High Court: क्या ब्याज कटौती की सरकार से ली मंजूरी, गन्ना आयुक्त से पूछा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने
याची का कहना है कि गन्ना आयुक्त द्वारा बार-बार गलत हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को गुमराह किया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि ब्याज दर में कमी करने का अधिकार गन्ना आयुक्त को नहीं है। यह कार्य बिना कैबिनेट की मंजूरी के नहीं हो सकता है।
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रदेश के गन्ना आयुक्त संजय आर. भूसरेड्डी से जानना चाहा है कि क्या किसानों के बकाया गन्ना मूल्य पर देय ब्याज में कटौती की मंजूरी राज्य सरकार से ली गयी है या नहीं? कोर्ट ने कहा कि अगर मंजूरी नहीं ली गई है तो उसे लेकर गन्ना किसानों को ब्याज का भुगतान किया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रकाश पाटिया ने राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के संयोजक बीएम सिंह की अवमानना याचिका पर दिया है।
नौ जनवरी 2014 को पारित आदेश की अवहेलना को लेकर यह अवमानना याचिका दायर की गई है। हाई कोर्ट ने प्रदेश सरकार को तीन सप्ताह में ब्याज का भुगतान करने देने का आदेश दिया था। दूसरी और गन्ना आयुक्त की ओर से हलफनामा दाखिल कर कहा गया कि किसानों को मिलने वाले ब्याज को लेकर 25 मार्च 2019 को फैसला ले लिया गया है। इसके हिसाब से मुनाफे वाली मिलें 12 प्रतिशत की दर से, जबकि घाटे वाली मिलें सात प्रतिशत की दर से ब्याज का भुगतान करेंगी। याची का कहना है कि गन्ना आयुक्त द्वारा बार-बार गलत हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को गुमराह किया जा रहा है। वास्तविकता यह है कि ब्याज दर में कमी करने का अधिकार गन्ना आयुक्त को नहीं है। यह कार्य बिना कैबिनेट की मंजूरी के नहीं हो सकता है।
क्या सरकार ने ब्याज दर कम करने की दी है मंजूरी
इस पर हाई कोर्ट ने जानकारी मांगी कि क्या सरकार ने ब्याज दर कम करने की मंजूरी दी है। कोर्ट ने कहा कि यदि कैबिनेट की मंजूरी नहीं ली गई है तो लेकर अगली सुनवाई से पहले भुगतान किया जाय। याची का कहना है कि 47 लाख गन्ना किसानों का हजारों करोड़ ब्याज का बकाया है। उनमें में से किसी को भी ब्याज नहीं मिला है। जिला गन्ना अधिकारी एवं समितियों के सचिव ने किसानों के बकाया ब्याज के ब्यौरे के जवाब की प्रति हलफनामे के साथ लगाई और बताया कि एक पैसा तो ब्याज का दिया नहीं गया है। न ही बकाया ब्याज का ब्यौरा दिया जा रहा है। मामले में अगली सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी।