श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी में खल रही नरेंद्र गिरि की कमी, साधु-संत शिद्दत से कर रहे उन्हें याद
आयोजन में शामिल होने के लिए 13 अखाड़ों के महात्मा प्रयागराज आए हैं। सभी श्री मठ बाघम्बरी गद्दी में पहुंच रहे हैं। करीब 17 साल में बाघम्बरी गद्दी का यह पहला आयोजन है जिसमें नरेंद्र गिरि नहीं होंगे। और ऐसे में उनकी कमी सबको खल रही है।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। संत हों, मुख्यमंत्री या मंत्री हों। विपक्ष का कोई नेता हो अथवा अन्य विशिष्टजन। श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी में आए दिन ऐसे लोगों का आगमन होता रहा है। आम हो या खास व्यक्ति मठ में सबको सम्मान मिलता था। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि स्वयं आवभगत करते थे। खाने-पीने का प्रबंध भी स्वयं कराते थे। पांच अक्टूबर यानी आज मंगलवार को नरेंद्र गिरि की षोडशी तथा उनके उत्तराधिकारी के रूप में बलवीर गिरि का पट्टाभिषेक हो रहा है। इस आयोजन में शामिल होने के लिए 13 अखाड़ों के महात्मा प्रयागराज आए हैं। सभी श्री मठ बाघम्बरी गद्दी में पहुंच रहे हैं। करीब 17 साल में बाघम्बरी गद्दी का यह पहला आयोजन है, जिसमें नरेंद्र गिरि नहीं होंगे। और ऐसे में उनकी कमी सबको खल रही है।
बारिश से पीड़ित साधुओं को दी थी मठ में शरण
नरेंद्र गिरि श्रीमठ बाघम्बरी गद्दी के महंत थे। इसी कारण 13 अखाड़ों के महात्मा अक्सर मठ आते थे। प्रयागराज में प्रस्तावित अखाड़ा परिषद की समस्त बैठक बाघम्बरी गद्दी में होती थी। यहीं से अखाड़ा परिषद कार्यप्रणाली की दिशा तय होती और माघ मेला तथा कुंभ जैसे आयोजनों की रूपरेखा बनती थी। उदासीन बड़ा अखाड़ा के संयुक्त सचिव श्रीमहंत व्यासमुनि उदासीन कहते हैं कि नरेंद्र गिरि सच्चे संत थे। जरूरतमंदों की मदद में कभी पीछे नहीं रहे। प्रयागराज में 2013 में हुए महाकुंभ में जब भीषण बारिश से सबके शिविर तबाह हो गए थे। तब नरेंद्र गिरि ने अपने मठ में कई दिनों तक महात्माओं व श्रद्धालुओं को भोजन करवाकर उन्हें गंतव्य तक पहुंचाने का प्रबंध किया था।
बाघम्बरी गद्दी को नरेंद्र गिरि ने नई ऊंचाई प्रदान की
श्रीमहानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव श्रीमहंत जमुना पुरी कहते हैं कि नरेंद्र गिरि को आवभगत करने का शौक था, वे सबका सम्मान करते थे, उनकी कमी हमेशा खलेगी। निर्मल पंचायती अखाड़ा के संत ज्ञान सिंह पुरानी यादों में खोते हुए कहते हैं कि बाघम्बरी गद्दी को नरेंद्र गिरि ने नई ऊंचाई प्रदान की है, उनकी कमी पूरी करना बहुत कठिन है।