इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, पुलिस जांच के सुबूतों की नहीं कर सकते उपेक्षा
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी लोक सेवक का साक्ष्य इसलिए उपेक्षित नहीं किया जा सकता कि वह पुलिस अधिकारी है। कहा कि अभियुक्त के कब्जे से मादक पदार्थ की बरामदगी न होने मात्र से यह नहीं कह सकते कि वह अपराध में लिप्त नहीं है।
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि किसी अभियुक्त को जमानत देते समय शर्तों का पालन किया जाना चाहिए। पहली आरोपित के अपराध में लिप्त नहीं होने के उचित आधार से कोर्ट संतुष्ट हो और दूसरा जमानत पर छूटने के बाद वह अपराध नहीं करेगा। हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी लोक सेवक का साक्ष्य इसलिए उपेक्षित नहीं किया जा सकता कि वह पुलिस अधिकारी है। कहा कि अभियुक्त के कब्जे से मादक पदार्थ की बरामदगी न होने मात्र से यह नहीं कह सकते कि वह अपराध में लिप्त नहीं है। लंबे समय से जेल में रहना भी जमानत पर रिहाई का एक मात्र आधार नहीं हो सकता। इसके साथ कोर्ट ने 1025 किलो गांजा तस्करी के आरोपित शंकर वारिक उर्फ विक्रम की जमानत अर्जी खारिज कर दी है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार ने बाजार में खतरनाक ड्रग्स के फैलाव को रोकने के लिए एनडीपीएस कानून बनाया है। इसकी धारा-37 की शर्तें पूरी न होने पर आरोपित जमानत पाने का हकदार नहीं होगा। कोर्ट ने जमानत देने से इन्कार करते हुए कोर्ट को छह माह में ट्रायल पूरा करने का निर्देश दिया है। यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने दिया है।
मामले के अनुसार 27 मई 2020 को मुखबिर से सूचना मिली कि टीकमगढ़ से झांसी के मऊरानीपुर की तरफ गांजा दो ट्रकों में लाया जा रहा है। सुबह से टीम खादियान क्रासिंग पर पहुंच गई। शाम साढ़े छह बजे याची व अन्य अभियुक्तों को ट्रक से गांजा के साथ गिरफ्तार किया गया। ट्रकों को जब्त कर लिया गया। याची का कहना था कि वह निर्दोष है। उसके कब्जे से गांजा बरामद नहीं हुआ है। कोरोना के कारण साधन नहीं मिला तो ट्रक से यात्रा कर रहा था। गांजा की उसे जानकारी नहीं थी। कोई स्वतंत्र गवाह भी नहीं है। कानून का पालन नहीं किया गया है। कोर्ट ने कहा तथ्य के मुद्दे ट्रायल के समय साक्ष्य पर तय होंगे। याची पर आरोप गंभीर है। जमानत पर रिहा होने का हकदार नहीं है।