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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, विधवा को अज्ञात व्यक्ति से शारीरिक संबंध के दुष्प्रभाव की है समझ

याची का कहना था कि पीडि़ता के पति की 19 दिसंबर 2016 को मौत हो गई। इसके बाद याची से महिला की नजदीकी बढ़ी और प्रेम संबंध बन गये। दो साल तक उनके बीच गहरा संबंध बना रहा। पीडि़ता ने उस दौरान कोई ऐतराज नहीं किया।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sun, 31 Oct 2021 10:39 PM (IST)Updated: Sun, 31 Oct 2021 10:39 PM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, विधवा को अज्ञात व्यक्ति से शारीरिक संबंध के दुष्प्रभाव की है समझ
कानपुर नगर निवासी दुष्कर्म के आरोपित की हाई कोर्ट ने जमानत की मंजूर

प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने विधवा से दुष्कर्म के आरोपित की जमानत मंजूर कर ली है। कोर्ट ने कहा कि नि:संदेह पीडि़ता 35 साल की विधवा है। वह विवाह से पहले अज्ञात व्यक्ति से संबंध स्थापित करने के दुष्प्रभाव को भलीभांति जानती है। आरोपित के खिलाफ दुष्कर्म के आरोप को साबित करने के लिए मेडिकल जांच जरूरी है। इसके बावजूद उसने मेडिकल जांच कराने से इन्कार कर दिया।

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पति के निधन के बाद गैर मर्द से हो गई थी नजदीकी

इस मामले के तथ्यों के मुताबिक, आरोपित शख्स ने शादी का वायदा कर विधवा महिला का भरोसा जीता। दो साल तक प्रेमजाल में फंसाकर लगातार शारीरिक संबंध बनाए, फिर शादी के वायदे से मुकर गया। आरोप है कि अब वह धमका रहा है। पीड़िता ने मुकदमा तो लिखाया लेकिन मेडिकल जांच से इन्कार कर दिया है। ऐसे में याची जमानत पाने का हकदार है। यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने कानपुर नगर के दुर्गेश त्रिपाठी की अर्जी को मंजूर करते हुए दिया है। याची का कहना था कि पीडि़ता के पति की 19 दिसंबर 2016 को मौत हो गई। इसके बाद याची से महिला की नजदीकी बढ़ी और प्रेम संबंध बन गये। दो साल तक उनके बीच गहरा संबंध बना रहा। पीडि़ता ने उस दौरान कोई ऐतराज नहीं किया। इसके बाद महिला ने दुर्गेश के खिलाफ चार दिसंबर 2020 को दुष्कर्म का आरोप लगाकर एफआइआर दर्ज करा दी। इसके साथ ही मेडिकल जांच से इन्कार कर रही है।

आवेदन पेश न करने वालों को नहीं मिली राहत

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा चयन आयोग द्वारा निकाली गई एडेड डिग्री कालेजों में असिस्टेंट प्रोफेसर पद की भर्ती परीक्षा के लिए कुछ अभ्यर्थियों को राहत दिया है। कोर्ट ने दस्तावेज सही पाए जाने पर 22 याचियों को परीक्षा में बैठने की अनुमति दी है। कहा कि जिन याचियों के आवेदन कोर्ट में पेश नहीं हुए हैं उन्हें अंतरिम संरक्षण देकर परीक्षा में बैठाना उचित नहीं होगा। आयोग ने जिन्हें अनुमति दी है वही भर्ती परीक्षा में बैठेंगे। यह आदेश न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र ने प्रदीप कुमार मौर्य व अन्य अभ्यर्थियों की याचिका को निस्तारित करते हुए दिया है।याचिका पर अधिवक्ता संजय सिंह व शिवम सिंह ने बहस की। इनका कहना था कि आयोग ने विज्ञापन संख्या-50 के तहत असिस्टेंट प्रोफेसर की 2003 पदों की भर्ती निकाली है। इसकी प्रथम चरण की परीक्षा 30 अक्टूबर को कराई गई। इसके अभ्यर्थियों का प्रवेश पत्र 26 अक्टूबर को पत्र जारी किया। वेबसाइट में तकनीकी दिक्कत होने से काफी अभ्यर्थियों को प्रवेश पत्र नहीं मिल सका। इस पर 31 अभ्यर्थियों ने हाई कोर्ट की शरण ली। आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक मेहता ने स्वीकार किया कि 22 याचियों को परीक्षा में बैठने देने की अनुमति दे दी गई है। शेष याचियों के आवेदन तैयार किये गए हैं, जबकि याची अधिवक्ता ने कहा कि आवेदन तैयार नहीं किया गया है। इससे समय की कमी के चलते दस्तावेज सत्यापन नहीं किया जा सका। कोर्ट ने कहा कि जिनके आवेदन कोर्ट में नहीं है उन्हें राहत नहीं दी जा सकती।


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