प्रयागराज में अंग्रेजों के जमाने का 156 वर्ष पुराना ब्रिज इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना है, रेलवे ने डाक्यूमेंट्री जारी की
पुराना नैनी यमुना ब्रिज नाम से प्रसिद्ध इस पुल पर बनाई गई डाक्यूमेंट्री को जारी करते हुए उत्तर मध्य रेलवे और पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक ने कहा कि यह यमुना ब्रिज भारतीय रेल के गौरवमयी इतिहास का योग्य भागीदार और मौन साक्षी है।
प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज में अंग्रेजों के जमाने का यमुना नदी पर बना गऊघाट रेल ब्रिज इंजीनियरिंग का बेजोड़ नमूना है। टू लेन के इस ब्रिज पर ऊपर ट्रेन चलती है तो नीचे हल्की गाडिय़ों का आवागमन होता है। देश के सबसे पुराने ब्रिज में से एक गऊघाट के इस ब्रिज पर रेलवे ने पिछले दिनों एक डाक्यूमेंट्री जारी की है। यह ब्रिज धरोहर के साथ ही सेवा के लिए भी समर्पित है।
एनसीआर के जीएम ने यमुना ब्रिज की डाक्यूमेंट्री जारी की
इस पुल पर बनाई गई डाक्यूमेंट्री को जारी करते हुए उत्तर मध्य रेलवे और पूर्वोत्तर रेलवे के महाप्रबंधक विनय कुमार त्रिपाठी ने कहा कि यह यमुना ब्रिज भारतीय रेल के गौरवमयी इतिहास का योग्य भागीदार और मौन साक्षी है। रेलवे में पुल संख्या- 30 से पहचाना जाना जाता है। जबकि प्रयागराज में आम बोलचाल में लोग इसे गऊघाट का ब्रिज भी कहते हैं। यह ब्रिज भारतीय रेल में इंजीनियरिंग का एक जीता जागता नमूना है। गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के पावन संगम पर स्थित प्रयागराज तीन तरफ से नदियों से घिरा हुआ है।
15 अगस्त 1865 से भारतीय रेल की सेवा में समर्पित है
विस्तार और संपर्कता के क्रम में गंगा और यमुना को शहर से जोडऩे के लिए इन नदियों पर अब तक कई पुल (रेल एवं सड़क दोनों) बन चुके हैं और कई नए प्रगति पर भी हैं। इन्हीं में से एक यमुना नदी पर बना यह पुल 15 अगस्त 1865 से भारतीय रेल की सेवा को समर्पित है। यह दिल्ली से हावड़ा और मुंबई से दिल्ली को जोडऩे का कार्य निरंतर कर रहा है।
ब्रिटिश काल में 4446300 रुपये की लागत से बना था यह पुल
1859 में प्रयागराज-कानपुर के मध्य पहली गाड़ी के संचालन के साथ उत्तर भारत में रेल यात्रा प्रारंभ हुई था। रेल के माध्यम से प्रयागराज से पूर्वी भारत का जुड़ाव नैनी ब्रिज के निर्माण के बाद ही सम्भव हो सका था। ब्रिटिश काल में यह पुल 44 लाख 46 हजार 300 रुपये की लागत से इसे बनाया गया था। 1855 में इस पुल को बनाए जाने की तैयारी शुरू हुई थी। उस दौरान लोकेशन भी डिजाइन कर ली गई थी। 1859 में पुल बनाने का कार्य शुरू हुआ। इस पुल को बनाने में तकरीबन छह साल का वक्त लगा।
गौरवशाली इतिहास पर बनाई गई है डाक्यूमेंट्री फिल्म
ब्रिटिश इंजीनियर मिस्टर सिवले की देखरेख में इस पुल में रेल आवागमन 15 अगस्त 1865 में शुरू हुआ था। निर्माण के समय इस पर सिर्फ एक लेन ही थी, वर्ष 1913 में इसका दोहरीकरण किया गया। फिर इसकी रीगार्डरिंग 1929 में हुई। इसी अदभुत विरासत को संजोने के क्रम में इस डाक्यूमेंट्री फिल्म को बनाया गया है। डाक्यूमेंट्री जारी करते समय उत्तर मध्य रेलवे के अपर महाप्रबंधक रंजन यादव भी मौजूद रहे।
हाथी पांव वाले हैं इसके पिलर
यह दो मंजिला पुल ठोस लोहे का बना है। 3150 फीट लंबे और 14 पिलर पर बने इस पुल की खास बात यह है कि इसके एक पिलर की डिजाइन हाथी के पांव जैसी है। पुल में कुल 17 स्पैन हैं जिसमें 14 स्पैन 61 मीटर, 02 स्पैन 12.20 मीटर तथा एक स्पैन 9.18 मीटर लंबा है जो इसको मजबूती व स्थिरता देते हैं। पिलर की ऊंचाई 67 फीट एवं चौड़ाई 17 फीट है। सभी पिलर के नींव की गहराई 42 फीट है। निम्न जलस्तर से गर्डर के नीचे की ऊंचाई तकरीबन 58.75 फीट है। पुल में लगाए गए गर्डर का वजन लगभग 43 सौ टन है। पुल में लगभग 30 लाख क्यूबिक ईंट एवं गारा का प्रयोग हुआ है।
बाढ़ में भी नहीं डिगा
प्रयागराज में वर्ष 1978 में भीषण बाढ़ आई थी जिस कारण शहर का अधिकांश हिस्सा जलमग्न हो गया था। यमुना की तेज लहरें पुल के पिलर से टकराकर भय उत्पन्न कर रही थीं, लेकिन पुल मजबूती के साथ खड़ा रहा और उस दौरान भी ट्रेनों का संचालन निर्बाध व नियमित रूप से जारी रहा।
आंकड़ों पर एक नजर डालें
06 साल लगे थे पुल को बनने में
14 पिलर पर बना है नैनी का यमुना ब्रिज
14 स्पैन है 61 मीटर लंबे
02 स्पैन है 12.20 मीटर लंबे
01 स्पैन है 9.18 मीटर लंबा
67 फीट लंबे और 17 फीट चौड़ा है प्रत्येक पिलर
30 लाख क्यूबिक ईंट और गारा से बना है पुल
42 फीट तक गहरी है पिलर की नींव
4300 टन वजन है पुल पर रखे गर्डर का
01 करोड़ 46 लाख तीन सौ रुपये खर्च हुए थे गर्डर पर
1913 में पुल पर बिछाई गई थीं डबल लाइन
1928-29 में पुराने गर्डर की जगह नए गर्डर लगाए गए
2007 में लकड़ी के स्लीपर की जगह स्टील चैनल स्लीपर लगाए गए
2019 के कुंभ के दौरान पुल पर लगाई गई एलईडी और फसाड लाइट।