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पुनर्जन्म की अवधारणा में विश्व का कल्याण

जासं, इलाहाबाद : भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन संस्कृति है। इसमें विश्व का कल्याण समाहित

By JagranEdited By: Published: Sat, 17 Jun 2017 01:00 AM (IST)Updated: Sat, 17 Jun 2017 01:00 AM (IST)
पुनर्जन्म की अवधारणा में विश्व का कल्याण
पुनर्जन्म की अवधारणा में विश्व का कल्याण

जासं, इलाहाबाद : भारतीय संस्कृति दुनिया की सबसे प्राचीन संस्कृति है। इसमें विश्व का कल्याण समाहित है। विडंबना यह है कि भारतीय अपनी संस्कृति को खुद उपेक्षित कर रहे हैं। आज धरती प्रदूषण से कराह रही है। समाज में नकारात्मकता बढ़ रही है। तनाव, भय, अशांति, रोग लागों में घर कर रहे हैं। पानी रसातल में जा रहा है। जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं। मिट्टी में हम उर्वरक व रसायन डालकर उसे बंजर बना रहे हैं। यदि हम अपने आचार, विचार और व्यवहार में परिवर्तन नहीं लाएंगे तो आने वाले 15 से 20 सालों में विश्व के सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा होने वाला है। यह संकट अस्तित्व का होगा। इस भयावह समस्या का समाधान वेदों में है। यह समाधान पुनर्जन्म की अवधारणा में छिपा है। उक्त बातें शिव गंगा विद्या मंदिर फाफामऊ में आयोजित वैदिक कैंप में यूनेस्को के सदस्य अलेक्जेंडर उसैनिन ने कहीं।

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उसैनिन ने कहा कि यह धरती हमारी है। इसे बचाना और रहने लायक बनाए रखना हमारा कर्तव्य है। पुनर्जन्म की अवधारणा में है कि आत्मा नहीं मरती, बल्कि व एक शरीर का त्याग कर दूसरी देह धारण कर लेती है। ऐसे में जब व्यक्ति यह सोचेगा कि हमें फिर दोबारा इसी धरती पर जन्म लेना है तो वह धरती पर प्रदूषण फैलाने से डरेगा। उन्होंने इस सिद्धांत को बच्चों में प्रचारित-प्रसारित करने की सलाह दी।

उन्होंने कहा कि वैदिक संस्कृति से ही विनाश को रोका जा सकता है। यही कारण है कि इस प्राचीन संस्कृति को बचाने का बीड़ा यूनेस्को ने उठाया है। प्राचीनतम संस्कृतियों और पर्यावरण को बचाना यूनेस्को का ध्येय है।

अलेक्जेंडर ने बताया कि हमनें जितना पौधरोपण नहीं किया उससे 20 गुना ज्यादा जंगल नष्ट हो रहे हैं। इसी कारण ग्लोबल वार्मिग से विश्व जूझ रहा है।

आज संस्कृति और नैतिक मूल्यों का पतन सबसे बड़ी चुनौती है। इस चुनौती से आध्यात्मिकता और नैतिक मूल्यों को बढ़ावा देकर ही निपटा जा सकता है।

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एसजीवीएम बना इंडो-रशियन कल्चर सेंटर

अलेक्जेंडर ने बताया कि भारत और रूस का संबंध वैदिक काल से रहा है। रूस में शिव, ब्रह्मा और कृष्ण की पूजा के प्रमाण हैं। यही कारण है कि दोनों देशों की संस्कृतियों के बीच साझेदारी के लिए हम देश के कई विद्यालयों को इंडो-रशियन कल्चर सेंटर के तौर पर चुन रहे हैं। इसी कड़ी में शिव गंगा विद्यामंदिर को कल्चरल सेंटर के तौर पर चुना गया है। इसके तहत यहां के छात्रों को रशियन भाषा सिखाई जाएगी और साइंस व तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया जाएगा। अच्छे छात्रों को रूस में स्कॉलरशिप देकर पढ़ने के लिए भेजा जाएगा।

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मनेगा रशियन-इंडो संस्कृत सम्मेलन

अलेक्जेंडर ने बताया कि रूस अगले वर्ष रशियन-इंडो कल्चरल महोत्सव का आयोजन कर रहा है। मास्को में होने वाले इस महोत्सव में हजारों भारतीय और रूसी नागरिक भाग लेंगे। एक माह तक चलने वाले इस महोत्सव में सेलिब्रिटीज, संगीतकार, फिल्मकार, साहित्यकार, बिजनेसमैन व पर्यटकों को आमंत्रित किया जाएगा।


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