सुर्खा की 80 प्रतिशत फसल बर्बाद, स्वाद महंगा
दुनिया भर में संगमनगरी की पहचान है सुर्खा (सेबिया) अमरूद। इस बार इसकी पैदावार बहुत ही कम हुई है।
राजकुमार श्रीवास्तव, प्रयागराज : दुनिया भर में संगमनगरी की पहचान है सुर्खा (सेबिया) अमरूद। इसका गूदा गुलाबी और लाल रंग का होता है, मिठास भरा। इस बार भी इसका स्वाद महंगा हो चला है। वजह है करीब 80 प्रतिशत फसल खैरा रोग के कारण बर्बाद होना। बाजार में आवक लगभग तीन चौथाई है। खोजने पर मुश्किल से मिलता है, वह भी 100 रुपये किलो के आसपास।
सुर्खा या सेबिया अमरूद का उत्पादन शहर के पश्चिम हिस्से और अब कौशांबी जिले के कई गांवों में बड़े पैमाने पर होता था। इस साल बारिश देर तक हुई तो फसल में जोरई नामक कीड़े और खैरा रोग ने मार दिया। लगभग 80 प्रतिशत तक फसल चौपट हो गई है फिलहाल बाग में जो उपज बची है, उसकी गुणवत्ता बहुत खराब है। लेकिन जायका जो ठहरा। इसे भी हाथों हाथ लिया जा रहा है। संकट में आए सुर्खा का विकल्प छत्तीसगढ़ का सफेदा अमरूद बन रहा है। सेबिया उत्पादक बाकराबाद के मुन्नू पटेल बताते हैं कि बाकराबाद, बमरौली, असरौली, चायल, मनौरी, असरावल खुर्द, मकनपुर आदि गांवों में इस साल भी उदासी है। पिछले साल हमने सोचा था कि अगले साल फायदा होगा, लेकिन प्रकृति के आगे विवश हैं। उद्यानिकी विभाग ने हमारी कोई सुधि नहीं ली। हम तो 10 से 15 रुपये किलो की ही दर से अपनी उपज बेच रहे हैं, बाजार में यह कैसे सौ रुपये किलो बिक रहा है, बेचने वाले जानें।
नेपाल, सऊदी अरब तक होता था निर्यात
मुन्नू के अनुसार दो साल पहले तक सेबिया अमरूद गोरखपुर, बिहार, दिल्ली, मुंबई समेत देश भर में व्यापारी ले जाते थे। यह कारोबारी अपने यहां से इसे नेपाल और सऊदी अरब भिजवाते थे।
मुंडेरा मंडी में नाममात्र की आवक
पूर्व के वर्षो में मुंडेरा फल एवं सब्जी मंडी सेबिया की खुशबू से महकती थी, लेकिन इस साल ऐसा नहीं है। फल एवं सब्जी व्यापार मंडल के महामंत्री बच्चा यादव कहते हैं कि मंडी में सेबिया की आवक करीब 25 प्रतिशत है। हम रेट 30 रुपये किलो की दर से बेच रहे हैं। छत्तीसगढ़ से आने वाले अमरूद का दाम 35 रुपये किलो है। एजी आफिस फल मंडी में फल बेचने वाले गोलू का कहना है कि सेबिया बाजार में ज्यादा है नहीं। छत्तीसगढ़ी सफेदा खाने में स्वादिष्ट नहीं है, इसलिए इसकी मांग कम है।