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युवक का अलीगढ़ पुलिस से सवाल : निर्दोष के दो साल कौन लौटाएगा

कानून का मूलभूत सिद्धांत है? कि सौ अपराधी भले ही छूट जाएं। लेकिन एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। बरला पुलिस ने दो साल पहले इस सिद्धांत को कुचल दिया। अपना गुड वर्क दिखाने के लिए निर्दोष को न सिर्फ जेल भेज दिया।

By Sandeep Kumar SaxenaEdited By: Published: Sat, 03 Apr 2021 10:02 AM (IST)Updated: Sat, 03 Apr 2021 10:02 AM (IST)
युवक का अलीगढ़ पुलिस से सवाल : निर्दोष के दो साल कौन लौटाएगा
कानून का मूलभूत सिद्धांत है कि सौ अपराधी भले ही छूट जाएं।

अलीगढ़, जेएनएन। कानून का मूलभूत सिद्धांत है? कि सौ अपराधी भले ही छूट जाएं। लेकिन, एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। बरला पुलिस ने दो साल पहले इस सिद्धांत को कुचल दिया। अपना गुड वर्क दिखाने के लिए निर्दोष को न सिर्फ जेल भेज दिया, बल्कि उसके परिवार पर भी जुल्म ढाए। ढाई माह तक जिस पुलिसकर्मी ने विवेचना की थी, आज उसने ये कहकर पल्ला झाड़ दिया कि मुझे इस प्रकरण के बारे में कुछ याद नहीं है। क्या खाकी की याद्दाश्त इतनी कमजोर है ? क्या यह वही खाकी है, जिसने लाकडाउन में अपनी सकारात्मक तस्वीर दिखाकर छवि बदल डाली। विवेचक की लापरवाही के चलते एक नौजवान के जीवन के दो साल बर्बाद हो गए। उन्हें कौन लौटाएगा? इस अति-संवेदनशील मामले में सबकुछ सामने है। अफसरों को लीग से हटकर काम करना होगा। अब चूक नहीं होनी चाहिए। लापरवाही में जिन-जिनके नाम सामने आएं, उन पर कार्रवाई होनी ही चाहिए।यातायात व्यवस्था कब सुधरेगी 

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किसी भी शहर की खूबसूरती उसकी यातायात व्यवस्था पर काफी हद तक निर्भर करती है। अलीगढ़ में बीते कुछ महीनों में यातायात को सुधारने के लिए कई कदम उठाए गए। कार्ययोजना भी बनी। लेकिन, सब नाकाफी साबित हो रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा अडंगा अतिक्रमण का है। पुलिस की कार्रवाई इतनी सुस्त होती है कि अतिक्रमण हटने के कुछ घंटों बाद ही दोबारा सज जाता है। दूसरी तरफ शहर में लगाई गईं ट्रैफिक लाइट्स ही मुसीबत का कारण बनी हुई हैं। यहां वाहनों के गुजरने का समय कम है, जबकि ठहरने का समय दोगुना होता है। इसके चलते वाहनों की लंबी कतार लगी रहती हैं। सबसे बुरा हाल दुबे के पड़ाव, कंपनी बाग, रसलगंज चौराहे जैसे इलाकों में है। कुछ लाइटें गैरजरूरी हैं, जिनके न होने से भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लोगों की जुबां पर यही सवाल कौंधता रहता है कि आखिर हमारे शहर की यातायात व्यवस्था कब सुधरेगी? 

दस्तक से ही सूख गए थे हलक 

चंद दिनों में पुलिस का पूरा घर बदल गया है। नए अफसरों ने कमान संभाल ली है। जिले में नए कप्तान के आने की दस्तक से ही थानेदारों के हलक सूख गए थे। कप्तान के आने के बाद अब रंग उड़े हुए हैं। अमूमन कोई भी अधिकारी एक सप्ताह का समय शहर को समझने में लगाता है। लेकिन, इस बार सात दिन में ही तीन स्कीम लागू हो गईं। सड़क पर शराब पीने के मामले में सासनीगेट थाना पर नकेल कसी तो अगले ही दिन सभी थानों में शराबियों की भीड़ लग गई। आपरेशन आवारा में अब कोई सड़क पर नजर नहीं आता। ला एंड आर्डर स्कीम के तहत सभी पुलिसकर्मियों को मुस्तैद कर दिया है। आपरेशन निहत्था से अवैध असलहा रखने वालों की कमर तोड़ी जाएगी। थाने से पुलिस कार्यालय की कनेक्टिविटी ऐसी है कि कोई नजर न बचा पाए। इस खौफ के आगे भला रंग क्यों न उड़े? 

अभियान की आड़ में उगाही 

शहर के तमाम इलाकों में कई तंग गलियां हैं, जिनमें धड़ल्ले से सट्टा व गांजा बिकता है। पुलिस सबकुछ जानते हुए मौन हो जाती है। अधिकारियों के आदेश आते हैं तो एक गिरोह को पकड़कर जेल भेज दिया जाता है। लेकिन, मोटी मछली बदस्तूर अपने धंधे को जारी रखती हैं। हालांकि पुलिस ने इसके खिलाफ भी अभियान चलाया है। थाने की टीम के अलावा एक विशेष टीम भी ऐसे लोगों पर नजर रख रही है। लेकिन, ये विशेष टीम अभियान की आड़ में उगाही के रास्ते पर चल पड़ी है। संवेदनशील थाने का एक वाक्या है, जहां एक युवक को सट्टा खेलते पकड़ा गया। लेकिन, रिश्वत लेकर उसे छोड़ दिया गया। ये सिर्फ एक इलाका नहीं है, शहर के हर थाना क्षेत्र में कार्रवाई तो हो रही हैं। लेकिन, उगाही का खेल भी जारी है। अफसर इस पर संज्ञान लें। साथ ही लोगों को स्वच्छ माहौल दिलाना सुनिश्चित किया जाए।


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