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वैतरणी पार कराने के बाद खुद 'फंसी' मझधार

माघ मेला तक बेजुबान गाय व बछिया की खूब पूछ-परख रही। मेला के बाद वैतरणी पार कराने वाली गाय व बछिया खुद मझधार में फंस जाती हैं। घाटिया (चंदन-टीका लगाने वाले ब्राह्माण) पैसे के लालच में दान कराने के लिए लाते हैं और बाद में बेसहारा छोड़ देते हैं। इस बार भी भूख-प्यास से तड़पकर कइयों ने अपनी जान गंवा दी। अधिकारियों से लिखित शिकायत करके कार्रवाई की मांग की गई। लेकिन अफसर भी बेखबर है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Mar 2021 07:39 AM (IST)Updated: Thu, 18 Mar 2021 07:39 AM (IST)
वैतरणी पार कराने के बाद खुद 'फंसी' मझधार
वैतरणी पार कराने के बाद खुद 'फंसी' मझधार

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : माघ मेला तक बेजुबान गाय व बछिया की खूब पूछ-परख रही। मेला के बाद वैतरणी पार कराने वाली गाय व बछिया खुद मझधार में फंस जाती हैं। घाटिया (चंदन-टीका लगाने वाले ब्राह्माण) पैसे के लालच में दान कराने के लिए लाते हैं और बाद में बेसहारा छोड़ देते हैं। इस बार भी भूख-प्यास से तड़पकर कइयों ने अपनी जान गंवा दी। अधिकारियों से लिखित शिकायत करके कार्रवाई की मांग की गई। लेकिन, अफसर भी 'बेखबर' है।

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संगम तीरे माघ मास में तंबुओं का शहर बसता है। पुण्य की आस में देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने आते हैं। घाट पर घाटियों का कब्जा होता है। इनकी संख्या सैकड़ों में होती है। वे श्रद्धालुओं से गऊ दान करवाने के नाम पर हजारों रुपये लेते हैं। यही कारण है कि हर तख्त में गाय व बछिया बंधी होती है। पुलिस-प्रशासन अफसरों का पूरा अमला मेला क्षेत्र में 24 घंटे मुस्तैद रहता है। उसी स्थल पर मेला के बाद गाय व बछिया को बेसहारा छोड़ा जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि ऐसा कौन करता है? अफसर उससे अनभिज्ञ हैं। चार की मौत, कई गंभीर

मेला क्षेत्र में मिली बेसहारा गाय-बछिया को झूंसी स्थित वन विभाग के गेट के सामने मैदान में रखा गया है। उनकी देखरेख करने वाले क्षमा जनसेवा समिति के महामंत्री सुधीर मिश्र बताते हैं कि 15 मवेशी मिले थे। इसमें चार की मौत हो गई। कुछ शारीरिक रूप से काफी कमजोर हैं, जिससे उनकी स्थिति गंभीर है। प्रशासन से कोई मदद नहीं मिली है। लोगों से मांगकर खाने-पीने का प्रबंध किया जाता है। गोवंश रक्षा कानून बेमानी

गोवंश की रक्षा व सुरक्षा के लिए उत्तर प्रदेश गोवध निवारण (संशोधन) अध्यादेश-2020 के प्रारूप को स्वीकृति दी। इसमें गोहत्या पर 10 साल की सजा का प्रविधान जबकि शारीरिक तौर पर नुकसान पहुंचाने पर एक से सात साल की सजा है। गोशाला बनाकर बेसहारा गायों को उसमें रखने की हिदायत है। सरकारी अमला की कागजी कार्रवाई के कारण कानून बेमानी साबित हो रहा है। वर्जन

मेलाधिकारी को निर्देश दिया गया है कि वो बेसहारा गाय-बछिया को पकड़वाकर गोशाला अथवा नगर निगम के कांजी हाउस में रखवाएं। साथ ही जिन्होंने इनको छोड़ा है उन्हें चिह्नित करके कार्रवाई की जाएगी।

-अशोक कनौजिया, एडीएम सिटी। टीका-चंदन, लगाने व गऊ दान के लिए मेला के दौरान अराजकतत्व संगम क्षेत्र पर तख्त सजा लेते हैं। ये लोग मेला क्षेत्र में चोरी-छिनैती जैसी घटनाओं को अंजाम देने के साथ गोवंश को बेसहारा छोड़कर चले जाते हैं।

संजय मिश्र, महामंत्री, गंगापुत्र पुरोहित कल्याण समिति घाट संघ।


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