तीर्थराज प्रयाग में एक मंदिर ऐसा जहां परमेश्वर की तरह पूजे जाते हैं पिता, वर्षों से नित्य हो रही अर्चना
दिलचस्प यह है कि इस मंदिर में पिता के अलावा किसी दूसरे देवी-देवता की प्रतिमा नहीं है। अजय कहते हैं पिता उनके परमेश्वर हैं और मां साक्षात लक्ष्मी। इसलिए किसी और देवी-देवता की क्या जरूरत है? माता-पिता का आशीर्वाद है तो ईश्वर स्वत साथ देेंगे।
प्रयागराज, [शरद द्विवेदी]। यूं तो सनातन मतावलंबियों में 33 कोटि (करोड़) देवी-देवताओं की मान्यता है। वहीं जन्म देने वाले माता, पिता भी देवता देवी से कम नहीं हैैं। देवी देवताओं के देश-विदेश में लाखों मंदिर स्थापित हैं, पत्थर व विभिन्न धातुओं से निर्मित इन प्रतिमाओं के दर्शन-पूजन के लिए बड़ी संख्या में आस्थावान सुबह शाम उमड़ते हैैं। मंदिरों की दृष्टि से तीर्थराज प्रयाग की काफी ख्याति है परंतु यहां एक मंदिर ऐसा भी है जहां हर किसी का सिर श्रद्धा से झुक जाता है। यह किसी देवी-देवता का मंदिर नहीं है, वरन गोलोकवासी गंगा प्रेमी का है। यहां बीते कई वर्षों से नित्य पूजा अर्चना की जा रही है।
जानें, कौन हैं ये श्रवण कुमार
प्रयागराज में विवेकानंद मार्ग, चौक निवासी जिला न्यायालय के अधिवक्ता अजय कुमार शुक्ल की पितृभक्ति मौजूदा और भावी पीढ़ी के लिए मिसाल है। आप उन्हें आधुनिक श्रवण कुमार भी कह सकते हैैं। पिता का निधन होने के बाद उन्होंने उनकी प्रतिमा बनवाई और निवास के एक कमरे को मंदिर का स्वरूप देकर वहां स्थापित करवा दिया। दिलचस्प यह है कि इस मंदिर में पिता के अलावा किसी दूसरे देवी-देवता की प्रतिमा नहीं है। अजय कहते हैं 'पिता उनके परमेश्वर हैं और मां साक्षात लक्ष्मी। इसलिए किसी और देवी-देवता की क्या जरूरत है? माता-पिता का आशीर्वाद है तो ईश्वर स्वत: साथ देेंगे।'
लक्ष्मी प्रसाद शुक्ल की ख्याति गंगा भक्त की थी
अजय के पिता लक्ष्मी प्रसाद शुक्ल की ख्याति गंगा भक्त के रूप में थी। जीवनकाल में लगातार 64 वर्ष तक गंगा स्नान करते रहे। गंगा आरती आरंभ कराने के साथ स्वच्छता अभियान चलाते थे। उनका 11 जनवरी 2003 को निधन हो गया। हमेशा पिता की छत्रछाया में रहने वाले अजय उनके बिन व्याकुल हो गए। वह देव रूप में हमेशा उनके साथ रहें, इसलिए उनका मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। जयपुर से संगमरमर की तीन फिट की प्रतिमा बनवाई और 2004 में विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करवाई। प्राण प्रतिष्ठा समारोह में वरिष्ठ भाजपा नेता डा. मुरली मनोहर जोशी, केशरीनाथ त्रिपाठी, न्यायमूर्ति गिरिधर मालवीय, सत्यप्रकाश मालवीय सहित तमाम विशिष्टजन भी शामिल हुए थे।
मां के आशीर्वाद से शुरू होता है दिन
अजय के परिवार में 10 से अधिक सदस्य हैं। छोटे भाई विजय शुक्ल व्यवसायी हैैं जबकि अभय शुक्ल निजी कंपनी में वाइस चेयरमैन। इनके अलावा सबके बच्चे हैं। घर के हर सदस्य सुबह उठकर अजय की मां ऊषा शुक्ला का पांव छूकर आशीर्वाद लेते हैं। फिर स्नान कर पिता की प्रतिमा के समक्ष विधिवत पूजन करने के बाद आरती उतार जल ग्रहण करते हैं। शाम को आरती के बाद भोजन भी परंपरा बन गई है। अजय के पिता का मंदिर उनके घर के मुख्य द्वार के सामने स्थित है। इसलिए मार्ग से गुजरने वाले भी श्रद्धा से शीश झुकाकर आगे बढ़ते हैं।
जन्मतिथि व पुण्यतिथि पर दान
लक्ष्मी प्रसाद शुक्ल की जन्मतिथि व पुण्यतिथि पर उनके बेटे दान करते हैं। अजय बताते हैं कि गरीबों की आंख का आपरेशन कराने के अलावा, वस्त्र वितरण किया जाता है। प्रतिभाशाली बच्चों को पुरस्कृत किया जाता है।
कलियुग का श्रेष्ठ कार्य : देेवेंद्र
श्रीधर्मज्ञानोपदेश संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी इसे कलियुग का श्रेष्ठ कर्म बताते हैैं। वह कहते हैं कि श्रीमद्भागवत के छठें स्कंध के सातवें अध्याय के 29 वें श्लोक में आचार्य को वेद की मूर्ति, पिता को ब्रह्म की मूर्ति, माता को साक्षात पृथ्वी की मूर्ति व भाई को इंद्र की मूर्ति का स्वरूप बताया गया है। कलियुग में कोई व्यक्ति पिता की मंदिर बनवाकर उनकी पूजा करता है तो यह श्रेष्ठ धार्मिक कार्य है। माता-पिता की सेवा व सम्मान करने से धार्मिक, आर्थिक, भौतिक सुख की प्राप्ति होती है।