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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- अवैध संबंध का आरोप साबित करने में DNA उपयोगी साक्ष्य, पत्नी की याचिका खारिज

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि डीएनए टेस्ट साइंटिफिक वैध और परफेक्ट तरीका है। इससे अवैध संबंध के आरोप की पुष्टि की जा सकती है कि वो सही है अथवा गलत। जहां अवधारणा के आधार पर निष्कर्ष निकालने की स्थिति है वहां वैज्ञानिक साक्ष्य को अधिक विश्वसनीय माना जाना चाहिए।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Thu, 19 Nov 2020 11:55 AM (IST)Updated: Thu, 19 Nov 2020 11:56 AM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- अवैध संबंध का आरोप साबित करने में DNA उपयोगी साक्ष्य, पत्नी की याचिका खारिज
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि डीएनए टेस्ट साइंटिफिक वैध और परफेक्ट तरीका है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि डीएनए टेस्ट साइंटिफिक वैध और परफेक्ट तरीका है। इससे जारता (अवैध संबंध) के आरोप की पुष्टि की जा सकती है कि वो सही है अथवा गलत। कोर्ट ने कहा कि जहां अवधारणा के आधार पर निष्कर्ष निकालने की स्थिति है वहां वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित साक्ष्य को अधिक विश्वसनीय माना जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने फैसलों में डीएनए टेस्टिंग को सबसे विश्वसनीय और प्रमाणिक साक्ष्य की मान्यता दी है।

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हाई कोर्ट ने पत्नी नीलम की याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। याचिका में पति से अलग होने के तीन साल बाद पैदा हुए बेटे के पितृत्व को लेकर डीएनए टेस्ट की मांग स्वीकार करने के अपर प्रमुख परिवार न्यायाधीश हमीरपुर के आदेश को चुनौती दी गई थी। यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल ने दिया है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने डीएनए टेस्ट को सबसे वैधानिक और वैज्ञानिक रूप से पुष्ट जरिया माना है। इसका इस्तेमाल पत्नी पर व्यभिचार का आरोप लगाने वाला पति कर सकता है। वैज्ञानिक साक्ष्य पुख्ता होते हैं, इसलिए अदालतों को निष्कर्ष निकालने के लिए अनुमान पर आश्रित होने की जरूरत नहीं है।

हाई कोर्ट ने कहा कि इसे सबसे विश्वसनीय और सही माध्यम माना जा सकता है। यह पत्नी के लिए भी पति के आरोपों को झूठा सबित करने के लिए उपयोगी है। इस टेस्ट के जरिए वह बेदाग होकर अपनी विश्वसनीयता व भरोसे को कायम रख सकती है। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले में कोई अवैधानिकता न पाते हुए याचिका खारिज कर दी है।

यह है मामला : याची नीलम की हमीरपुर निवासी रामआसरे से 2004 में शादी हुई थी। दोनों से तीन बेटियां हैं। पति का कहना है कि वह 15 जनवरी 2013 से पत्नी से अलग हो गया है। इसके बाद वह दोनों कभी भी एक साथ नहीं हुए। वह 2014 में अपनी ओर से तलाक देकर पत्नी को गुजारा भत्ता भी दे रहा है। इसके बाद 26 जनवरी 2016 को पत्नी ने अपने मायके में एक बेटे को जन्म दिया। इसके बाद पति ने व्यभिचार को आधार बनाते हुए विधि के अनुसार तलाक का मुकदमा दाखिल किया है और बच्चे से अपना डीएनए टेस्ट कराने की अर्जी दाखिल की है।


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