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Allahabad University की अफगानी छात्रा बोली, मुझे काबुल से निकालो वरना मार डालेंगे तालिबानी

शुक्रिया ने बताया कि तालिबानी ऐसे लोगों को खोजते हैं जो घर से बाहर काम करते हैं। हर जगह आतंक है। हवाई अड्डा गए तो वहां देखा कि लोगों को गोली मारी जा रही है। दुकानें बंद हैं। फोन कार्ड नहीं मिल रहा है। हम रोज अपना ठिकाना बदलते हैं।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sat, 21 Aug 2021 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 21 Aug 2021 08:13 PM (IST)
Allahabad University की अफगानी छात्रा बोली, मुझे काबुल से निकालो वरना मार डालेंगे तालिबानी
वर्ष 2013 से 2018 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय और शुआट्स में की है पढ़ाई

प्रयागराज, गुरुदीप त्रिपाठी। अफगानिस्तान तालिबानियों के कब्जे में हैं। यहां के हालात बहुत खराब है। सभी लोग डरे हुए हैं। वह लोगों को गोली मार रहे हैं। मेरी आखों के सामने हवाई अड्डे पर कई लोगों को मार दिया। दे विल किल मी टू...। आइ जस्ट वांट टू गो आउट...। फर्स्ट इंडिया...। बीकाज इंडिया इज लाइक माइ कंट्री...। यह कहना है इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इवि) और सैम हिग्गिनबाटम यूनिवर्सिटी आफ टेक्नोलाजी एंड साइंसेज (शुआट्स) से पढ़ाई करने वाली छात्रा शुक्रिया रिजाय का। वह इस वक्त परिवार के साथ काबुल में है और भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई है।

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खौफ का आलम है काबुल में

दैनिक जागरण से बातचीत के दौरान शुक्रिया ने बताया कि वह अफगानिस्तान की राजधानी काबुल से 149 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गजनी शहर की रहने वाली है। वह 2013 में पढ़ाई करने प्रयागराज आई थी। यहां शुआट्स में उसने स्नातक की पढ़ाई करने के बाद इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से पर्यावरण अध्ययन से परास्नातक में दाखिला लिया। हालांकि, एक सेमेस्टर पूरा करने के बाद वह 2018 में अफगानिस्तान लौट गई। इस वक्त तालिबान के खौफ से वह परिवार समेत वहां से निकलने की कोशिश में हैं। शुक्रिया ने बताया कि तालिबानी ऐसे लोगों को खोजते हैं, जो घर से बाहर काम करते हैं। हर जगह आतंक है। हम एक दिन हवाई अड्डा गए तो वहां देखा कि लोगों को गोली मारी जा रही है। दुकानें बंद हैं। फोन कार्ड नहीं मिल रहा है। हम हर रात एक ही घर में नहीं होते। हम रोज अपना ठिकाना बदलते हैं।

विदेश में पढ़ाई की तो तालिबान के लिए काफिर

शुक्रिया ने बताया कि तालिबान के लड़काे खासतौर पर उन लोगों के दस्तावेज खोजते हैं जो अफगानिस्तान से बाहर रहकर पढ़े हैं, और उन्हेंं यह कहकर सजा देते हैं कि तुम काफिर हो गए हो। उनका कहना है कि एक महिला को काफिर देशों में नहीं पढऩा चाहिए। एक महिला को अपनी आवाज नहीं सुननी चाहिए। मेरी दो बहनें अफगान राष्ट्रीय टीम की सदस्य थीं, अगर तालिबान जानता है, तो वह मेरे परिवार के सभी सदस्यों को मार डालेगा। उनके पास विशिष्ट लोग हैं जिन्होंने उन सभी को पहले ही पहचान लिया है।


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