Move to Jagran APP

उच्चीकृत हाईस्कूल विद्यालय में बीएसए को नियुक्ति का अधिकार नहीं : हाईकोर्ट UP News

Allahabad High Court हाईस्कूल की वित्तीय व प्रशासनिक मान्यता मिलने के बाद विद्यालय पर यूपी इंटरमीडिएट एक्ट 1921 व सेकेंडरी एजूकेशन सर्विस बोर्ड एक्ट 1982 के कानून लागू होते हैं।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Sat, 18 Apr 2020 12:07 PM (IST)Updated: Sat, 18 Apr 2020 02:42 PM (IST)
उच्चीकृत हाईस्कूल विद्यालय में बीएसए को नियुक्ति का अधिकार नहीं : हाईकोर्ट UP News
उच्चीकृत हाईस्कूल विद्यालय में बीएसए को नियुक्ति का अधिकार नहीं : हाईकोर्ट UP News

प्रयागराज,जेएनएन। कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण लॉकडाउन के बाद भी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपनी कार्यवाही शुरू कर दी है। कोर्ट ने वरयीता के हिसाब से 15 अप्रैल से मामलों की सुनवाई शुरू कर दी है।

loksabha election banner

कोर्ट ने शुक्रवार को अपने अहम निर्णय में कहा कि जूनियर हाईस्कूल की मान्यता के बाद जब वही विद्यालय उच्चीकृत होकर हाईस्कूल की मान्यता प्राप्त कर लेता है तो उसके संचालन का नियम बदल जाता है। अत: वह विद्यालय जूनियर हाईस्कूल नहीं रह जाता। हाईस्कूल की वित्तीय व प्रशासनिक मान्यता मिलने के बाद उस विद्यालय पर यूपी इंटरमीडिएट एक्ट 1921 व यूपी सेकेंडरी एजूकेशन सर्विस बोर्ड एक्ट 1982 के कानून लागू हो जाते हैं। इसके बाद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी का उस विद्यालय से प्रशासनिक व नियुक्ति संबंधी अधिकार खत्म हो जाता है। 

यह निर्णय न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल व न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की खंडपीठ ने बलिया किे कमलेश की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। को-वारंटो (अधिकार पृच्छा) की प्रार्थना के साथ याचिका दाखिल करके जंगली बाबा उच्चतर माध्यमिक विद्या मंदिर कठौरा बलिया में प्रबंध समिति द्वारा नियुक्त दो सहायक अध्यापकों प्रेमशंकर राय व सुनील कुमार तिवारी तथा एक क्लर्क राजेश कुमार प्रजापति की नियुक्तियों को चुनौती दी गयी थी। उसे गलत बताते हुए उन्हें काम करने से रोकने की मांग की गयी थी। इसमें कहा गया कि इनकी नियुक्ति अवैध प्रबंध समिति ने की है। नियुक्ति का अनुमोदन 14 मई 2015 को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने किया है, उस समय यह विद्यालय जूनियर हाईस्कूल से अपग्रेड होकर हाईस्कूल हो गया था। हाईस्कूल होने के बाद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को ऐसे उच्चीकृत विद्यालय से प्रशासनिक व नियुक्ति संबंधी अधिकार समाप्त हो जाता हैं।

याचिका का विरोध यह कहते हुए कहा गया कि याची को याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है। भले ही कोई विद्यालय उच्चीकृत होकर हाईस्कूल स्तर पर मान्यता प्राप्त कर ले। लेकिन, जूनियर विद्यालय अपना अस्तित्व नहीं खोता और जूनियरस्तर पर नियुक्ति संबंधी बेसिक शिक्षा अधिकारी को अधिकार रहता है। हाईकोर्ट ने विपक्षी की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि विद्यालय को जूनियर हाईस्कूल से उच्चीकृत होकर हाईस्कूल स्तर पर मान्यता प्राप्त होते ही उसका जूनियर हाईस्कूल रहने का अस्तित्व समाप्त हो जाता है। वह विद्यालय पूर्ण रूप से माध्यमिक शिक्षा संस्थान हो जाता है। उसमें 1921 व 1982 एक्ट के प्रावधान लागू हो जाते हैं। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को अब ऐसे विद्यालय से प्रशासनिक व नियुक्ति संबंधी अधिकार समाप्त हो जाता है। कोर्ट ने दोनों अध्यापकों व क्लर्क की नियुक्ति को अवैध घोषित कर रद दिया है।

जिला अदालतों के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों की प्रोन्नति वैध

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश की जिला अदालतों में कार्यरत तृतीय श्रेणी पद पर प्रोन्नत कर्मियों को पदावनत करने के आदेश को अवैध करार देते हुए उसे रद कर दिया है। कोर्ट ने चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की तृतीय श्रेणी के पद पर पदोन्नति प्रक्रिया को वैध करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि चतुर्थ श्रेणी से तृतीय श्रेणी में प्रोन्नत हुए सभी कर्मचारियों को सेवा जनित सभी परिलाभों सहित बहाल किया जाय।

यह आदेश न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल व न्यायमूर्ति राजीव मिश्रा की खंडपीठ ने रामतीर्थ व अन्य याचिकाओं को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका में शेड्यूल बी की वैधता को चुनौती दी गई थी। लेकिन, कोर्ट ने इस संबंध में कोई आदेश न देते हुए समय-समय पर जारी शासनादेशों व नियमों के आधार पर चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को तृतीय श्रेणी पद पर सीधी भर्ती की 20 प्रतिशत सीटों पर प्रोन्नति देने के नियम को सही करार दिया है। याची कन्नौज, बागपत, संत रविदासनगर, भदोही ज्ञानपुर व अन्य जिलों के कर्मचारी हैं। जिन्हें प्रोन्नति के बाद पदावनत दे दी गई थी।

याचियों का कहना है कि उन्होंने पदोन्नति के बाद आठ अप्रैल 2016 को कार्यभार ग्रहण कर लिया। उन्हें कंप्यूटर प्रशिक्षण भी दिया गया, साथ ही वेतन भी प्राप्त किया। इसके बाद जिला न्यायाधीश उन्नाव ने 27 मई 2017 को बिना कोई जांच कराये पदोन्नति को नियम विरुद्ध मानते हुए निरस्त कर दिया। इसी तरह से अन्य जिलों में भी किया गया। याचियों का कहना था कि उनकी पदोन्नति नियमानुसार हुई है और नियमित कर्मचारी को संविधान के अनुच्छेद 311 के अंतर्गत बिना विभागीय जांच किए पदावनत नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने पदोन्नति देने के आदेश को वैध करार दिया है।  


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.