इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- संस्कृत भाषा के साथ सौतेली मां जैसा व्यवहार क्यों, सरकार से मांगा जवाब
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार को सूची में शामिल कर संस्कृत अध्यापक का पद सृजित कर नियुक्ति करना चाहिए। कोर्ट ने सरकार को अपना जवाब 21 फरवरी तक दाखिल करने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति आर आर अग्रवाल ने बद्रीनाथ तिवारी की याचिका पर दिया है।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकार भारतीय सभ्यता की सबसे पुरानी भाषा संस्कृत के साथ सौतेली मां जैसा व्यवहार नहीं कर सकती। कहा कि कल्याणकारी राज्य जिस पर भाषा के संरक्षण का दायित्व है, अधिकारियों की मनमर्जी से संविदा पर संस्कृत अध्यापक रखने, हटाने की छूट नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने राज्य सरकार से तीन सप्ताह में जवाब मांगा है और याची को संविदा पर संस्कृत अध्यापक के रूप में कार्य करने देने का निर्देश दिया है।
कोर्ट ने सरकार से 21 फरवरी तक जवाब दाखिल करने का दिया निर्देश
कोर्ट ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि नियमावली 2013 में संस्कृत अध्यापक का पद ही नहीं है। हिंदी अध्यापक संस्कृत पढ़ा रहे हैं। पद नहीं फिर भी नियमित नियुक्ति होने तक संस्कृत अध्यापक संविदा पर नियुक्त कर रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि सरकार को सूची में शामिल कर संस्कृत अध्यापक का पद सृजित कर नियुक्ति करना चाहिए। कोर्ट ने सरकार को अपना जवाब 21 फरवरी तक दाखिल करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति आर आर अग्रवाल ने बद्रीनाथ तिवारी की याचिका पर दिया है।
याचिका में चुनौती दी गई है
याची सिद्धार्थनगर, बांसी डायट में संस्कृत विषय का अतिथि प्रवक्ता के रूप में कार्यरत रहा है। उप निदेशक डायट ने सरकार को नियमित नियुक्ति का प्रस्ताव भेजा। अनुमति न मिलने पर याची को हटा दिया गया, जिसे याचिका में चुनौती दी गई है। याची का यह भी कहना है कि डायरेक्टर डायट उप्र ने 12 जिलों के डायट में संस्कृत अध्यापक की नियुक्ति के लिए सरकार को लिखा है। कुल 1280 स्वीकृत पदों में से विभिन्न विषयों के 1230 अध्यापक कार्यरत हैं।
कोर्ट ने कहा- संस्कृत विशिष्ट भाषा है
कोर्ट ने बिंदुवार कई सवाल उठाते हुए सरकार से जानकारी मांगी तो बताया गया कि नियमावली में डायट में संस्कृत अध्यापक पद ही नहीं है। हिंदी अध्यापक ही संस्कृत भाषा भी पढ़ाते हैं। कोर्ट ने कहा कि संस्कृत विशिष्ट भाषा है। संस्कृत पढ़ाई जा रही है तो संस्कृत अध्यापक पद भी सृजित होना चाहिए। सरकार संस्कृत के साथ सौतेला व्यवहार नहीं कर सकती। सरकार संविदा पर संस्कृत अध्यापक रख रही है और इसका कारण स्पष्ट नहीं कर रही कि नियमित पद क्यों नहीं है।