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बच्चे का भविष्य मां के हाथ में सुरक्षित, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले के बाद की टिप्पणी

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बच्चे का भविष्य मां के हाथों में ही सुरक्षित होता है। यह सबसे प्रबल परिकल्पना है। पीढ़ियों से माना जाता रहा है कि बच्चा पिता अथवा परिस्थिति अनुसार किसी अन्य अभिभावक की तुलना में अपनी मां के पास ही अत्यधिक सुरक्षित होता है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Mon, 22 Feb 2021 10:45 PM (IST)Updated: Mon, 22 Feb 2021 10:48 PM (IST)
बच्चे का भविष्य मां के हाथ में सुरक्षित, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले के बाद की टिप्पणी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया कि बच्चे का भविष्य मां के हाथों में ही सुरक्षित होता है।

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मामले में स्पष्ट किया कि बच्चे का भविष्य मां के हाथों में ही सुरक्षित होता है। यह सबसे प्रबल परिकल्पना है। पीढ़ियों से माना जाता रहा है कि बच्चा पिता अथवा परिस्थिति अनुसार किसी अन्य अभिभावक की तुलना में अपनी मां के पास ही अत्यधिक सुरक्षित होता है। इस तर्क को देखते हिंदू, अल्पसंख्यक और अभिभावक अधिनियम की 6-(ए) में पांच साल तक के बच्चे की अभिरक्षा का अधिकार मां के पास ही सुरक्षित होने का कानून बनाया है।

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यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने प्रीति राय की याचिका पर अधिवक्ता विभु राय व अनुभव गौड़ और विपक्षी वकीलों को सुनने के बाद यह दिया है। कहा गया कि याची प्रीति राय आइटी इंजीनियर हैं। उसने बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल कर अपने साढ़े तीन साल के बेटे अद्वैत की अभिरक्षा दिलाने की मांग की है। अद्वैत वर्तमान में अपने पिता प्रशांत शर्मा व दादा-दादी के पास रह रहा है।

विपक्षी के वकीलों ने याचिका का विरोध करते हुए करते हुए कहा कि बच्चे की अभिरक्षा के विवाद में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पोषणीय नहीं है, क्योंकि यहां माता-पिता दोनों में से किसी भी अभिरक्षा को अवैध नहीं कहा जा सकता है। याची के पास गार्जियन एंड वार्ड एक्ट धारा-25 के तहत सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय में अभिरक्षा का विवाद ले जाने का विकल्प मौजूद है।

न्यायालय ने कहा कि रिट कोर्ट के पास यह अधिकार सुरक्षित है। कोर्ट ने कहा कि कुछ अपवाद की स्थितियों को छोड़कर पांच वर्ष से कम आयु के बच्चे का भविष्य मां के हाथों ही सबसे ज्यादा सुरक्षित है। न्यायालय ने कहा कि वर्तमान परिदृश्य में यह अवधारणा बदल गई है कि पुरुष परिवार का कमाने वाला सदस्य होता है और महिला केवल गृहणी। वर्तमान में अभिभावक दोनों काम करते हैं और परिवार का खर्च मिलकर उठाते हैं।

न्यायालय ने पिता की ओर से दी गई इस दलील की उसकी पत्नी लापरवाह मां हैं, उसको अस्वीकार कर दिया। कोर्ट का कहना था कि वह एक कारपोरेट कंपनी में काम करती है। जहां काम की जरूरतें और तरीके दोनों अलग हैं। यह स्त्री और पुरुष दोनों पर लागू है। इस उसके एक अच्छी मां होने को कम करके नहीं आंका जा सकता है। कोर्ट ने पिता प्रशांत को बच्चे की अभिरक्षा उसकी मां प्रीति को सौंपने का आदेश दिया है। वहीं, सीजेएम गाजियाबाद को आदेश दिया है कि वह अपनी उपस्थिति में आदेश का पालन सुनिश्चित करवाएं।

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