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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं, याचिका खारिज कर हस्तक्षेप से इनकार

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं है। अलग-अलग धर्मों से ताल्लुक रखने वाले युगल की याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने याचियों को संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होकर अपना बयान दर्ज कराने की छूट दी है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 30 Oct 2020 06:31 PM (IST)Updated: Sat, 31 Oct 2020 11:40 AM (IST)
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा- सिर्फ शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं, याचिका खारिज कर हस्तक्षेप से इनकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन वैध नहीं है। अलग-अलग धर्मों से ताल्लुक रखने वाले युगल की याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने याचियों को संबंधित मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होकर अपना बयान दर्ज कराने की छूट दी है। याची ने परिवार वालों को उनके शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन में हस्तक्षेप करने पर रोक लगाने की मांग की थी। कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है। 

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यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी ने मुजफ्फरनगर जिले की प्रियांशी उर्फ समरीन व अन्य की याचिका पर दिया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि एक याची मुस्लिम तो दूसरा हिंदू है। लड़की ने 29 जून 2020 को हिंदू धर्म स्वीकार किया और एक महीने बाद 31 जुलाई को विवाह कर लिया। कोर्ट ने कहा कि रिकार्ड से स्पष्ट है कि शादी करने के लिए धर्म परिवर्तन किया गया है।

नूर जहां बेगम केस के फैसले का दिया हवाला : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने नूर जहां बेगम केस के फैसले का हवाला दिया, जिसमें कोर्ट ने कहा है कि शादी के लिए धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। इस केस में हिंदू लड़कियों ने धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से शादी की थी। सवाल था कि क्या हिंदू लड़की धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से शादी कर सकती है और यह शादी वैध होगी।

बिना आस्था विश्वास के कैसा धर्म बदलना : कुरान की हदीसों का हवाला देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि इस्लाम के बारे में बिना जाने और बिना आस्था विश्वास के धर्म बदलना स्वीकार्य नहीं है। ये इस्लाम के भी खिलाफ है। इसी फैसले के हवाले से कोर्ट ने मुस्लिम से हिंदू बन शादी करने वाली याची को राहत देने से इनकार कर दिया है।


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