थापित हैं, जो ठीक से काम नहीं कर रहे। 83 नालों में से 43 नाले सीधे गंगा में गिर रहे हैं।
कानपुर में चर्म उद्योगों का गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा
कानपुर में चर्म उद्योगों के स्थानांतरित करने के मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं की गई है। चर्म उद्योगों का गंदा पानी सीधे गंगा में गिर रहा है। गुप्ता का कहना था कि ट्रीटमेंट के बाद भी पानी गंगा में प्रदूषण बढ़ाने का कारण है, जिस पर कोर्ट ने उनसे विशेषज्ञों की सूची मांगी, जो जांच करेंगे कि गंगा में जा रहा ट्रीटमेंट वाला पानी क्या प्रदूषित है और उसे अन्य उपयोग में लाया जा सकता है? इस पर गुप्ता ने बताया कि कोर्ट ने प्रदूषित शोधित पानी को गंगा के उस पार अन्य कार्यों में लिए जाने का योजना तैयार करने को कहा था, किंतु कोई कार्यवाही नहीं हुई है। प्रयागराज में ही ओमेक्स सिटी की तरफ से कहा गया कि सिटी लगभग बनकर तैयार है, लेकिन बिना किसी वैज्ञानिक आधार के 28 मार्च 2011 व 22 अप्रैल 2011 को गंगा के उच्चतम बाढ़ बिंदु से 500 मीटर के भीतर किसी प्रकार के निर्माण पर रोक लगा दी गई है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर अगली तारीख को विचार करने का कहा है।
यमुना के पानी को शोधित किए बिना नहीं साफ होंगी गंगा
याचिका पर अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव ने यमुना में प्रदूषण का मुद्दा उठाया हथिनी कुंड बैराज से पानी यमुना में नहीं आ रहा है। इसके बाद यमुना में पानी नहीं रहता। दिल्ली के शाहदरा नाले व चंबल, बेतवा नदियों का ही पानी यमुना में आ रहा है। यमुना को शोधित किए बगैर गंगा को साफ रखने की कल्पना बेमानी है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर भी अगली तारीख पर विचार करने को कहा है। राज्य सरकार के अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता शशांक शेखर सिंह ने कोर्ट को बताया गंगा में एटीपी से जो शोधित पानी डाला जा रहा है, वह पूरी तरह से शुद्ध है और वह प्रदूषण नही फैला रहा है। बोले, सरकार की कोशिश है कि सभी नालों को एसटीपी में शोध करने के बाद ही गंगा में डाला जाए। कोर्ट ने प्रयागराज के आस-पास शव-दाह स्थलों की संख्या की जानकारी मांगी है और पूछा है कि ऐसे शव-दाह स्थलों की निगरानी और देखरेख किसके द्वारा की जा रही है।